Book Title: Anekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 88
________________ उत्तर भारत में जैन यक्षी पद्मावती का प्रतिमा निरूपण पाश, गदा, (या अंकुश) एवं फल धारण करती है।" उपयुक्त अध्ययन से स्पष्ट है कि दक्षिण भारतीय इसी संग्रहालय में चतुर्भुज पद्मावती की ललित मुद्रा मे श्वेताम्बर परम्परा के अनुरूप ही मूर्त प्रकनों में पद्माप्रासीन दो स्वतन्त्र मूर्तियाँ भी सुरक्षित है। पहली मूर्ति वती के साथ पाश, अकुश एवं पद्म का प्रदर्शन लोकप्रिय (के. एम०८४) में एक सर्पफण मे मण्डित यक्षी का रहा है : शीर्ष भाग में सर्पफण एव वाहन रूप मे . कुक्कुट वाहन कुक्कुट-सर्प है। यक्षी की दोनों दक्षिण भुजाएं सर्प (या कुक्कुट) का चित्रण भी परम्परासम्मत है । कुछ खण्डित है, और वाम में पाश एव फल प्रदशित है। यक्षी उदाहरणों में वाहन रूप में हम का चित्रण दक्षिण भारकी किरीट मकूट मे लघ जिन प्राकृति उत्कीर्ण है।" तीय दिगम्बर परम्परा का अनुपालन है। हंस वाहन मे दूसरी मूति मे पाँच सर्पफणो से सुशोभित पदमावती की युक्त मूतियों में भी पायुधो का प्रदर्शन श्वेताम्बर परभुजाना में फल, अकुश, पाश एव पद्म प्रदर्शित है । यक्षी म्परा से ही निर्देशित रहा है। का वाहन हम है।" बादामी की गुफाः ५ के समक्ष की सम्पूर्ण अध्ययन में स्पष्ट है कि दसवी शती तक दीवार पर भी ललित मद्रा में आसीन चतुर्भुज यक्षी (?) सर्वत्र यक्षी का द्विभज स्वरूप ही लोकप्रिय रहा है परन्तु आमुर्तित है। प्रासन के नीचे उत्कीर्ण वाहन सम्भवतः ग्यारहवी शती में यक्षी का चतुर्भुज स्वरूप में निरूपण हस (या क्रौच पक्षी) है। सर्पफणों से विहीन यक्षी के प्रारम्भ हो जाता है। जिन-सयुक्त मूर्तियों में पद्मावती करो में अभय, अकुश, पाश एव फल प्रदर्शित है।" के साथ वाहन एवं विशिष्ट प्रायुध सामान्यतः नहीं प्रदनमिलनाडु के कलुगुमलाई से भी चतुर्भुज पद्मावती शित किये गये है। केवल कछ उदाहरणों में ही सर्प एव की ललितासीन मूर्ति (१०वी-११वी शती) प्राप्त होती है । पद्म के प्रदर्शन में परम्परा का निर्वाह किया गया है। शीव भाग में सर्पफण से मंडित यक्षी फल, सर्प, अकुग श्वेताम्बर परम्परा में केवल विमलवसही (देवक लिका : एव पाश धारण करती है।" ४) एव प्रोमिया (महावीर मन्दिर : बलानक) के दो कर्नाटक से प्राप्त तीन चतुर्भुज पद्मावती सम्प्रति उदाहरणो मे ही क्रमश. पारम्परिक एवं विशिष्ट लक्षणी प्रिस पाव वेल्स म्यूजियम, बम्बई मे सुरक्षित है।" तीनो वाली यक्षी ग्रामलित है, जबकि दिगम्बर स्थलो पर कई उदाहरणो मे एक सर्पफण से सुशोभित पद्मावती ललित उदाहरणों में विशिष्ट लक्षणों वाली यक्षी का चित्रण प्राप्त माह मद्रा में विराजमान है। पहली मूर्ति में यक्षी की तीन । होता है, जो कभी पूर्णत. परम्परासम्मत नहीं है । स्वतत्र अवशिष्ट भुजाओं में पद्म, पाश, एव अकुश प्रदर्शित है। अकना म श्वनाम्बर एव दि प्रकनो में श्वेताम्बर व दिगम्बर स्थलो पर वाहन एव दूसरी मूर्ति मे एक अवशिष्ट भुजा में अकुश (ऊर्ध्व विशिष्ट प्रायुधा (पान, अकश एव पर विशिष्ट प्रायुधो (पाटा, अकरा एव पदम) क सन्दर्भ में दक्षिण) स्थित है । तीसरी मूर्ति में मासन के नीचे उत्कीर्ण परम्परा का अपेक्षाकन अधिक पालन किया गया है। पक्षी वाहन सम्भवतः कुक्कट या शक है। यक्षी वरद, तीन, पांच या सात सर्पफणो से सुशोभित यक्षी का वाहन अंकुटा, पाश एव सर्प से युक्त है। सामान्यतः कुक्कुट-सर्प (या कुक्कुट) रहा है। दिगम्बर २६. अन्निगरी, ए. एम. “एगाइड टू द कन्नड रिसर्च स्थलो पर यक्षी की दो भजायो में पदका प्रदर्शन विशेष इन्स्टीच्यूटट म्यूजियम, धारवाड़", १६५८, पृ. १६ । लोकप्रिय रहा रहा है। कुछ स्थलो की बहुभुजी मूर्तियो ३०. नदेव, पृ०२६। मे वाहन रूप मे कुक्कुट-सर्प के साथ ही पद्म एवं कम ३१. अन्निगेरी, "गाइड कन्नड़ रिसर्च म्यूजियम, पृ० १६ । का चित्रण भी प्राप्त होता है । यक्षी की भुजानो मे पद्म ३२ माकलिया, हंसमुख धीरजलाल, जैन यक्षज ऐण्ड के साथ ही सर्प" का प्रदर्शन भी प्राप्त होता है। बहुयक्षिणीज "बलेटिन डेकन कालेज रिसर्च इन्स्टी-- भजी मूर्तियों में पाशराव अकुश केवल देवगढ़ में ही ट्युच", खं० १, १९४० पृ. १६१ । चित्रित है। शाहडोल भी द्वादशभुजी मूति में भी पद्म, ३३. देसाई, पी. बी., "जैनिज्म साऊथ इण्डिया", प्र. ६५।। एव सर्प के साथ अकुम प्रदर्षित है। मसाऊथवा १.६२ ----- ---- 16 माकलिया, "जैन यक्षाज एण्ड यक्षिणीज" ० ५ भलरपदन राव बाभजी गुफा के दो उदाहरणो म ९५८-१५६ । सप अनुपस्थित है।

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