Book Title: Anekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 106
________________ वर्षमानपुराण के सोलहवें अधिकार पर विचार फिर ग्यारह जातियां गिनाई है जो कवि के ज्ञान के २४. माहेश्वरवार अनुसार अंशत: जैन है या जैन धर्म से प्रभावित है। इनके अन्य वैश्य जातियाँ : बाद अन्य ६०० वैश्य जातियाँ गिनाई गई है। २६ पण्डितवाल, २६. डोडिया, २७. सहेलवाल, __ साढे बारह का अंक परंपरागत सा लगता है। ठीक २८. हरसौरा, २६. गोरवार, ३०. नारायना, ३१. यही साढे बारह जातियां 'परवार-मर-गोत्रावली' में गिनाई सीहोरा, ३२. भटनागर, ३३. चीतोरा, ३४. भटेरा गई है। १६३६ ई० की 'सिहासन-बत्तीसी' मे साढे ३५. हरिया, ३६. धाकरा, ३७. वाचनगरिया, ६८. बारह वैश्य जातियों का उल्लेख है। महाराष्ट्रीय देशस्थ मोर, ३६. वाइडाको, ३०. नागर, ३१. जलाहर, ३२. ब्राह्मणों के साढे बारह ज्ञाति के सच्छद्र (मराठा आदि) नरसिंगपुरी, ३३. कपोला, ३४. डोसीवाल, ३५. नगेंद्रा, यजमान कहे जाते है। ३६. गौड, ३७. श्रीगौड़, ३८. गागड़, ३६. डाख, ___वर्धमान पुराण में साढ़े बारह प्रसिद्ध जैन जातियों ४०. डायली, ४१. बधनौरा, ४२. सीरावान, ४३. को 'पांत इक भात' अर्थात् एक पंक्ति मे एक ही समान धन्नेरा, ४४. कथेरा, ४५. कोरवाल, ४६. सूरीवाल, उच्चता वाली कहा गया है। पाठातर में 'धरम सनेही ४७. रैकवार, ४८. सिंध वाल, ४६. सिरैया, ५०. जानो भ्रान' है जो समानार्थी है। परवार-मर-गोत्रावली लाङ, ५१. लड़ेलवाल, ५२. जोरा, ५३. जंबूसरा, ५४. मे यही १२॥ जातियाँ समान कही गई है। यह जैनो मे सेटिया, ५५ चतुरथ, ५६ पचम, ५७. अच्चिरवाल, परस्पर समता एव भ्रातभाव का द्योतक है। ५८. अजुध्यापूर्व, ५९ नानावाल, ६० मडाहर, ६१. ___ इसके बाद कवि ने ग्यारह अन्य जातियां गिनाई है, कोरटवाल, ६२. करहिया, ६३. अनदोरह, ६४. हरदो. जिनमें उसके विचार से, "जैन लगार' अर्थात जैनत्व का रह, ६५. जहरवार, ६६. जेहरी, ६७ माघ, ६८. प्रभाव विद्यमान है । जैसा कि हम आगे देखेंगे, ये या तो नासिया, ६६ कोलपुरी, ७०. यमचौरा, ७१. मैसनपुरअभी भी अशतः जैन या पूर्वकाल मे थी। इनके पश्चान् वार, ७२. वेस, ७३. पवडा, ७४ औमदे। साठ अन्य वैश्य जातियो के नाम है । इनमे से भी कुछ इनमें से कुछ का सक्षिप्त परिचय उपयोगी होगा। जातियो में जैन वर्ग विद्यमान है, पर सभवत दूरस्थ होने गोला पूरब बंदेलखण्ड के निवासी है । यह कवि की जाति से कवि को इस बात का ज्ञान न था। है जिसका उसने अागे परिचय दिया है । गोलापूर्व एक जातियो के नाम इस प्रकार है। ब्राह्मण जाति का भी नाम है' जो कृषि से निर्वाह करते साडे बारह जैन जातियां : है। किसी-किसी के मत से ये सनाढ्य-ब्राह्मण के अंतर्गत १. गोलापूरब, २ गोलालारे, ३. गोलसिधारे, हैं। गोलापूरव जैन बीसविसे, दस बिसे, और पचविसे ४. परवार, ५. जैसवार ६. हुमडे, ७. कठनेरे, ८. भागों में विभक्त है, जिनमे दसबिसे भेद नष्ट हो.. खण्डेलवाल, ६. बहरिया, १०. श्रीमाल ११. लमेंच . चुका है। इस जाति के ग्यारवी शताब्दी से शिलालेख १२. प्रोसवाल, १३, अग्रवाल (पाधी जाति) मिलते है । गोलालारे (गोलाराडे) और गोलसिधारे भी 'जंन लगार' वाली जातियों : विशेषकर बुंदेलखण्ड के निवासी है, जिनके बारे में १४. जिनचेरे, १५. बाधेलवार, १६ पद्मावति अनुमान किया जाता है कि ये और गोलापूर्व किसी एक पुरवार, १७ ठम्सर १८. गहपति, १६. नेमा, २०. ही गोला नामक स्थान के निवासी होंगे। गोलाराडे जाति असैटी, २१, पल्लिबार २२ पोरवार, २३ ढढतबाल, के शिलालेख बारहवी शताब्दी से मिलते है। परवार बंदेलखण्ड की सबसे प्रसिद्ध जैन जाति है। इन्हे लेखो मे ४. 'नरेणा का इतिहास' डा. कैलाश चन्द्र जैन, अनेकात, नवम्बर ७१, पृ० २१८ । पौरपट्ट या पुरवाड कहा गया है। बुंदेलखण्ड के जैनों में ५. 'ब्राह्मणोत्पत्तिमार्तण्ड' हरिकृष्ण शास्त्री, १९४८ ई० ६. Caste in India: J.H. Hutton, p. 281. पृ० १४३ । ७. हिंदी विश्वकोष, भा० ६, पृ० ६०१ ।

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