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अनेकान्त
[ ज्येष्ठ, आषाद, वीर- निर्वाण सं० २४६६
उनकी रुचिके अनुसार भोजन कराया गया, कारण वे पक्के शाकाहारी नहीं थे । यह बातें हिंसा सिद्धान्तका महत्व तथा उसकी प्रबलताको स्पष्टतया बताती हैं। ये बातें तामिल साहित्य में भी भली भाँति प्रतिविम्बित होती हैं, जब कि जैन दक्षिणकी ओर गये थे और उनने तामिल साहित्य के निर्माण में भाग लिया था। प्रारंभिक जैनियोंने अपने धर्मके प्रचारका कार्य किया होगा, और इसलिये वे देश के आदमनिवासियों के साथ निःसंकोच भाव से मिले होंगे। आदिमनिवासियों के साथ उनकी मैत्रीसे यह बात भी प्रगट होती है ।
उपदेश वे क्षत्रियवीर देते थे जो धनुष बाण लेकर भ्रमण करते थे और जिनका सग्राम संबंधी कार्यों से विशेष संबंध रहा करता था ।
यह विषय अज्ञात है कि उनका अहिंसा से संबंध कैसे हुआ, किन्तु यह बात सन्देह रहित है कि वे लोग अहिंसा-सिद्धान्त के संस्थापक थे । ये क्षत्रिय नेता जहाँ कहीं जाते थे अपने साथ मूल अहिंसा धर्मको ले जाते थे, पशु-बलिके विरुद्ध प्रचार करते थे तथा शाकाहारको प्रचलित करते थे । इन बातों को भारतीय इतिहास के प्रत्येक अध्येता को स्वीकार करना चाहिये | यह बात भवभूतिके नाटक, उत्तर राम चरित्र में बाल्मिीकि आश्रमके एक दृश्य में वर्णित है। जनक और बशिष्ठ अतिथि के रूपमें आश्रम पहुँचते हैं। जब जनकका अतिथि सत्कार किया जाता है तब उन्हें शुद्ध शाकाहार कराया जाता है, आश्रम स्वच्छ और पवित्र किया जाता है किन्तु जब आश्रम में वशिष्ठ आते हैं तब एक मोटा गोवत्स मारा जाता है । आश्रमका एक विद्यार्थी व्यंग्यके रूपमें अपने साथी से पूछता है कि, क्या कोई व्याघ्र आश्रम में श्राया था । दूसरा छात्र वशिष्ठका अपमान पूर्ण शब्दों में उल्लेख करनेके कारण उसे भला बुरा कहता है। प्रथम विद्यार्थी क्षमा माँगता हुआ अपनी बातका इस प्रकार स्पष्टीकरण करता है कि मुझे ऐसा अनुमान करना पड़ा कि आश्रम में कोई व्याघ्र जैसा मांसाहारी जानवर अवश्य भाया होगा, कारण एक मोटा ताजा गोवत्स गायब हो गया है । इस पर वह विद्यार्थी यह स्पष्ट करता है कि राजऋऋषि तो पक्के शाकाहारी हैं अतः उनका उसी प्रकार सत्कार होना चाहिये था किन्तु वशिष्ठको
जिन देशवासियों के विरुद्ध आर्य लोगोंको संग्राम करना पड़ा था, वे दस्यू कहे जाते थे । यद्यपि अन्यत्र उनका निंदापूर्ण शब्दों में वर्णन किया गया है, किन्तु उनका जैन साहित्य में कुछ सम्मान के साथ वर्णन है । इसका एक उदाहरण यह है कि वाल्मीकि रामायण में जो बंदर और राक्षसके रूपमें अलंकृत किए गए हैं, वे जैन रामायणमें विद्याधर बताए गए हैं। जैनसाहित्य से यह बात भी स्पष्ट होती है कि आर्य वंशीय वीर क्षत्रिय विद्याधरोंके यहाँ की राजकुमारियों के साथ स्वतंत्रतापूर्वक विवाह करते थे । इस प्रकार की वैवाहिक मैत्री बहुत करके राजनैतिक एवं यौद्धिक कारणोंसे की जाती थी । इसने अहिंसा सिद्धान्त को देश के मूल निवासियोंमें प्रचारित करनेका द्वार खोल दिया होगा। उत्तरसे तामिल देशकी ओर प्रस्थान करने एवं वहाँ अहिंसा पर स्थित अपनी संस्कृतिका प्रचार करने में इस प्रकार के कारणकी कल्पना करनी पड़ी होगी। कट्टर (वैदिक) आयका