Book Title: Anekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 53
________________ नरवर की श्रेष्ठ कलाकृति "सहस्रकूट जिनबिम्ब" Oप्रिसिपल कुन्दन लाल जैन, दिल्ली Marwx.mnew-ine * नरवर (नलपुर), जो कभी ऊदल (माल्हा-ऊदल) इस वर्ष दशहरे की छुट्रियों में झांसी जाने का सुयोग मिला। की ससुराल थी.जैन संस्कृति एवं कला का मर्वश्रेष्ठ भगवान महावीर के २५सौवें निर्वाणोत्सव पर कूछ सामग्री केन्द्र रहा है। यहां की जा मूर्तियां, पापागद एव अन्य एकत्रित करने शिवपुरी, कोनारस (कविलासनगर) भी पुरातत्त्व और इतिहास की सामग्री शिवपुरी के संग्रहालय गया, तो झांसी में सहस्रकूट जिनबिम्ब का भी निरीक्षण में सुरक्षित है। नरवर के मंत्र में मैंने 'कादम्बिनी और किया, जिसका चित्र नीचे दिया गया है। इसके ऊपरी 'महावीर स्मारिका', जयपुर नामक पत्रिकामों में विस्तार भाग में जहां चतुर्मुख प्रादिनाथ की प्रतिमा है, वहा शाके से लिखा था, जिसमें नरवर स्थित जैन संकृति, इतिहास, सं० १५०६ उत्कीर्ग है, पर चौकोर पाटियों पर सं.१५१५ पुरातत्त्व एवं साहित्य से संबंधित जो कुछ सामग्रो मुझे उत्कीर्ण है, प्रत. समय में बड़ा अन्तर मालूम पड़ता है। उपलब्ध हो सकी थी, उम सब का उल्ने । किा था। लगता है कि शिल्पी शाके और विक्रमी सं० का अन्तर गत दो तीन वर्ष पूर्व भाती जाने का मयोग प्राप्त नहीं करपाये और ऐसी भूल कर गये है। हुपा तो वहां के बड़े मन्दिर स्थित सहस्रकूट जिनबिम्ब के दर्शनों का सुपवसर मिला । दर्शन कर मन अत्यधिक प्रफुल्लित हुग्रा । यह कृति अत्यधिक कलापूर्ण और रमणीक है, मन को भा गई तो मैंने अपने संबधी श्री लखमीचन्द्र से जो साथ में थे, इस कलाकृति के संबंध मे ऊहापोह किया। उन्होंने जो कुछ सुनाया उससे इस कृति के प्रति मेरी उत्सुकता और अधिक बढ़ गई और मै इस कलाकृति के प्रति और अधिक रुचिवान हो उठा। उन्होने बताया कि इस का वजन लगभग एक क्विन्टल होगा और यह अष्ट-धातु की बनी हुई है। इसे नरवर के मन्दिर से लगभग सौ वर्ष पूर्व सोने के धोखे मे चुरा लिया गया था और यह झासी में बर्तन बेचने वाले तमेरे को बेची गई थी। जब झासी के जैनियो को इस कलाकृति का पता लगा तो उन्होने उक्त तमेरे को उचित मुआवजा देकर खरीद ली और बड़े 30 मन्दिर जी में प्रतिष्ठत करवा दी। चूंकि मैंने नरवर पर पर्याप्त सामग्री एकत्रित की थी और यह अनठी कलाकृति नरवर की है यह जानकर मेरी जिज्ञासा और अधिक प्रबल हो उठी और मेरा माकर्षण इसके सूक्ष्म निरीक्षण मोर अध्ययन की भोर बढ़ गया। परन्तु उस समय परिस्थितिवश इसका विश्लेषण म हो सका। इसकी चर्चा श्री हरिहर निवास द्विवेदी, लकर तथा गौरीशंकर द्विवेदी झांसी से भी की थी। सौभाग्य से मांसी स्थित महनकट जिविस A

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