Book Title: Anusandhan 2019 07 SrNo 77
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जून - २०१९
७३
चैत्य - ए त्रण्य टालीनई, बीजां खरतरप्रमुखनां चैत्य वांदवा-पूजवा योग्य कह्यां छइ ते मानवा । ए वातनी कुणि शंका न करवी । जे माहि आचरणानुं लक्षण कल्पभाष्यनइ विषइ कहउं छइ - यथा - "असढेण समाइन्नं जं कत्थ य केणइ असावज्जं ।
न निवारिअमन्नेहिं बहुमणुमयमेयमायरिअं ॥" एहनु अर्थ – अशठ गीतार्थि-अमायि गीतार्थि कुणिं कि जिणइं कालिं क्षेत्रिं असावद्य-पापरहित कार्य आचर्यु हुइ, अनई बीजि कुणि गीतार्थि वारिउ न हुइ, अनि घणि मान्युं हुइ, ते 'आचरणा' कहीइ, अनि एहवी जे आचरणा ते जिनाज्ञा-समान ज कहीइ, एहवं भाष्यादिकनइ विषइ कहउं छइ । यथा - असाढइन्नणवज्जं गीअत्थअवारिअं ति मज्जत्था ।
'आयरणा वि हु आण'त्ति वयणओ सुबहु मन्नंति" ॥४९॥ इति ।
एहनु अर्थ - अशठ गीतार्थि आचर्यु जे कार्य, अनि गीतार्थिं वारिउं न हुइ, मध्यस्थपणा जिननी आज्ञा कहीइ । एहवां वचन मार्टि घणुं ज आचरणा मानवी ते माटिं पहला १० बोल जे न मानइ ते गुरुपरम्परालोपी, तीर्थंकरनी आज्ञाना विराधक कहीइ तिम श्रीहीरविजयसूरि चैत्य ३ टालीनइ बीजां चैत्य वांदवा-पूजवां कह्या छइ अनइं जे न वांदइ - न पूजइ ते गुरुपरम्परालोपी, तीर्थंकरनी आज्ञाना विराधक कहीइ ।
तथा 'द्रव्यलिंगीनइ द्रव्यइ निष्पन्न चैत्य' एहनु अर्थ कोइक विपरीत करइ छइ । जे द्रव्यलिंगी खरतरप्रमुखना यति अनि तेहनु द्रव्य श्रावक तेहनां कराव्यां चैत्य निषेध्या छइ ए अर्थ खोटु जाणवु । जे मार्टि खरतरप्रमुखनां चैत्य निषेध्या तु बीजां वांदवा-पूजवां योग्य कह्यां ते किहा - ए पूर्वापर विरोध उपजइ, ते मार्टि एहनु अर्थ द्रव्यलिंगी माहात्मा तेह- द्रव्य कामण, टुमण, वशीकरण, पुस्तकलिखनादिकथी उपनु, तेहइ नीपनी प्रतिमा ते वांदवी निषेधी छइ । तिवारिं पूर्वापर विरोध टल्यु । अनइ जिम प्रश्नव्याकरणांगिं प्रथम आश्रवद्वारिं 'विहार' शब्द अ(आ?)ण्यु छइ, एहनु अर्थ कल्पसूत्र नाममालाप्रमुख ग्रंथमध्ये 'विहारो जिनसद्मनि' ए वचन माटिं जिननु प्रासाद, ते 'विहार' कहीइ । तिवारं जिनप्रासाद पापनुं हेतु थाइ, अनि तृतीय संवरद्वारि 'चेइअढे निज्जरडे' इम कहउं छइ, तिवारं जिनप्रासाद पुण्यनुं हेतु थाइ, तिवारि पूर्वापर विरोध

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