Book Title: Anekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 43
________________ प्राचीन ऐतिहासिक नगरी : जूना (बाहड़मेर) 0 भूरचन्द जैन, बाड़मेर राजस्थान का पश्रिमी सीमावर्ती रैगिहानी हिता अनुसार ११ीं प्रताब्दी के आस-पास इस क्षेत्र पर ब्राह्मण बाड़मेर ऐतिहासिक एव पुरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण शासक बप्पड़ का प्राधिपत्य था और उसने अपने नाम पर स्थल रहा है। इस जिले में भग्नावशेषों के रूप में अनेकों इस नगर का नामकरण बाप्पड़ाऊ रखा। बप्पड़ ब्राह्मण इतिहास प्रसिद्ध स्थल आज भी अपने पुराने वैभवस्वरूप के वंशजों से १२ वी शताब्दी में परमार धरणीबराह के प्राचीन शिल्पकलाकृतियों को संजोये हुए विद्यमान हैं। वंशज बाहड़-चाहड़ ने लेकर इसका नाम बाहडमेर- वाहड़इस क्षेत्र का विख्यात जना (बाहड़मेर), वर्तमान बाड़मेर मेरु रखा। -मुनाबा रेलमार्ग पर स्थित जसाई रलवे स्टेशन से बाहड़मेर की प्राचीनता के सम्बन्ध में बहुत-सी लगभग चार मील दूर पहाड़ियों की गोद में बसा हुमा महत्वपूर्ण जानकारी का उल्लेख मिलता है। कर्नल टाड है। यह बाड़मेर नगर से १४ मील और शिल्पकलाकृतियो के अनुसार, वि० स० १०८२ में महमूद गजनवी के द्वारा के बेजोड़ इतिहास-प्रसिद्ध किराड़ से दक्षिण-पूर्व मे १२ गुजरात जाते समय चौहानो के इस दुर्ग जुना का भी मील की दूरी पर स्थित है । पहाड़ियों की गोद में बसा विश्वास किया गया। उद्धरण मन्त्री सकुटुम्ब वि० सं० जूना माज सूना है । यहा वर्तमान में प्राचीन नगरी की १२२३ में हुआ । इसके पुत्र कुलधर ने बाहडमेरु नगर मे अनेक इमारतों और भग्नावशेष के रूप में तीन मन्दिरो उत्तुग तोरण का जैन मन्दिर बनाया जिसका उल्लेख श्री के प्रारूप दृष्टिगोचर हो रहे है । यह प्राचीन स्थल १०वीं क्षमाकल्याणकृत खतरतगगन्छ पट्टावली में इस प्रकार शताब्दी तक आबाद रहा है। विशाल पहाड़ियों के बीच किया हुआ है :में यह नगरी बसी हुई थी, जिसके अवशेष प्राज भी जूना "उद्धरणमन्त्री सकुटम्ब: खतरवच्छीयावच (सं० की पहाड़ियों पर दस मील के घेरे मे बने किले की १२२३) बभूव । तस्य च कुलधरनामा पुत्रो जातः येन प्राचीरों एवं इमारतों से अवगत हो रहे हैं। ये पुरातत्व को बाहड़मेरु नगरे उत्तुंगतोरणप्रासादः कारितः ॥" दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण बने हुए है, किन्तु उनका वि० सं० १२३५ (ई. सन १९७८) मे चौहानों से अभी तक किसी प्रकार का सर्वेक्षण नहीं हुआ है। संघर्ष लेते हुए शहाबुद्दीन मोहम्मद गौरी ने मुल्तान से वर्तमान जना के नाम से विख्यात ऐतिहासिक स्थल लोदवा देवका किराडू जूना पर पाककण किया । किराडू प्राचीन समय में जना, बाहणमेर, बाहड़मेरु, बाहडगिरि, के विख्यात सोमनाथ मन्दिर को तोड़ा और लूटा। बाप्पडाऊ आदि अनेक नामों से विख्यात नगर रहा है। मन्दिर को तोड़ने के साथ मन्दिर के चारों और भीषण इस नगर की स्थापना परमा धरणीवारह या धरणीगर अग्निकाण्ड भी किया गया। जूना के दुर्ग एवं जैन मन्दिरों राजा के पुत्र बाहड़ (वाग्भट्ट) ने विक्रम की ग्यारवी को भी इन्ही के द्वारा तोड़ने की वारदात की गई। शती के उत्तरार्द्ध में वि० सं० १०५६ के पश्चात् की वि० सं० १२२३ में उद्धरण मन्त्री के पुत्र कुलघर मुंहता नैणयो ने भी धरणीवराह के पुत्र बाहड़-छाड़ होने द्वारा बाहड़मेरु में बनाये उत्तुंग तोरण के श्री आदिनाथ का उल्नेख किया है। "वाग्भटमेरु" शब्द का उल्लेख भगवान के जैन मन्दिर पर श्री प्राचार्य जिनेश्वर सूरिजी चौहान चाचिग देव के संघामाता मन्दिर के वि० सं० ने वि० सं० १२८३ माह वदी २ के दिन ध्वजा फहराई। १३१६ के शिलालेखों में मिलता है । भाट साहित्य के श्री प्राचार्य जिनेश्वर सूरिजी के तत्वाधान में वि० सं०

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