________________
अनुसन्धान-७७
मंगलदीवो
- सं. विजयशीलचन्द्रसूरि
कवि देपालकृत 'मंगलदीवो' जैन मन्दिरोमां सदीओथी गवाती एक मंगलमय कृति छे. आरती साथे के अकलो मंगलदीवो उतारवानो (करवानो) होय त्यारे जैन मन्दिरमां आ गीत ज गवातुं के बोलातुं होय छे. ओ रीते आ लघुगीत ने तेना कर्ता कवि देपाल अमर बनी गयां छे. प्रचलित गीत-पाठ करतां जरा जुदो अने लंबाणवाळो पाठ एक फुटकळ पुराणा ह.लि. पत्रमा प्राप्त थतां ते अहीं आपेल छे.
or or mo s w
दिवो रे दिवो मंगलीक दिवो, भुवनप्रकासी जिन चरण(चिरं)जीवो १ चंदा सुरज प्रभु तुम केरा, लुछण करता देइ नित फेरा.. जिन तुज ... सरनी अमरी, मंगलदीपक देती भमरी जिम जिम धुपघटी प्रगटावे, तिम तिम दोहग दूरे जावे नीर अक्षत कुसुमांजली चंदन, धुप दीप फल नेवद वंदन इण परे अष्ट प्रकारी कीजे, पुजा सनात मोच्छव फल लाहो रे लीजे । दीवो उतारणहार बहु चरण(चिरं)जीवो, सोहामणी ए परब दीवाली, ओछव मली मली अबला बाली जे घरे मंगलीक ते घरे मंगलीक, मंगलीक चतुरविध सरव सींघमें कवी दीपालो भणे रंगरसालो, आरती उतारी राजा कुमारपाले
दीवो० इती आरती सम्पूर्ण ॥
ou
म