Book Title: Anekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 58
________________ श्री सहलकूट जिन चैत्यालय पूजन DR. भोसतनाल बीहकीम . सहस्रकूट जिन चैत्य परम सुन्दर सुखकारी, पावन पुण्य निधान दरस जग अपहारी। रोग शोक दुख हरै विपति दारिद्र नसावे, जो जन प्रीति लगाय नियम से नित गुण गावें। ह्रीं श्री सहस्रकट जिन चैत्यालयानि प्रत्र अवतर अवतर संवौषठ। ॐ ह्रीं श्री सहस्रकूट जिन चैत्यालयानि पत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं श्री सहस्रकट जिन चैत्यालयानि पच मम सनिहितानि भव भव बषर नीर गंगा को शुचि लाय के कनक कुम्भन में सुभराय के। धार दे जिन सन्मुख हूजिये सहस्रकट जिनालय पूजिये । ॐ ह्रीं श्री सहस्रकट जिन चैत्यालयेभ्यः जलम् निर्वपामीति स्वाहा । जगत में गंध सुहावनी लायकर ले प्रति मन भावनी । ताप हर जिन सन्मुख हूजिये सहस्रकूट ऊँ ह्रीं श्री सहस्रकूट जिन चैत्यालयेभ्यः चन्दनं निर्वामीति स्वाहा। अमल तन्दुल श्वेत मंगाइये जास ते प्रक्षय पद पाइये। थाल भर जिन सन्मुख हजिये सहस्रकट जिनालय प्रजिये। ॐ ह्रीं सहस्रकूट जिनचैत्यालेभ्यः प्रक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। कल्पवृक्षन के प्रति सोहने फूल कर में ले मनमोहने । मदन हर जिन सन्मुख हूजिये सहस्रकूट जिनालय पूजिये। ॐ ह्रीं श्री सहस्रकूट जिन चैत्यालेभ्यः पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । निज सुपातम के हित कारने भूख की बाधा सु विडारने। चरू सु ले जिन सन्मुख हूजिये सहस्रकूट जिनालय पूजिये। ॐ ह्रीं श्री सहस्रकूट जिन चैत्यालेभ्यः नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा । जगत जीवन मोह भरो हिये तासु के तम नाथन के लिये। दीप ले जिन सन्मुख हूजिये सहस्रकूट जिनालय पूजिये ।। ह्रीं श्री सहस्रकूट जिन चैत्यालयेभ्यः दीपं निपामीति स्वाहा । 'धूप ले धूपायन डारने प्रष्ट कर्मन के प्रष जारने । कर्म हर जिन सन्मुख हूजिये सहस्रकूट जिनालय पूजिये। श्री सहस्रकट जिन चंत्यालयेभ्यः धूपं निर्वपामीति स्वाहा। मधुर फल उत्तम संसार में शिव प्रिया हित भरकर पार में। शिवपति के सन्मुख हूजिये सहस्रकूट जिनालय पूजिये। ह्रीं श्री सहस्रकूट जिनचैत्यानयेभ्यः फल निर्वपामीति स्वाहा। जनपुपादिक द्रव्य सुषामई सुखद पदकर घर ले सही।

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