Book Title: Anekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 98
________________ हिन्दी-जन पदों में मात्म सम्बोधन भव परनति वरषागम सोहै, पाश्रव पवन बहाया । इन्द्रिय विषय लहरि बड़ता है, देखत जाय बिलाया । राग दोष वग पंकति दीरघ, मोह गहत घर राया । सुमति विरहनी दुखदायक है, कुमति संजोग निभाया । निज संपति रत्नत्रय गहि करि, मुनि जन नर मन भाया । पहन अनन्त चतुष्टय मन्दिर, जग जीवन सुख पाया । हो मन मेरा तू षरम न जाणंदा । जा सेथे ते शिव सुख पावं, सो तुम नांहि बिछाव दा । कविवर जगजीवन मन को अज्ञानी तथा विवेकरहित बता कर उसे अपने को पहचानने का सन्देश देना चाहते ___जगतराम भी हिन्दी के अच्छे कवि थे । इन्होंने स्तुति परक तथा प्रात्मबोधक पदों की रचना की है। इनका एक प्रात्म-बोधक पद देखिए:--- नहि गोरो नहिं कारो चेतन, अपनो रूप निहारो। दर्शन ज्ञान भई चिन्मरत, सकल करम ते न्यारी रे । जाके बिन पहिचान जगत में सह्यो महा दुख भारी रे॥ उक्त पंक्तियो में कवि ने प्रात्मा को शुद्ध चैतन्यमय तथा विकार रहित बताया है। वह न तो काली है न गोरी है। कविवर द्यानतराय हिन्दी के उन मूर्धन्य कवियों में से एक हैं जिन्होने भजन, पूजन कविता तथा गोत्र पदो की रचना की है। इनका भाषा और भावों पर पूरा अधिकार था । इनके पदों में अध्यात्म रस पूर्णरूप से भरा हा है। विषय भोगों में लिप्त प्राणियों को निलिप्त होने का संदेश देते हुए कवि कहते है कि तू तो समझ, समझ रे भाई। निश दिन विषय भोग लिपटाता परम वचन ना सुहाई। करमन का लं पासन मांडयो बाहिर लोक रिझाई। कहा भयो वक ध्यान धरे ते, जो मन बिरन रहाई। मास-मास उपवास किए ते, काया बहुत सुखाई। कोष मान छल लोभ न जीत्यौ, कारज कोन सराई। मन वच काय जोग थिर करके, त्यागो विषय कषाई। चानत स्वर्ग मोक्ष सुखदाई, सतगुरु सीख बताई। कवि द्यानत राय ने कहा- यथो वक ध्यान धरे ते, मास-मास उपवास किए तै, मादि वाक्य अवश्य ही केवल बाह्याडम्बरो को प्रधानता देने वालों को पीड़ित करेंगे। परन्तु मन के शुद्ध किए बिना उनकी नि सारता नि . सन्देह है। कवि भूधरदास भी हिन्दी के जैन कवियो में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते है। इनकी भाषा, भाव, शैली तथा आध्यात्मिकता बहुत बेजोड़ है। गरब नहिं कीजे रे, ऐ नर निपट गंवार । झूठी फाया झूठी माया, छाया क्यों लखि लीजे रे । कछिन सांझ सुहागरु जोवन, के दिन जग में जोजे रे। बेगा चेत विलम्ब तजो नर, बंध बो.नित की रे। भूषर बल बल हो है भारी, . ज्यों ज्यों कमरी भोजे रे॥ उक्त पद्य मे कविवर भूधरदास ने मानव के मन को चेतागा है कि तू प्रात्म कल्याण में जितनी देर लगायेगा उतनी ही तेरी पाप रूपी कबली भीग कर भारी हाती जाएगी। बख्तराम साह राजस्थान के निवासी थे। इनके पदो में भी आत्म सम्बोधन की प्रधानता है : चेतन ते सब सुधि विसरानी भइया । झूठो जग सांचों करि मान्यो, सुनी नहीं सतगुरु को वानी भाया। भ्रमत फिरत चहुं गति में प्रब तो, भख त्रिसा सही नीद नसानी भाया। ये पुदगल जह जान सदा हो, तेरो तो निज रूप सम्यानी भाया। वस्तराम सिव सुख तब है, हूं है तब जिन मत सरपानी भइया । जब तक जिनवाणी में श्रद्धा नहीं होती तब तक हे चेतन, तेरी सद्गति की कोई प्राशा नहीं है ।

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