Book Title: Anusandhan 2003 06 SrNo 24
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 8
________________ June-2003 पउमेसु ठविअचलणो बोहंतो भविअकमलसंडाई । सामिअ तच्चिअ धन्ना ते धन्ना जेहिं दिछोसि ॥१४॥ तिअसासुरमज्झगओ कंचणपीढंमि संठिओ नाह ! । धम्मं वागरमाणो ते धन्ना जेहिं दिछोसि ॥१५॥ ते धन्ना कयपुन्ना जेहिं जिणो वंदिओ तया काले । केवल(ल्ल?)नाणसमये वंदिज्जइ तिअसलोगेहिं |१६|| धन्नेहिं तुमं दीससि नविअ अहन्नेहिं अकयपुन्नेहिं । तुह दंसणरहियाणं निरत्थयं माणुसं जम्म ॥१७॥ मिच्छत्ततिमिरवामोहिअंमि जयनाह तिहुअणे सयले । उम्मीलीऊण नयणे ते धन्ना जेहिं दिठ्ठो सि ॥१८॥ अठ्ठावयंमि सेले चउदसभत्तेण मुक्खमणुपत्तो । दसहि सहस्सेहि समं ते धन्ना जेहिं दिछोसि ॥१९॥ इअचवण-जम्म-निक्खमण-नाण-निव्वाणकालसमयंमि । दढ-मूढ-अयाणेण भत्तिए तं कुणसु नाभिनंदण, पुणो वि जिणसासणे बोही (हिं) ॥२०॥ (नोंध : २० मी गाथा पण आर्या छन्दमां ज जणाई छे. मात्र तेमां बे अडधियानी वच्चे 'दढ मूढ अयाणेण भत्ति(त्ती)ए' एटलुं चरण अतिरिक्त छ; अने तेनो सन्दर्भ विचारतां एवं अनुमान थाय छे के एक आखी गाथा हजी आमां होवी जोईए. २०मी गाथाना पूर्वार्ध पछीनो उत्तरार्ध 'दढ मढ'थी शरु थतो होय, अने त्यार पछीनी गाथानो पूर्वार्ध (जे अहीं नथी) मळी आवे तो तेनी साथे 'तं कुणसु' थी आरंभातो उत्तरार्ध जोडवो जोईए, एवं अनुमान थाय छे. आ रंचनानी बीजी हस्तप्रतो शोधवी अने तेनी साथे वाचना मेळववापूर्वक सम्पादन थर्बु जरूरी लागे छे. शी.) Co जितेन्द्र कापडिया अजन्टा प्रिन्टरी १२बी लाभ कोम्प्लेक्स, नवजीवन, अमदावाद-३८००१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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