Book Title: Anekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 55
________________ ७८, बर्ष २७, कि०३ RECENT . JA . नरवर के जिन मन्दिर का कलापूर्ण ऊपरी भाग उपर्युक्त शक सं० पौर वि० संवत के अंकन में कुछ सम्प्रदाय, पृ० ५०)। इस कलाकृति का निर्माण विशुद्धभूल हो गई जैसी प्रतीत होती है । लगता है कि शिल्पी को तया तकनीकी आधार पर हुआ होगा और संभव है कि शक और विक्रमी का अन्तर ज्ञात न रहा हो, या हम ही ऐसे सहस्रकूट जिनबिंब और भी अधिक संख्या में निर्मित कहीं भूल रहे हों। प्रस्तु भ० धर्म भूषण बलात्कारगण हुए होंगे जो अन्वेषणीय हैं । इस कृति के दूसरे नम्बर के की कारंजा शाखा से संबंधित प्रतीत होते है, वैसे इस नाम पाटियों में जहां प्रतिमानों की संख्या ६६ और ६७ है, के अनेकों भट्टारक हुए हैं । शक सं० १५०३ में फागुन वहां १८, ६८ होती हो तो १००८ की संख्या बिलकुल सुदी ७ को भ. धर्मभूषण के उपदेश से चन्द्रप्रभु की ठीक हो जाती । लगता है। इस तकनीक में भी शिल्पी कहीं मूर्ति प्रतिष्ठित हुई थी जो नागपुर में है (देखिये भट्टारक भूल कर गये हैं. इस कृति का चित्र प्रारम्भ में देख चुके हैं।

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