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भगवान महावीर की भाषा-कान्ति
उदय हुआ, जिन्होंने आम आदमी के चेहरे को पहिचाना, की पराजय ही महावीर की जय है; भाषा स्थिति नहीं है, उसकी कठिनाइयों को सहानुभूतिपूर्वक समझा और उसी गति है। वह रुकती नहीं है, विकास करती है। महावीर के माध्यमो का उपयोग करना स्वीकार किया।
ने भाषा की इस शक्ति को, उसके व्यक्तित्व के इस पक्ष भगवान महावीर ने धर्म के क्षेत्र मे जिस लोक क्रान्ति को, पलक मारते समझ लिया और तपस्या के उपरान्त का श्रीगणेश किया, वह अद्वितीय थी। उन्होने भाषा के जो पाया, उसे उसी के माध्यम से ग्राम प्रादमी से लेकर माध्यम से वह सब ठकरा दिया जो विशिष्टों का था। वे विशिष्ट जन तक बड़ी उदारता से बाट दिया। मद्री भर लोगो के साथ कभी नहीं रहे, उन्होने सदैव जन- महावीर तक आते-आते सस्कृत हथियार बन चुकी थी समुद्र को अपनाया । इसीलिए वे कूद पड़े सब कुछ ठुकरा
सांस्कृतिक शोषण-दमन का। वह रूढियो और अन्धी कर सर्वहारा की कठिनाइयो के समुद्र मे। उन्होने धन
परम्परामो की शिकार हो चुकी थी। एक तल पर पाकर को द्वितीय किया, भाषा को द्वितीय किया, सत्ता को द्वितीय
ठहर गई थी। अध्यात्म उसकी इस जड़ स्थिति के कारण किया और ग्राम प्रादमी को प्रथम किया । भगवान् ने उन
संवाद खो चुका था । वह सीमित हो गया था। महावीर सारे सन्दर्भो को द्वितीय कर दिया जो मलगाव का अलख
ने उसकी इस असमर्थता को समझा और लोक भाषा को जगा रहे थे; जो उनकी समकालीन चेतना को अमहीन
अध्यात्म का माध्यम चुना। उन्होंने भाषा की धोखाऔर खण्डित कर रहे थे। उन्होने महल छोड़ा, पॉव-पाँव
धड़ियो से लोक जीवन को सुरक्षित किया। सरल अध्यात्म, चले ; पात्र छोड़े, पाणिपात्रता को स्वीकार किया; वस्त्र
सरल माध्यम और सम्यक् मार्ग । जीवन के हर क्षेत्र में छोड़े, नग्नता को माना-सहा; उस परिग्रह को जो मन के
उन्होने सम्यक्त्व के लिए समझ पैदा करने का पराक्रम बहुत भीतर गुजलके मारे बैठा था, ललकारा और घर किया। यह पहला माका था जब उन्हाने जीवन को जीवन बाहर किया। भाषा के क्षेत्र में भी उन्होने वही किया जो की भाषा में उन्मुक्तता से प्रकट होने की क्रान्ति को घटित जीवन के सारे सन्दभों के साथ किया। एक तो वे वर्षों किया । इसीलिए महावीर की भाषा सुगम थी, सबके लिए मौन रहे; तब तक, जब तक सब कुछ उन पर खल नही खुली थी। उन्होने ऐसी भाषा के व्यवहार के लिए स्वीगया; क्योंकि वे साफ-साफ देख रहे थे कि लोग अस्पष्ट- कृति दी जो उस समय की वर्तमानता को झेल सकती थी, तायें बाँट रहे है। कही कुछ भी आलोकित नही है, विश्वास पचा सकती थी। उन्होंने भाषा के उस स्तर को, जो संस्कृत तक अन्धा हो गया था। इसलिए उन्होने साफ-सुथरी का पुरोगामी था, अपनी कान्ति का माध्यम बनाया। परिभाषामुक्त भाषा मे लोगो से आमने-सामने बात की
महावीर की समकालीन चेतना एक तीखे भाषा-द्वन्द्र और जीवन के सन्दों को, जो जटिल और पेचीदा से गुजर रही थी । संस्कृत और लोक-भाषायें द्वन्द्व में थी। दिखाई देते थे, खोल कर रख दिया।
सस्कृत के पास परम्परा की अन्धी ताकत थी, लोक भाषा ___ भाषा में कितनी अपार ऊर्जा धड़कती है इसे महा. के पास ऊर्जा तो थी, किन्तु उसका बोध नही था। संस्कृत वीर जानते थे, इसीलिए उन्होने उस भाषा का उपयोग सिीमित होकर प्रभावहीन हो चली थी, लोक भाषायें प्रसी. नही किया जो सन्दर्भ खो चुकी थी वरन् उस भाषा को मत होकर प्रभावशालिनी थी। जो हालत अग्रेजी के स्वीकार किया, व्यवहार में लिया जो उपस्थित जीवन सन्दर्भ मे हिन्दी की है प्राकृत और अर्धमागधी की वही मूल्यो को समायोजित करने की उदार ऊर्जा रखती थी। स्थिति महावीर के युग मे संस्कृत के सन्दर्भ मे थी। ग्राम अर्धमागधी में वह ऊर्जस्विता थी जिसकी खोज में भगवान आदमी को अंग्रेजी के लिए दुभाषिया चाहिए। हिन्दी के थे। जो भाषा एक जगह प्राकर ठहर गई थी, महावीर लिए बीच की कोई प्रौपचारिक कड़ी की मावश्यकता ही ने उसमे बोलने से इनकार कर दिया। उन्होने उस भाषा नही है। वही हाल मर्द्धमागधी या पाली का था; वहाँ का इस्तेमाल किया जो जन-जन को जोड़ती थी, ऊर्जस्विनी किसी बिचोलिये की जरूरत नहीं थी। सीधा संपर्क था। थी और शास्त्रीय प्रौपचारिकतामों से परे थी। शास्त्र महावीर ने बिचोलिया-सस्कृति को भाषा के माध्यम से