Book Title: Anusandhan 2019 07 SrNo 77
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-७७
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सुमति सुमता गुपति गुपता अज्जव मद्दव खंति रे सहस दह अठ शीलरथधर धीरनइ धीमंत रे... २०० साधु तुरत जाइ द्यइ वधाई रायनइ वनपाल रे आविया प्रभु साधु वनमइ वांदिया त्रिणि काल रे... वचन सांभली राय हरख्यो ऊठीयो ततकाल रे स्नान कृतबलिकर्म कीधा रंग मंगल रोल रे... अंजना नइ पवनराजा बेउ वंदन काजि रे चालियां मंडाण मोटइ साथि हय गय साज रे... पाय वंदी पासि बइठा सांभलइ उपदेश रे सुगुरु बोलइ हरण संसय वाणि अमृत लेस रे... काम नइ संभोगसुख रस सारिखा मधु बिंद रे अंतकालइ नरकि घालइ भोगवइ दुःख जिंद रे... जीवहिंसा करइ रसवसि मनइ नाणइ संक रे निगोद मांहि तेह प्राणी लिप्त थासइ पंक रे... कम्म अट्टह सत्त पयडी अट्ठावन बांधइ जीव रे लखि चोरासी योनि फरस्यइ करत अति घण रीव रे... २०७ चौद खाणी तणइ योगइ भोगवइ गति च्यार रे सुध किरिया विण न पामइं पांचमी गति पार रे... २०८ संसार सागर कूप उंडो मणुअ मीन कहोइ रे नेह मायाजाल बंधन काल धीवर जोइ रे... बहु परिग्रह बहु आरंभी बंध करतो अह रे तुच्छ आरंभ तुच्छ परिग्रह मोक्ष कारण अह रे... आय तूटी नही संधइ देव दाणव कोइ रे ओ जनम वली पढावला आवती हम जोइ रे... ओहवा मृदु वचन सांभलि आवीयो वैराग रे सती ऊठी हाथ जोडी देखि रूडो लाग रे... संसार कडूआ थकी सामी ऊभगी निरधार रे... अनुमति मांगी प्रीउ पासई लेइस्यु व्रत सार रे...
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