Book Title: Anekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 89
________________ मान्धातृ नगर मडेश्वर प्रशस्ति का मंत्री वस्तुपाल से कोई सम्बन्ध नहीं ! श्री अगरचन्द नाहटा, बीकानेर कभी-कभी विशिष्ट व्यक्ति की भी कुछ ऐसी धारणा एवं सस्ता है। पूज्य पुण्यविजय जी का उसके बाद बन जाती है कि विरोधी बातों की ओर लक्ष्य न देकर बम्बई में अचानक स्वर्गवास हो गया। अत: अभी-अभी या अवहेलना करके अपनी धारणा को पुष्ट करने के लिए आत्मानन्द जैन सभा भावनगर की मासिक पत्रिका का तर्क उपस्थित करता है। उसका मन अपनी धारणा के विशेषाक पूज्य पुण्य विजय जी के स्मृति में प्रकाशित इर्द-गिर्द ही घूमता रहता है इससे सहज ही कोई ऐसी हुआ है वह प्रस्तुत ज्ञानांजलि के पूर्ति रूप में समझा जा गलती हो जाती है जिसकी ऐसे व्यक्ति से उम्मीद की सकता है। नही जा सकती। इसी का एक उदाहरण प्रस्तुत लेख मे उपयुक्त ज्ञानॉजलि के पृष्ठ २९७ से ३२४ में पुण्य दिया जा रहा है। विजय जी का एक महत्वपूर्ण निबन्ध प्रकाशित हुआ है प्रागम प्रभाकर स्वर्गीय मुनिश्री पुण्यविजय जी जिसका शीर्षक है-'पुण्यश्लोक महामात्य वस्तुपाल ना बहत ही गम्भीर एवं ठोस विद्वान् तथा माध्यस्थ वृत्ति अप्रसिद्ध शिलालेखो तथा प्रशस्तियो लेखो।' महामात्य वाले उदार महापुरुष थे। उनके प्रति मेरे मन में बहुत वस्तुपाल और तेजपाल अपने साहित्य, कला व धर्म प्रेम श्रद्धा है। उनके दीक्षा पर्याय की षष्ठि पूर्ति का समारम्भ के लिए बहत ही प्रसिद्ध व्यक्ति हैं। राजनीति में भी संवत् २०२४ मे बड़ौदा में मनाया गया। इस उपलक्ष्य में उनकी कीर्ति प्रक्षमन रही है। प्राबू का दूसरा कलापूर्ण ज्ञानाजलि नामक एक ग्रंथ संवत २०२४ के वसन्त पंचमी मंदिर इन्हीं का बनवाया हुमा है जो लुणीक बसही के को सागर गच्छ जैन उपाश्रय बड़ौदा से प्रकाशित हुमा नाम से प्रसिद्ध है। इन मंत्री भोर बन्धु युगल ने तीर्थाहै। इस ग्रंथ में पूज्य पुण्य विजय जी के लेखो का संग्रह घिराज शत्रुजय और गिरनार पर भी जैन मंदिर बनवाये होने के साथ-साथ उनके अभिनन्दन में लिखे हुए विद्वानों थे। इनमें से शत्रुजय मन्दिर के दो विशाल और महत्वके लेख प्रकाशित हुए हैं। उनके लिखित एव संपादित पूर्ण शिलालेख अब तक प्रज्ञात थे । अत: उन दोनों ग्रंथों की सूची इसमें दी गई है। ग्रंथ बहुत ही महत्त्वपूर्ण शिलालेखों के फोटो सहित पाठ इस लेख में देने के साम है। डा. भोगीलाल सांडेसर, डा. उमाकान्त शाह, साथ पूज्य पुण्यविजय जी को श्री लावण्यविजय जी जैन कान्तिलाल कौरा, रतिलाल देसाई इस ग्रंथ के सम्पादक ज्ञान भण्डार राधनपुर से १५वीं शताब्दि के अन्त की हैं। गुजराती, हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी चार भाषाओं लिखी हुई एक प्रति प्राप्त हुई जिसमें वस्तुपाल सम्बन्धी में इसकी सामग्री संकलित है । पूज्य पुण्यविजय जी १. प्रशस्तियां लिखी हुई है। उन प्रशस्ति लेखों को भी सम्पादन के काम में ही अधिक लगे रहे इसलिए निबन्ध इस लेख में प्रकाशित किया गया है और सब प्रशस्तिों या लेख बहुत कम ही लिखे। अतः उनके सम्पादित ग्रंथों का गुजराती में सारॉश भी दे दिया गया है। वस्तुपाल की भमिका प्रस्तावना आदि भी इस ग्रंथ मे संकलित कर सम्बन्धी इन प्रशस्तियों को प्रकाशित करने का श्रेय पूज्य ली गई है। अभिनन्दन ग्रंथ के स्वरूप और साइज के पुण्यविजय जी को ही है। अनुसार इस ग्रथ का मूल्य १५ रुपया बहुत ही उचित इन प्रशस्तियो सम्बन्धी उक्त लेख को मैं कल वैसे इन

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