Book Title: Anekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 109
________________ ६२, वर्ष २७, कि०२ अनेकान्त विभिन्न राजपूत कुलो से संभूत कहते है, कभी पूर्ण जाति राजस्थान, की ही कोई जाति लगती है। वैसे कर्णाटक में को झाला राजपूतो से उत्पन्न बताते है। इनमें जैन एक पचम जाति है, जिसमें कुछ तो जैन हैं, शेष लिंगायत अल्प ही है।' है"। अजुध्यापूर्व अयोध्यावासी-वैश्य लगते है। ये उ०प्र० ___डौडिया-वैश्य डौडिया-क्षत्रियों के समस्थानिक लगते बँदेलखण्ड और बिहार में रहते है" इस नाम के विभाग हैं । संभव है ये और डीड, जो माहेश्वरियों का भेद है, अन्य जातियों में भी है"। कुछ समय से इस जाति मे एक ही हो । हरसौरा राजस्थान के नागौर जिले में स्थित कही कही हलवाई, मडभूजे प्रविष्ट हो गये है । पवड या हरसौर के" वासी थे। हरसोला ब्राह्मण इनके समस्थानिक पवाडे राजस्थान के उत्तर मे, पंजाब में है। श्वेताबर थे। गोरवार या गोरावर वैश्य गोलवार-ब्राह्मणों के सम- जैन है ।वेस या बैस नामक कई जातियां बिहार कुमायुं, स्थानिक है। मोदीच्यसहस्र-ब्राह्मणो को उदयपुर के राजा महाराष्ट्र व उ० प्र० है। ने गोल आदि बाईस गांव दान किये जिससे वे गोलवार भटेरा या भटनेरा, भट्टनेर नामक स्थान से और ब्राह्मण हुए। नारायना जाति नरेणा नगर से निकली है जो कोरटा नामक स्थान से (राजस्थान मे) निकले जान अजमेर से ६६ मील दूर स्थित है। चीतोरा या चित्तौडा पडते है । इनके अलावा चतुरथ, जलाहर, नरसिंगपुरी, चित्तौड़गढ़ के वासी थे । कोई-कोई इन्हे उन ब्राह्मणो का नगेद्रा, बघनौरा, गौड श्रीगौड और सहेलवाल जातियों के वंशधर कहते हे जो चित्तौड मे बसने के पूर्व ब्रह्मकर्म उल्लेख मिलते है।। त्याग' चुके थे। इनके द्वारा प्रतिष्ठापित जैन मदिर व जिन जातियो के नाम इस सूची मे नही है, उनमे से मूर्तियाँ बारहवी शती से मिलते है"। धाकरा या धर्कट कछ ये है मेडतवाल, सांभरिया (सभर), अजमेरा, नागदा, जाति के दसवी शतावदी से मूर्तिलग्व मिलते है । दिगबर नगौरिया, कनौजिया, खडायते (खण्डियात), श्री श्रीमाल, श्वेतांबर दोनों ही रहे है . पर वर्तमान में परिचय नही हथुण्डिया, मेवाडा। मिल सका । धाकड नाम की एक कृषक जाति राजस्थान देखा जाये तो जातियों को पहिचानने का प्रयाम और महाभारत में अवश्य है। मोर या मोढ जाति गजरात विशेष सफल नहीं रहा है । कई जातियों का तो नाम ही मे है, इनमे कुछ जैन भी होते है। महात्मा गाधी इसी शेष रहा है। सभव है वर्षमान पुराणकार ने भी कई के के थे । नागर-वैश्य और नागर-ब्राह्मण बडनगर वासी थे। केवल नाम ही सुने हो बधेलवाल, पोरवाल आदि कुछ ये अधिकतर गुजरात मे है। कपोल बनिये सौराष्ट्र मे जातियो को अग्रवाल, प्रोसवाल आदि के साथ क्यों नहीं स्थित कडोल-ब्राह्मणो के यजमान थे । रैकवार रखा गया यह स्पष्ट नहीं है। फिर भी सभी जातियो को हो सकता है गुजरात के रायकवाल ब्राह्मणों के तीन वर्गों में रखने का प्रयास उचित ही लगता है । बँदेलसमस्थानिक हो । इस नाम के सूर्यवंशी क्षत्रिय और खण्ड स्थित समैया और चन्नागरे जातियों का नाम किसी धीवर भी होते है । लाड या लाट-गुजरात स्थित लाट भी वर्ग मे न होना आश्चर्यजनक है। ये तारणपथी देश वासी थे। ये गुजरात, राजस्थान, बरार आदि प्रदेशो दिगंबर जैन है, ताराणपथ परवार जातीय तारणस्वामी मे बसते है" । बहुत से जैन मी है। जबस! गुजरात के द्वारा सोलहवी सदी मे स्थापित हुआ था। मूर्ति के स्थान भड़ोंच जिले में स्थित जम्बुमर के वासी लगते है। पंचम पर शास्त्र-पूजा करते है । पहले अन्य जैनों मे अधिक २८. 'क्षत्रिय वंशावली' ठाकुर गनपतामह, पृ० ५५ । सपर्क नही था पर अब एकाकार ही हो गये है। समैया २६.KC, Jain p 330 जातीय सागरवासी भगवादास शोभालाल जैन वंदेनव३०. K.C Jain p. 316. खण्ड के जैनों से सर्वाधिक संपन्न माने जाते है। ३१. अनेकांत, अक्टू० ७२, पृ० २०८ । ३४. हि० वि०, ३२. ब्रा०, पृ० ४०२।। ३५. वि० थि०, भा० २२, पृ० ३८५। ३३.हि. वि०. भा० २०, पृ० २४० । ३६. E A.H. Blunt, p. 341.

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