Book Title: Anusandhan 2019 07 SrNo 77
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जून - २०१९
ওও
बोलनइ विषइ लिरव्यु छइ जे - "शास्त्रोक्त देशविसंवादी निह्नव सात, सर्वविसंवादी निह्नव एक; ए टालिनई बीजा कुणनई निह्नव न कहिदुं ।" ॥ ए आठमो बोल ॥
तथा परपक्षी संघाति दीवाण' जइनि वाद करतां ते थकी घणु कलेस वाधतो, ते माटि नूमा बोलनइ विषइ लिखिउं छइ जे – “परपक्षी संघाति चर्चानी ऊदीरणा कुणिं न करवी । परपक्षी कोइ ऊदीरणा करइ तु शास्त्रनि अनुसार ऊतर देवो, पणि कलेस वाधइ तिम न करवू ।" || ए नूमो बोल ॥
तथा उत्सूत्रकंदकुद्दालग्रंथमांहिला बोलनी कोइक प्ररूपणा करवा लागा ते मार्टि दसमा बोलनइ विषइ लिख्यउं छइ जे - "श्रीविजयदानसूरिं वीसलनगरमध्ये बहुजनसमक्ष जलशरण कीधु जे उत्सूत्रकंदकुद्दालग्रंथ ते, तथा ते माहिलु असंमत अर्थ बीजा कोइ शास्त्रमांहिं आण्यो हुइ तु तिहां ते अर्थ अप्रमाण जाणवू ।" ॥ ए दसमो बोल ॥
तथा कोइक कहइ छइ "[पर]मतीनां संघ साथि श्रीशत्रुजयादिक तीर्थनी यात्रा करइ, तेहनइ यात्रानु फल हुइ नही ते पग घसी आव्या ।" ते मार्टि अग्यारमा बोलनइ विषइ लिखिउं छइ जे – “स्वपक्षीना सार्थनि अयोगि परपक्षी सार्थि यात्रा कर्या मार्टि यात्रा फोक न थाइ ।" || ए अग्यारमो बोल ॥
तथा कोएक कहइ छइ - "जे मतिकृत स्तुतिस्तोत्रादिक मांडलिं कहइ तु पडिक्कमणुं सूझइ नही !" ते माटि श्रीहीरविजयसूरीश्वरई बार[मा] बोलनइ विषइ लिखिउं छइ जे - "पूर्वाचार्यनइ वारइ जे परपक्षीकृत स्तुतिस्तोत्रादिक कहवातां ते कहतां कुणिं ना न कहवी ।" ॥ ए बार बोल ॥
इति श्रीहीरविजयसूरिप्रसादितद्वादशजल्पपट्टकस्याऽयं बालावबोधस्तत्शिष्यश्रीशुभविजयगणिना भट्टारकश्रीविजयदेवसूरीश्वरनिर्देशात् संवत् १६८० वर्षे चैत्रसितद्वितीयायां गुरुवासरे राजनगरे च विहितः स्ववाचनकृते ।
॥ शुभं भवतु ॥ ॥ कल्याणमस्तु ।
१. सरकारी न्यायालये ।

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