Book Title: Anekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 28
________________ प्रोसियां का प्राचीन महावीर मन्दिर २३ इस उल्लेख के अनुसार तो सम्बत १०१७ में यहाँ मूर्ति के लिए कर दिया गया है। सम्प्रति के समय का का महावीर मन्दिर बनाया गया था। इसमें सम्बत १०११ भी कवि ने जो उल्लेख किया है, वह इतिहास को कुछ में पोसवाल वंश की स्थापना का उल्लेख किया गया है। मेल नहीं खाता। वह मन्दिर बनाने का न होकर जीर्णोद्धार का सूचक है। उपरोक्त विवरण इस उल्लेख मे देने का मतलब यही प्रशस्ति के सम्वत के आधार पर ही श्री हीरउदय के है कि प्रोसियां का महावीर मन्दिर काफी पुराना नवीं शिष्य नयप्रमोद कवि ने प्रोसिया वीर स्तवन सम्वत शताब्दी के लगभग का है। उसके सम्बन्ध में समय-समय १७१२ में बनाया है। उसमें सम्वत १०१७ के माघ वदी पर बहुत सी किवदन्तिया जुडती गई, कई तरह की को मन्दिर बनाकर उसमे मृति प्रतिष्ठित करने मान्यताएं बन गई। पर ऐतिहासिक दृष्टि से भी राजका उल्लेख है, पर साथ ही नय प्रमोद के स्तवन में इसकी स्थान के प्राचीन महावीर मन्दिरो में भी प्रोसिया के इस प्राचीनता का भी उल्लेख मिलता है। उसके अनुसार महावीर मन्दिर का विशिष्ट स्थान है, यह तो मानना ही प्रोसिया के वीर मन्दिर की प्रतिमा मूलतः सम्प्रति राजा पड़ेगा। प्रोसवाल वंश का उत्पत्ति स्थान होने के कारण ने बालू की बनवाई थी। उसकी पूजा करने के बाद प्रोसिया का वैसे भी बहुत महत्त्व है। प्रासातना के भय से उस महावीर मूर्ति को भण्डारित कर प्रोसियां गांव वर्तमान मे छोटा सा है पर वहां के दी गई और वह ११६४ वर्षों तक जमीन में ही रही। कई जनेतर मन्दिर भी बहुत प्राचान पार कलापूर्ण है फिर ऊहड ने जब प्रोसिया नगर बनाया और रत्नप्रभ अतः कला की दृष्टि से उनका विशेष महत्त्व है। जैनेतर सुरि ने ऊहड के पूत्र को संकट से बचाकर जैनी बनाया, मन्दिरो के सम्बन्ध में राजस्थान पुरातत्त्व विभाग के तब इस मूर्ति को जमीन में से निकाला गया। पहले तो डायरेक्टर श्री रत्नचन्द्र अग्रवाल आदि के कई लेख प्रकामहादेव के मन्दिर मे रखी गई, फिर स्वतन्त्र जैन मन्दिर शित हो चुके है। राजस्थान की प्रचीन मन्दिर व स्थाबन गया तब उसमें स्थापित कर दी गई। कवि नय पत्य कला का यहाँ बड़े सुन्दर रूप में दर्शन होता है। प्रमोद ने लिखा है कि १७५६ वर्ष की पुरानी इस बीर ओसियाँ स्टेशन जो जोधपुर से फलौदी जाने वाली प्रतिमा को देखकर बड़ा आनन्द होता है। पर कवि की रेलवे लाइन के बीच मे पड़ता है । प्रोसिया में जैन विद्याये बातें सुनी-सुनायी या प्रचलित प्रवाह के आधार पर लय होने के कारण यात्रियों को वहाँ ठहरने और खाने की लिखित है अतः सम्प्रति के बनाने का उल्लेख जैसे अन्य कोई असुविधा नहीं है। बहुत सी मूर्तियों के लिए किया जाता है, वैसे ही इस मृत्यु पर दान स्व० सेठ ज्ञानचन्द्र जैन (लखनऊ किराना कं०) के निधन पर निकाले गये दान द्रव्य में से बीस रुपये उनके सुपुत्र कैलाशचन्द्र जैन ने अनेकान्त पत्र को दान में दिये। धन्यवाद ! मत्री

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