Book Title: Anekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 9
________________ धनपाल की भविष्यदत्त कथा के रचनाकाल पर विचार परमानन्द शास्त्री संस्कृत और प्राकृत की तरह अपभ्रश भाषा मे भी सक्षिप्तरूप बडी खूबी के साथ दर्शाया गया है। काव्य कथा साहित्य की सृष्टि की गई है। कथा साहित्य की की दृष्टि से भी यह कृति महत्वपूर्ण है। सम्पादको ने सष्टि कब से प्रारम्भ हई, यह अभी निश्चित नही हो प्रस्तावना में इसके सम्बन्ध मे पर्याप्त प्रकाश डाला है। सका है। विक्रम की ७ वीं, पाठवीं और नवमी शताब्दी और उसका रचना काल दशवी शताब्दी बतलाया है। में रचे गये कथा ग्रन्थों और बाद में उपलब्ध ग्रन्थो मे परन्त डा. देवेन्द्र कुमार जी रायपुर ने 'अपभ्रंश' पचमी कथा के नामोल्लेख उपलब्ध होते हैं । चउमुह और की अन्य जैन कथानो के साथ धनपाल की भविष्यदत्त स्वयभू ने 'पचमी' कथा बनाई, किन्तु आज वह उपलब्ध कथा पर एक शोध-निबन्ध लिखा, जिस पर प्रागरा विश्वनही है । अपभ्रश 'प्रशस्ति सग्रह' में मैने इस भाषा की विद्यालय से उन्हे पी एच. डी. की उपाधि मिली । वह ४० कथानो के प्रादि अत भाग दिए है। इनके अतिरिक्त शोध-प्रबन्ध अभी तक अप्रकाशित है। उसमें उन्होने और भी कथाए है जिनके सम्बन्ध में अभी तक कुछ नहीं उसका रचना काल बिना किसी प्रामाणिक प्राधार के, लिखा गया। कविवर धनपाल की भविष्यदत्त कथा के तथा आगरा की स० १४८० की एक हस्तलिखित प्रति रचनाकाल पर विचार करना ही इस लेख का प्रमुख मे स० १३६३ वे में लिखाने वाले की प्रशस्ति को मूलविषय है । अपभ्रश भाषा की दो भविष्यदत्त कथाएं उप ग्रन्थकार की प्रास्ति मान कर उसका रचना काल विक्रम लब्ध है जिनमे एक के रचयिता धर्कटवशी धनपाल है।। की १४ वी शताब्दी बतलाया और दशवी शताब्दी के और दूसरी के रचयिता विबुध श्रीधर है। उनमें धनपाल विद्वानो द्वारा सम्मत रचना काल को अमान्य किया । की भविष्यदत्त कथा का रचनाकाल विक्रम की दशवी उनका लेख 'भविष्यदत्त कथा का रचना काल' नाम से शताब्दी माना जाता है । और विबुध श्रीधर की कथा का हाल की राष्ट्रभाषा पारेपद पत्रिका में प्रकाशित हुया है। रचना समय वि० स० १२३० हैं और यह कथा अभी तक उसकी एक अतिरिक्त कापी उन्होंने मेरे पास भेजी है। अप्रकाशित है। किन्तु धनपाल की भविष्यदत्त कथा का उसे पढकर ज्ञात हुआ कि उन्होने उक्त कथा के रचना सम्पादन डा० हर्मन जैकोबी ने बड़े परिश्रम से किया था काल पर कोई प्रामाणिक विचार नही किया । और न और सन् १९१८ मे जर्मनी से उसका प्रकाशन हुआ था। कोई प्रामाणिक अनुसन्धान कर ऐसे तथ्य को ही प्रकट भारत वर्ष में इस काव्य कथा का सस्करण सी. डी. दलाल __ किया जिससे उक्त भविष्यदत्त कथा का रचना काल और बी. डी. गुणे के द्वारा तैयार किया गया जो गायक १४वी शताब्दी निश्चित हो सकता। किन्तु स० १३६३ वाड ओरियन्टल सीरीज बडौदा से सन् १९२३ मे प्रका की प्रशस्ति के अनुसार भ्रमवश धनपाल की उक्त कथा शित हया है। इस ग्रथ मे काव्यतत्त्वो की सयोजना का का रचना काल १४ वी सदी सुनिश्चित किया है। जो १. णरणाह विक्कमाइच्च काले, पवहतए सुहयारए विसाले। उनकी किसी भूल का परिणाम है, एव वह प्रशस्ति जो वारह सय वरसहिं परिगएहिं, डा० सा. के रचना काल का प्राधार है, जिसे लेख में फागुणमासम्भि बलक्ख पक्खे । ग्रंथकार की प्रशस्ति मान लिया गया है। और अथ की दसमिहि दिण तिमिरुक्कर विवक्खे, प्रतिलिपि करने या कराने वाले को रचयिता स्वीकृत रविवार समाणिउ एहु सत्थु । किया गया है । उस पर विचार करने और डा० सा. की -जैन ग्रन्थ प्र०सं: पु०५०। भूल का परिमार्जन करना ही लेखक का प्रयास है।

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