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जून - २०१९
करमबत्रीशी तथा बे स्तवनो
- सं. सा. समयप्रज्ञाश्री
कर्मनो सिद्धान्त जैन धर्म-दर्शननो प्रमुख सिद्धान्त छे. जीवमात्रने जे सुख के दुःख सांपडे छे ते तेणे पोते उपार्जन करेलां शुभ के अशुभ कर्मोनुं ज फळ छे – एवं आ सिद्धान्तथी सिद्ध थाय छे. आ सिद्धान्तने साबित करे तेवां अनेक पौराणिक-धार्मिक-ऐतिहासिक उदाहरणोनी सचोट रजूआत आ करमबत्तीसीमां थई छे. गमे तेवा धीठ के नफट जनने पण आ वातो वांचीने पाप करतां बीक लागे तेवी आ रजूआत छे.
तपगच्छपति श्रीविजयदेवसूरिना पट्टधर श्रीविजयसिंहसूरिजीना शिष्य श्रीअमरसुन्दर गुरु, तेमना शिष्य मुनि श्रीअनन्तसुन्दरजीए आ करमबत्तीसी रची छे तेवं छेल्ली बे कडी वांचतां फलित थाय छे. तेमनो समय १८मो सैको हशे तेम आ उपरथी नक्की थाय छे. एक गुटका जेवी पण अधूरी अने त्रुटक प्रति परथी आ कृति उतारेल छे.
___'बे स्तवनो'मां पहेलू गोडी (गुडी) पार्श्वनाथनुं स्तवन छे. ते ज्ञानसागर नामना मुनिराजे बनावेलुं छे. सात कडीना आ स्तवनमा ‘नमिऊण'ना स्फुलिङ्ग मन्त्रनो निर्देश नोंधपात्र छे (क. ४) अने तेनी साधना द्वारा सेवकनां वांछित सिद्ध थवानी प्रार्थना थई छे.
बीजुं स्तवन सुखसागर पार्श्वनाथनुं छे, तेनी रचना ललितसागर नामे कविए करी छे. आ सुखसागर पार्श्वनाथ खम्भातमां बिराजमान छे ते ज लागे छे. एक प्रकीर्ण पत्र, जे सं. १७१०मां स्तम्भतीर्थमां लखायुं छे, ते परथी आ बन्ने स्तवनो उतार्यां छे.