Book Title: Anekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 87
________________ ४०, वर्ष २७, कि०२ अनेकान्त ऊर्ध्व भुजाप्रो के प्रायुध अस्पष्ट है, पर निचली मे अभय तित है। पदम पर विराजमान यक्षी की दक्षिण भुजाओं एव कलश प्रदर्शित है। स्पष्ट है कि देवगढ में पद्मावती में वरद वाण,, खड्ग, चक्र (?), एवं वाम मे धनुष, की स्वतन्त्र मुनियो की लोकप्रियता के बाद भी जिन- बैटक, सनालपदम प्रदर्शित है ।" यक्षी के निरुपण में सयुक्त मूर्तियों मे पदमावती के पारस्परिक स्वरूप को वाहन, मर्पफणों एवं उछ मीमा तक ग्रागृधों (पद्म) के अभिव्यक्त करने का प्रयास नहीं किया गया। उसी स्थल । सन्दर्भ मे दिगम्बर परम्परा का निर्वाह किया गया है। की स्वतन्त्र मूर्तियों में प्राप्त विशेषतायों को भी उनमें नहीं प्रदर्शित किया गया। सर्पफण भी केवल दो ही उदा. दक्षिण भारत-तात्रिक प्रभाव के फलस्वरूप दक्षिण हरणों मे प्रदर्शित है। भारत में पद्मावती को विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त हई । वह अन्य स्थलो के विपरीत खजुराहो में पार्श्वनाथ के १ दक्षिण भारण की तीन सर्वाधिक लोकप्रिय ययों सर्पप.गोसे युक्त यक्षी का चित्रण विशेष लोकप्रिय रहा है। (अम्बिका, पद्मावती एवं ज्वालामालिनी) में में एक खुले सग्रहालय (के ५, ११वी शती) की एक मूर्ति तीन । है। कर्नाटक में पदमावती सर्वाधिक लोकप्रिय यक्षी रही सर्पफणों मे मंडित द्विभज यक्षी की एक अवशिष्ट भुजा है। यद्यपि पद्मावती का सम्प्रदाय काफी प्राचीन रही मे सम्भवतः पद्म स्थित है। खजुराहो संग्रहालय है. परन्तु दसवी शती के वाद के अभिलेखिकी साक्ष्यों मे (१६१८) की दूसरी मूर्ति में तीन सर्पफणों से आच्छा निरन्तर पद्मावती का उल्लेख प्राप्त होता है। शिलाहार एवं रट्र राजवंशों और कुछ अन्य विशिष्ट व्यक्तियो के दित द्विभुज यक्षी की वाम भुजा में फल प्रदर्शित है, पर दक्षिण भुजा की सामग्री अस्पष्ट है। खुले संग्रहालय की मध्य पद्मावती का पूजन विशेष लोकप्रिय रहा है, जो ग्यारहवीं शती की दो अन्य मूर्तियों में यक्षी चतुर्भुज है। अपनी प्रशस्तियो में 'पद्मावती देवी-लब्ध-वरप्रसाद' प्रादि एक उदाहरण (के०-१००) में सर्पफणों से युक्त यमी की उपाधियो का उल्लेख करते थे। साथ ही कर्नाटक के दो प्रवशिष्ट दक्षिण भुजाप्रो में अभय एवं पद्म प्रदर्शित विभिन्न स्थलो से ग्यारहवी मे तेरहवी शती के मध्य की है । दूसरी मूर्ति (के०-६८) में पांच सर्पफणों से आच्छा कई पद्मावती मूर्तिया प्राप्त होती है। कर्नाटक के चारदित यक्षी ध्यान मुद्रा में आसीन है। यक्षी के करों मे वाड़ जिले में ही मल्लिमेण मूरि ने 'भैरव पद्मावती-कल्प' , सप (त्रिफणा), अस्पष्ट एव जलपात्र प्रदशित है। एवं 'बालिनी-कल्प' जैसे नांत्रिक प्रन्या की रचना की. स्पष्ट है कि केवल अन्तिम दो मतियों मे ही पदमावती जो पद्मावती एव ज्वालिनी की विशेष प्रतिष्ठा की ही को विशिष्ट स्वरूप में अभिव्यक्त किया गया। सूचक है। उड़ीसा-खण्डगिरि की नवमनि एवं बारभजी गुफाओं कन्नड क्षेत्र से प्राप्त पार्श्वनाथ मूर्ति (१०वी-११वी के सामूहिक अंकनों में भी पार्श्वनाथ के साथ पदमावती शती) मे एक सर्पफण से युक्त पद्मावती की दो भुजाओ भामूर्तित है। नवमुनि गुफा में पार्श्व के साथ उत्कीणित मे पदम एवं प्रभय प्रदगित है।८ कन्नड़ शोध सस्थान द्विभुज यक्षी ललितमुद्रा में पद्मासन पर विराजमान है। संग्रहालय की पार्श्वनाथ मूर्ति मे चतुर्भज पद्मावती पद्म, जटामुकुट से सुशोभित त्रिनेत्र यक्षी की भुजानों में अभय एवं पद्म प्रदर्शित है। प्रासन के नीचे उत्कीर्ण प्रस्पष्ट २४. पित्रा, देवल "शासनदेवीज खंडगिरि", पृ. १३३ । नुकीली प्राकृति कहीं कुक्कुट-सर्प तो नहीं है ?" यक्षी ' २५. देसाई, पी० बी०, जैनिज्म इन साऊथ इण्डिया, का चित्रण अपारम्परिक है। चारभुजी गुफा में पार्श्व के शोलापुर, १६५७, पृ० १६३ । साथ पांच सर्पफणों से मण्डित अष्टभुज पद्मावती प्रामू २६. तदेव, पृ० १६३ ।। २७. तदेव, पृ० १०। २३. मित्रा, देबल, 'शासनदेवीज इन दि खण्ड गिरि केव्स' २८. हाडवे, डब्ल्यू एस. "नोटम प्रान टू जैन मेण्टल जर्नल एशियाटिक सोसाइटी (बंगाल) खंड १, इमेजेज" रुपम अक १७, जनवरी १९२४, पृ. अंक २, १९५६, पृ. १२६ । ४८-४९ ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116