Book Title: Anekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 102
________________ भारतीय जन कला को कसरि नरेशों का योगदान पार्श्वनाथ को प्रतिमायें है। की चार पद्मासन स्थित प्रतिमायें शेष हैं। पार्श्वनाथ की प्रतिमायें अड़भार, कारीतलाई, पेन्डा, उच्च चौकी पर मध्य में धर्मचक्र के ऊपर महावीर सिंहपुर एवं शहपुग से प्राप्त हुई है। कारीतलाई से का लाछन सिंह अंकित है। लाछन के दोनों पार्श्व पर पाप्त रायपुर सग्रहालय में संरक्षित, '६" प्राकार की एक-एक सिंह चित्रित किये गये है। धर्मचक्र के नीचे एक १०वी ११वी शती के मध्य निमित एम चतुर्विशति पट्ट स्त्री लेटी हुई है जो चरणों में पड़े रहने का संकेत है। म मूलनायक प्रतिमा तेईसवे नीर्थकर पार्श्वनाथ की है। महावीर का यक्ष मातंग अंजलिबद्ध खड़ा है किन्तु यक्षी वे पद्मासन मे ध्यानस्थ बैठे है । उनके नेत्र अर्धनिमीलित सिद्धायिका चंवरी लिए हुए है। इसके दोनों ओर पूजा हे और दष्टि नासिका के अग्रभाग पर स्थिर है। पाश्व- करते भक्त चित्रित किये गये हैं। नाथ की ठुड्डी नुकीली , कान लबे, केश घुघराले और २.तीर्थकरों को स्थानक मूतियां उष्णीषवद्ध है। उनकी छाती पर श्री वृक्ष का प्रतीक है। कलचुरि कला में तीर्थङ्करों की स्थानक प्रतिमायें पार्श्ववाथ को सर्प पर विराजमान चित्रित किया गया है, बहुत ही कम मात्रा में प्राप्त हुई है। स्थानक प्रतिमानो जिसकी पूछ नीचे लटक रही और फैले हुए सप्तफण का मे शातिनाथ एव महावीर की प्रतिमायें है। इसके अतिछत्र तीर्थकर के मस्तक के ऊपर तना हुआ है। सप्तफण रिक्त कारीतलाई से प्राप्त खडे तीर्थर की प्रतिमा प्राप्त के छत्र के ऊपर कल्पद्रम के लटकते हए पत्ते और उनके हुई है परन्तु प्रतिमा पर किसी प्रकार के लांछन न होने ऊपर दुदभिक है। फण के दोनों ओर एक-एक हाथी है। के कारण तीर्थङ्कर की पहिचान सम्भव नही है। जिस पर बैठे हुए महावत के तन का ऊपरी भाग खंडित है। हाथियों के नीचे दोनो ओर एक-एक विद्याधर है जो सोलहवें तीर्थङ्कर भगवान शातिनाथ की प्रतिमायें कारीतलाई एवं बहुरीबंद से प्राप्त हुई है। कारीतलाई से हाथ मे पुष्पमाला लिए है। प्राप्त प्रतिमा मे शांतिनाथ कायोत्सर्ग प्रासन में खड़े है। ___ तीर्थंकर के दायें सौधर्मेन्द्र एवं वाई पीर ईशानेन्द्र उनका मस्तक खंडित है। हृदय पर श्रीवृक्ष का चिन्ह, चंवरी लिए हुए खड़े है। पार्श्वनाथ के तीन प्रोर की मस्तक के पीछे प्रभामण्डल, मस्तक के ऊपर त्रिछत्र और पट्टियों पर अन्य तीर्थङ्करों की छोटी-छोटी प्रतिमायें बनी पुष्पमालाओं से युक्त विद्याधर तथा तीर्थङ्कर के दायें-बायें है। दाहिने ओर की पट्टी पर है और बायें ओर की पट्टी परिचारक इन्द्र आदि स्पष्ट चित्रित किये गये है। शांतिपर ८ प्रतिमायें है । शेष ६ तीर्थरो की प्रतिमायें ऊपर नाथ के पादपीठ पर दो सिहों के मध्य हिरन चित्रित की आड़ी पट्टी पर बनी हुई थी जो अब खडित हो गया किया गया है जो इनका लांछन है। इनका यक्ष गरुड है। इस प्रकार मूलनायक को मिलाकर इस प्रतिमा मे और यक्षी महामानसी चौकी पर स्थित है। कुल २४ तीर्थङ्कर हैं। प्रतिमा की चौकी पर दो सिहों के अन्तिम तीर्थङ्कर भगवान महावीर की ४' ४"x मध्य धर्म चक्र स्थित है। सिंहों के पास क्रमशः धरणेन्द्र १६' आकार की एक प्रतिमा जबलपुर से प्राप्त हुई , एव पद्मावती बैठे है । उनके मस्तक पर भी फण है। थी जो अाजकल फिल्डेलफिया म्यूजियम ग्राफ पार्ट अन्तिम तीर्थङ्करभगवान महावीर की एक ही प्रासन मंग्रहालय में सरक्षित है। १०वी शती में निर्मित, शामप्रतिमा कारीतलाई से प्राप्त हुई है। ३' ५" प्राकार की बादामी बलुआ पापाण से निर्मित महाबीर की यह नग्न इस प्रतिमा में महावीर उच्च सिहासन पर उस्थित प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में खडी है। हृदय पर श्रीवत्स पद्मासन में ध्यानस्थ बैठे है। उनके केश घुघराले तथा का चिन्ह -कित है। मुर्ति के हाथ घटने तक लवे है । तथा उष्णीपबद्ध है और उनके हृदय पर श्रीवृक्ष का चिह्न मूर्ति के नीचे दो लघु पाश्र्वरक्षक है उनके सामने एक-एक है। प्रतिमा का तेजोमण्डल युक्त ऊपरी भाग तथा वाम भक्त घुटने के भार पर बैठे है। महावीर के शीर्ष के दोनों पाव खडित है। तीर्थङ्कर के दक्षिण पार्श्व मे पट्टी पर पार्श्व पर एक-एक उड़ते हुए गंधर्व अंकित है। महावीर उनके परिचारक सौधर्मेन्द्र खड़े है तथा अन्य तीर्थङ्गरों के मस्तक के ऊपर तीन छत्र हैं। छत्र के किनारे दो

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