Book Title: Anekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 61
________________ ६४, वर्ष २७, कि० प्रस्तावित योजना इन सबसे भिन्न है। जैनधर्म की मोर इस प्रकार विज्ञान की उन्नति में जैन व्यापकता, उदारता और सर्व स्वतंत्रता तथा समन्वय की पूर्ण योग माना जाएगा। पर व्यापक उदार दृष्टि को ध्यान में रखकर यह (५) जैन धर्म के इतिहास के विवाद पनलंबन उचित है कि ऐसी एक संस्था को जन्म दिया जाए जो कार्य भी इस संस्था के तत्वावधान में हो सकता सभी साम्प्रदायिक, पूर्वाग्रहमक्त सार्वजनीन व्यापक हित वष, दो वर्ष का कार्य न होकर कई वर्षों के ऐतिहासिक सोधनसन्धान के लक्ष्य से अध्ययन, निरीक्षण, विश्लेषण तथा नवीन पुरातत्व की मनबद्ध हो और अनुसन्धानात्मक प्रस्थापनामों के प्राधार सामग्री पर आधारित होगा। इतिहास की प्रामाणिकता पर जनधर्म, को सर्वागीण रूप में प्रतिफलित करने अधिकतर पुरातत्त्व के माधार पर निरूपित की जाती है। वाला हो। पागम तथा पुराणों का उपयोग केवल पुरातात्विक विषयों कुछ सुझाव को समझाने के लिए किया जाता है। इसलिए जैन इस अन्तर्राष्ट्रीय जैन शोध संस्थान की प्रस्थापना के साहित्य में उपलब्ध सामग्री से पुरातत्व की सामग्री का मूल में कुछ मुख्य बातें निम्नलिखित है : ताल मेल हो और अमुक विषय को पुष्ट करने में दोनों, समर्ण जैन वाङ्मय का संकलन एक स्थान पर का समन्वित उपयोग हो। यह दृष्टि और कार्य इतिहास होना चाहिए हस्तलिखित तथा प्रकाशित रूप में जो भी विभाग के द्वारा सम्पन्न हो सकेगा। माय उपलब्ध हो, उसकी शोध-खोज करके एक (६) इसी प्रकार से अन्य महत्वपूर्ण विषय है, जिनका विशाल पुस्तकालय का निर्माण किया जाए। अध्ययन, अनुसन्धान व परीक्षण नई पद्धति से होना (२) प्रकाशित तथा अप्रकाशित जैन साहित्य की चाहिए। जिससे उसकी उपयोगिता और सार्वजनिक एक विस्तृत सूची का प्रकाशन होना चाहिए। यह सूची महत्व स्पष्ट रूप से संसार के सामने प्रकट हो सके। केवल नाम मात्र की न हो परन् विशिष्ट ग्रन्थों की संक्षिप्त (७) उक्त सभी अध्ययन व अनुसन्धान की प्रगति से तथा महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने वाली हो। होने वाले परिणामों को प्रकट करने वाली कोई प्रकाशन a) सन्दर्भमाकोशमग्यों का निर्माण संस्था के व्यवस्था होनी चाहिए। प्रकाशन के अन्तर्गत प्रगतितत्वावधान में होना चाहिए। केवल दर्शनशास्त्र को ही विवरण, महत्वपूर्ण शोध निबन्धो का सार, वैज्ञानिक महत्व. नहीं, अन्य विषयों की पारिभाषिक शब्दावली का विवेचन पूर्ण उपलब्धियो तथा दार्शनिक जगत का संक्षिप्त विवरण एवं कोश मन्यों के निर्माण की माजबहुत बड़ी मावश्य- किसी पत्रिका के माध्यम से प्रकाशित होना चाहिए। कता है। कई विषय तो भाव तक एकदम मछूते और इस सम्बन्ध में अभी और विस्तार से अपने विचारों उपेक्षित हैं। को प्रकट न करके इतना ही कहना चाहता हूँ कि यदि (४) जैन प्रागम ग्रन्थों में बनस्पति, प्राणिविज्ञान भ. महावीर की पच्चीस सोवी निर्वाण शताब्दी के इस पादि से सम्बन्धित जो वैज्ञानिक विषय मिलते हैं, उनका पावन अवसर पर हम ऐसी संस्था को जन्म दे सके, तो तुलनात्मक अध्ययन हो और नवीन अनुसन्धानों के प्राधार निश्चय ही हमारी प्रात्मा को सुखद संतोष मिलेगा और पर पुरानी मान्यतामों का प्रामाणिक विश्लेषण किया एक ठोस व स्थायी कार्य हमारे सामने प्रकट होगा बह जाए। इतना ही नहीं, न भागमों के इन वैज्ञानिक लिखने की कोई प्रावश्यकता नहीं है कि प्रत्येक शुभ कार्य विषयों के सम्बन्ध में अब किस प्रकार के शोध अनुसन्धान में अनेक विघ्न पाते हैं। हमारे समाज में बनेका विश्न- . की दिशा में वैज्ञानिक लोग नई प्रगति का कार्य कर सकते सन्तोषी लोग हैं ! फिर अच्छे कार्यकर्ता भी सुसभ नहीं.. हैं, क्या दिशा निर्देशन हो सकता है, भविष्य के लिए हैं। विद्वानों की भी कमी है। परन्तु यह सब होने पर भी यह एक महत्वपूर्ण शोध कार्य होगा। इससे जहाँ जैन धर्म इस पवित्र कार्य को प्रस्थापित किया जा सकता है। मेरी की प्रामाणिकता वैज्ञानिक रूप से हमारे सामने पाएगी, अन्तर्चेतना इस कार्य को सर्वाधिक महत्वपूर्ण समझती है। वही विश्व को विज्ञान के क्षेत्र में एक नई दिशा मिलेगी इसलिए बार-बार पाप सबसे अनुरोध करती है।100

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