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६०, वर्ष २७, कि०३
अनेकान्त सुरक्षित है।" श्याम बलुप्रा पाषाण से निर्मित यह प्रतिमा मान महावीर ने तपस्या की थी। सवाई माधोपुर से ६१ ४-४"४१-६" प्राकार की है। महावीर की यह नग्न मील पर श्रीमहावीर स्टेशन है। यहां से ४ मील दूर प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ी है । हृदय पर श्रीवत्स महावीरजी में एक विशाल जैन मन्दिर है। मन्दिर में चिन्ह अंकित है । मूर्ति के हाथ घटने तक लम्बे हैं । मति स्थित जैन धर्म के अंतिम तीर्थकर भगवान् महावीर की के नीचे दो लघु पार्श्व-रक्षक हैं। उनके सामने एक-एक पद्मासनस्थ सुन्दर प्रतिमा है। बम्बई-रायचूर मार्ग पर उड़ते हुए गर्व का अंकन है। मस्तक के ऊपर त्रिछत्र कुर्दुवाड़ी से ५ मील पहले टवलस नामक स्टेशन है । वहाँ तथा उसके किनारे दो हस्ती अंकित हैं । सिह के कारण से २२ मील पर दहीगांव में एक भव्य जैन मन्दिर यह प्रतिमा महावीर की ज्ञात होती है।
विद्यमान है, जिसमें महावीर की सुन्दर प्रतिमा है। दक्षिण भारत के दिगम्बर केन्द्र एलोरा (हवी शती) राजस्थान में महावीर की अनेक प्रतिमायें एवं देवाकी गुफाएं तीर्थकर-प्रतिमाओं से भरी पड़ी है। छोटा लय प्रकाश में आये है। इस संदर्भ मे प्रोसियों के महावीर कलास (गुफा सख्या ३०) में ऋषभनाथ, पार्श्वनाथ तथा मन्दिर का वर्णन करना उचित होगा। प्रोसियां जो महावीर की बैठी पाषाण मूर्तियाँ पद्मासन एव ध्यानमुद्रा वर्तमान समय में एक छोटा-सा ग्राम है, जोधपुर से फलौदी में उत्कीर्ण हैं। प्रत्येक तीर्थकर के पार्श्व में चैवर धारण जाने वाली रेलवे लाइन पर पड़ता है। प्रोसियां मे भगवान् किये यक्ष तथा गधर्व की प्राकृतियाँ दीख पड़ती है। महावीर का एक प्राचीन मन्दिर है जिसमे महावीर की सिंहासन पर बैठे महावीर की प्रतिमा के ऊपरी भाग में विशालकाय मति है । 'जोयपुर राज्य का इतिहास' के छत्र दीख पड़ता है।
प्रथम भाग में महान इतिहामज्ञ गौरीशंकरजी अोझा ने दूसरी गुफा में भी पद्मासनस्थ ध्यानमुद्रा मे महावीर इस देवालय का काल मवत् ८३० बताया है । यह देवालय की अनेक प्रतिमाएं खुदी है । इन्द्रसभा नामक गुफा मे प्रतीहार गजा वत्सराज के समय है। 'जन-तीर्थ सर्व. सिंहासन पर महावीर की बैठी मूर्तियां ध्यानावस्था मे संग्रह मे प्रोसियाँ का विवरण देते हुए लिखा है कि यहाँ उत्कीर्ण है । जगन्नाथसभा नामक गुफा के दालान मे सौशिखरी विशाल मन्दिर बड़ा रमणीय है। मूलनायकपार्श्वनाथ तथा महावीर के अतिरिक्त चौबीस तीर्थकरो की प्रतिमा भगवान महावीर की है जो ढाई फुट ऊँची है। लघु प्राकृतियाँ उत्कीर्ण है। सभी प्रतिमाएं कला की महावीर का मन्दिर परकोटे से घिरा है तथा इसके भव्य दृष्टि से सुन्दर है।
तोरण दर्शनीय है । स्तभो पर तीर्थङ्करो की प्रतिमायें भी चालुक्यनरेश यद्यपि हिन्दू धर्मावलम्बी थे, किन्तु जैन उत्कीर्ण है। धर्म को भी अधिक मान्यता थी। ऐहोल की एक गुफा मे प्राबू स्टेशन से एक मील दूर देलवाड़ा में भी पांच महावीर की आकृति भी दृष्टिगोचर होती है। सिंह, जैन मन्दिर है जिनमें तीर्थङ्करों की प्रतिमायें है। प्राबू मकर एव द्वारपालो का खुदाव, उनका परिधान एलीफेण्टा के निकटवर्ती अन्य कई स्थानों में बहुत भव्य और कलापूर्ण के समान उच्च शैली का है। ये गुफाए सातवी-आठवी मंदिर हे जिनमे कुंभारिया के श्वेताम्बर जैन मंदिर सदी की है।
उल्लेखनीय है । कुभारिया ग्राम प्राबू रोड रेलवे स्टेशन उड़ीसा में भुवनेश्वर से सात मील की दूरी पर से १३॥ मील दूर स्थित है। यहाँ का महावीर जिनालय उदयगिरि-खण्डगिरि की गुफायें है। उदयगिरि अतिशय महत्त्वपूर्ण है। इसमे महावीर के जीवन सम्बन्धी अनेक क्षेत्र है। जैनो का उदयगिरि का नाम 'कुमारगिरि' है। दृष्टात उत्कीर्ण है। मदिर की कला दर्शनीय है। मंदिर महावीर स्वामी यहाँ पधारे थे। एक गुफा में २४ तीर्थंकरों का निर्माण-काल सं० १०८७ के लगभग है। की प्रतिमायें है।
कर्नाटक में भी जैनधर्म का अच्छा प्रचार हुमा था। ऐसा कहा जाता है कि उज्जैन (म. प्र.) में वर्ष. कर्नाटक के होयलेश्वर देवालय से दो फलांग की दूरी पर ११. स्टेल्ला कमरिश, इडियन स्कल्पचर इन दि फिलाडेलफिया म्यूजियम माफ आर्ट, पु. ८२.