Book Title: Anusandhan 2019 07 SrNo 77
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 81
________________ ७४ अनुसन्धान-७७ उपजइ अनि सुधर्मस्वामिनां वचन तु पूर्वापरि विरोधी न हुइ, ते मार्टि इहां 'विहार' शब्दि 'बौद्धना घर' कहीइ एहवु अर्थ वखाण्यु छइ, तिवारि पूर्वापर विरोध टलु । अनि ए अर्थ मुकीनइ शास्त्रनि अनुसारइ 'विहार' शब्दि 'जिनप्रासाद' अर्थ करइ ते उत्सूत्रभाषी कहीइ। तिम 'द्रव्यलिंगी' शब्दि इहां 'महातमा' ज कहीइ ए अर्थ मुकीनइ बीजु अर्थ करइ ते उत्सूत्रभाषी कहीइ । तथा कोएक 'द्रव्यलिंगीनइ द्रव्यई निष्पन्न चैत्य'नु एहवु अर्थ करइ छइ जे द्रव्यलिंगीनउ द्रव्य श्रावक तेणइ करावी प्रतिमा वांदवी-पूजवी नही । तेहनइ मति वृद्धशालिक-लघुशालिक-कमलकलसा प्रमुखनी वांदवानु निषेध थाइ जे माटइ उपाध्यायश्रीधर्मसागरगणि स्वकृत-षोडशकश्लोकीवृत्तिनइ विषइ कहउं छइ जे "तपोवन्नाममात्रधारकपार्श्वस्थादिलक्षणे तीर्थाभासे तीर्थो" इणि पव(ठ)निं करीनइ वृद्धशालिक-लघुशालिकप्रमुखनइ पासत्था कह्या छड़, अनि पासत्था तु द्रव्यलिंगी कहीइ तिवारिं तेहनी प्रतिमा वा(वां)दवानु निषेध थाइ तु तेहनी प्रतिमा किम वांदउ छउ ? ते पूछयूँ । अनइ लघुशालिकप्रमुख तु सुविहित छइ सहु को तेहनी प्रतिमा वांदइ छइ । ते मार्टि ए स्वमतिकल्पित अर्थ जाणवु । अनि वली तेहना घरनो आहार लीइ तेहनइ द्रव्यलिंगीना द्रव्यनु भक्षण थाइ अनि जे द्रव्यलिंगीनो द्रव्य खाइ तेहनइं महादूषि]ण कहउं छइ अनि आपणे पूर्वाचार्यि खरतरप्रमुखना घरनु आहार लीधु छइ अनि हवडाइं पणि आपणा वडा लीइ छइ ते माटि इहां द्रव्यलिंगीनु द्रव्य ते माहात्मानु द्रव्य ए अर्थ इहां सत्य करी मानवु । जिम भोजनवेलाई सैंधव मागइ तिवारिं 'सैंधव' शब्दि बिड-लवणनु अर्थ जाणवु । अनि गामि जाता सैंधव मागइ तिवारि 'सैंधव' शब्दि घोडानु अर्थ जाणवो । तिम इहां 'द्रव्यलिंगीनु द्रव्य' इंणि शब्दि 'माहात्माद्रव्य' ए अर्थ जाणवु । . तथा जिम श्रुतदेवता अव्रती, अपच्चखाणी अनि स्त्री; तेहनइ पंचमहाव्रतधारी बहुश्रुत श्रीहरिभद्रसूरि आवश्यकबृहद्वृत्तिनइ धुरइ नमस्कार कीधुं छइ इत्यादिक विषइ पूर्वाचार्यि नमस्कार कीधु छइ, ते सिद्धांतमांहि नथी कहउं, पणिं आचरणाइं पूर्वाचार्यपरंपराई प्रमाण जा[ण]वु । तिम ज 'खरतरप्रमुख परपक्षीनां चैत्य गुरुपरंपराइं वांदवा-पूजवा' ते प्रमाण जाणवां । जे माटि कहउं छइ- "न खलु आज्ञाराधनतोऽन्यः पथः" इति पञ्चसूत्रे तृतीयसूत्रप्रान्ते ।

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