________________
उत्तर भारत में जन यक्षी पद्मावती का प्रतिमा-निरूपण
३६
की दो मूर्तिया प्राप्त होती है जो मन्दिरः १२ (दक्षिणी शती) शहडोल (म०प्र०) से प्राप्त होती है, और सम्प्रति भाग) एव १६ के मानस्तम्गो पर उत्कीर्ण है। दोनों ठाकुर साहब संग्रह मे सुरक्षित है। पद्मावती के शीर्ष - उदाहरणों में यक्षी के मस्तक पर विसर्पफणो का छत्र भाग मे सप्त सर्पफणो से पाच्छादित पार्श्वनाथ की पद्माप्रदर्शित है । पहली स्थानक मूर्ति मे पद्मावती वरद एवं सनस्थ मूर्ति उत्कीर्ण है। किरीटमुकुट एवं पाच सर्पफणो से मनालपद्म से युक्त है। गीर्षभाग में लधु जिन प्राकृति सुशोभित यक्षी ध्यानमुद्रा मे दोनो पैर मोड़कर पद्म पर मे युक्त दूसरी मूर्ति में यक्षी पुष्प एवं फल धारण करती विराजमान है। पद्मासन के नीचे वाहन कूर्म चित्रित है। है । देवगढ़ से ग्यारहवीं-बारहवीं शती की ललितमुद्रा में पद्मावती के साथ कूर्मवाहन का प्रदर्शन परम्परा विरुद्ध प्रासीन एवं पांच सर्पफणो से मण्डित तीन चतुर्भुज है, और सम्भवतः धरण यक्ष के कम वाहन से प्रभावित मुर्तियाँ प्राप्त होती है। मन्दिर : १ के मानस्तम्भ है। पदमावती की भुजाओं मे वरद, खड्ग, परशु, बाण, (११वी शती) की मूर्ति मे कुक्कुट-सर्प से युक्त पद्मावती बज्र, चक्र (छल्ला), फलक, गदा, अंकुश, धनुष, सप एव की भुजाओं मे धनुष, गदा एवं पाश खण्डित है। मन्दिर : पदम प्रदर्शित है। यक्षी के दक्षिण एवं वाम पाश्वों में १ की ही दो अन्य मानस्तम्भों (१२वी शती) की मूर्तियों सर्पफण से आच्छादित दो नाग-नागी प्राकृतियाँ आमूर्तित में पद्मावती पद्मासन पर विराजमान है, और उसके है। समीप ही दो उपासक एवं चामरधारी प्राकृतियाँ भा करों में वरद, पदम, पद्म एवं जलपात्र स्थित है। एक चित्रित है। वाहन कर्म के अतिरिक्त अन्य दष्टिया से उदाहरण मे शीर्ष भाग में पांच सर्पफणो से मुशोभित लघ यक्षी के निरूपण मे दिगम्बर परम्परा का प्राशिक निवाह जिन आकृति भी उत्कीर्ण है।
किया गया है। द्वादशभज पद्मावती की एक विशिष्ट मूति देवगढ जिन संयक्त मतियां-- पार्श्वनाथ मूर्तियों मे सपफगों के मन्दिर । ११के समक्ष के मानम्तम्भ (१०५६)र से यक्त पारम्परिक यक्षी के चित्रण के प्रत्यात मामित उदाउत्कीर्ण है । पाच सर्पफणों में मण्डित एव ललितमुद्रा में वरण प्राप्त होते है। अधिकतर उदाहरणा में सामान्य आसीन पद्मावती का वाहन कुर्कुट-सर्प समीप ही उत्कीर्ण लक्षणो वाली यक्षी उत्कीर्ण है। केवल कुछ ही उदाहरणो मे है। यक्षी की भुजाओं मे वरद बाण, अकश, सनाल पदम, यक्षी चतभजा है। सभी उदाहरणा म वाहन अनुपस्थित है। शृंखला, दण्ड, छत्र, वन, सर्प (एकफणा), पाश, धनुष लखनऊ संग्रहालय की दसवी शती की दो मूर्तियों एवं मातुलिंग प्रदर्शित है। यक्षी के निरूपण गे वाहन एव (जे -८८२, ४०.१२१) मे सामान्य लक्षणो वाली द्विभुज कुछ सीमा तक आयुधो के सन्दर्भ मे दिगम्बर परम्परा यक्षी की भुजायो मे अभय (या सनालपद्म) एवं फल का निर्वाह किया गया है।
प्रदर्शित है। तीसरी मूर्ति (जे-७६४-११वी शती) में पद्मावती का द्विभज एवं द्वादशभज स्वरूपो में पीटिका के मध्य मे पाच सर्पफणो से मडित चतुर्भुज
पारम्परिक है। ग्यारहवीं शती की दो मतियों से पदमावती की ध्यान मुद्रा में पासीन मूर्ति उत्कीर्ण है। जहाँ वाहन कर्कट-सर्प है, वही बारहवी शती की अन्य यक्षी की भुजायो में अभय, पद्म, एवं कला प्रदर्शित है। मूर्तियो मे यक्षी पद्मवाहना है । स्पष्ट है कि दिगम्बर
देवगढ़ की ६ मूतियो में सामान्य लक्षणो वाली परम्परा के अनुरूप ही देवगढ मे यक्षी के वाहन रूप मे द्विभुज यक्षी की भुजायो मे अभय (या वरद) एवं कलश पद्म एवं कुक्कुट-सर्प दोनों ही को उत्कीर्ण किया गया। (या पल) प्रदणित है । एक उदाहरण मे यक्षी तीन सपंप्रायुधो मे अन्य स्थलो के समान ही पदम का प्रदर्शन फणों से प्रान्छादित है । मन्दिर : १२ के ५४ भाग में लोकप्रिय रहा है। तीन या पाच सर्पफणो से सुशोभित सुरक्षित पाश्र्वनाथ मूर्ति (११वी शती) में तीन गर्पयक्षी के साथ गदा, धनुष, अंकुश, पाग प्रादि का चित्रण फणो से मटित चतुर्भुज यक्षी श्राम नित। यक्षी की भी प्राप्त होता है।
२२. 'अमेरिकन इन्स्टीट्यूट आफ इण्डियन स्टडीज', द्वादशभुज पद्मावती की एक अन्य मूर्ति (११वी वाराणसी-चित्र सग्रह : ए ७५३ ।