Book Title: Anekant 1940 06 07
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 46
________________ ५२४ अनेकान्त [ ज्येष्ठ-अषाढ़, वीर-निर्वाण सं० २४६६ स्तुति करने लग जाता है। बारह वर्षों के उग्र यथार्थ वस्तुस्थितिका बोध कराया, तत्वको तपश्चरणोंके बाद वैशाख शु० दशमी को जृम्भक समझाया, भूलें दूर को, कमजोरियाँ हटाई, गाँवके निकट, ऋजुकूला नदीके किनारे सालवृक्षके आत्मविश्वास बढ़ाया, कदाग्रह दूर किया, नीचे केवल ज्ञान अर्थात् सर्वज्ञज्योतिको वे प्राप्त पाखण्डको घटाया, मिथ्यात्व छुड़ाया, पतितोंको हुए। इस प्रकार मुक्तिमार्गका नेतृत्व ग्रहण करने- उठाया, अत्याचारोंको रोका, हिंसाका घोर विरोध के जब आप सर्वप्रकारसे उपयुक्त हुए तब जन्म- किया, साम्यवादको फैलाया और लोगोंको जन्मान्तरमें संचित अपने विशिष्ट शुभ संकल्पा. स्वावलम्बी बनानेका उपदेश दिया । ज्ञात होता नुसार महावीरने लोकोद्धारके लिये अपना विहार है कि आपके विहारका प्रथम स्थान राजगृह के (भ्रमण ) प्रारम्भ किया । संसारी-जीवोंको निकट विपुलाचल और वैभार पर्वत आदि पंच सन्मार्गका उपदेश देनेके लिये लगभग ३० वर्षो पहाड़ियोंका पुण्यप्रदेश था। उस समय राजगृहमें तक प्रायः समग्र भारतमें अविश्रान्त रूपसे आपका पका शिशुनागवंशका प्रतापी राजा श्रेणिक या बिम्बविहार होता रहा। खासकर दक्षिण एवं उत्तर सार राज्य करता था ।श्रेणिक ने भगवान्की परिविहारको यह लाभ प्राप्त करनेका अधिक सौभाग्य षदों में प्रमुख भाग लिया है और उसके प्रश्नों पर प्राप्त है। विद्वानोंका कहना है कि इस प्रदेशका बहुत से रहस्योंका उद्घाटन हुआ है। श्रेणिककी 'बिहार' यह शुभ नाम महावीर एवं गौतम बुद्धके रानी चेलना भी वैशालीके राजा चेटककी पुत्री विहारकी ही चिरस्मृति है। जहाँ पर महावीरका थी। इसलिए वह रिश्तेमें महावीर स्वामीकी शुभागमन होता था, वहाँ पशु-पक्षी तक भी आकृष्ट होकर आपके निकट पहुँच जाते थे। मौसी होती थी। जैन ग्रन्थोंमें राजा श्रेणिक भगवान महावीरकी सभाओंके प्रमुख श्रोताके आपके पास किसी प्रकारके भेद-भावकी गुञ्जायश रूप में स्मरण किये गये हैं। हाँ, एक बात और है नहीं थी। वास्तवमें जिस धर्ममें इस प्रकारकी और वह यह है कि बौद्ध ग्रन्थोंमें विम्बसार उदारता नहीं है वह विश्वधर्म-सार्वभौमिक-होने गौतम बुद्धके एक श्रद्धालु भक्तके रूपमें वर्णित हुए का दावा नहीं कर सकता। भगवान महावीरकी हैं । प्रारम्भावस्थामें बिम्बसारका बुद्धानुयायी महती सभामें हिंसक जन्तु भी सौम्य बन जाते थे होना जैनग्रंथ भी स्वीकार करते हैं। अत: बहुत और उनकी स्वाभाविक शत्रुता भी मिट जाती कुछ सम्भव है कि बिम्बसार पहले गौतमबुद्धका थी। महावीर अहिंसाके एक अप्रतिम अवतार ही । भक्त रहा हो और पीछे भगवान महावीरकी वजह थे. इस बातको स्वर्गीय बाल गङ्गाधर तिलक, से जैन धर्ममें दीक्षित हो गया हो। महात्मा गांधी और कवीन्द्र रवीन्द्र जैसे जैनेतर विद्वानोंने भी मुक्तकण्ठसे स्वीकार किया है। ११ देखो, 'अनेकान्त' वर्ष १ कि० १ में प्रकाशित और फिर भगवान् महावीरने अपने विहारमें असंख्य स्वतन्त्ररूपसे मुद्रित मुख्तार श्रीजुगलकिशोरका 'भगवान् महावीर प्राणियोंके अज्ञानान्धकारको दूर किया, उन्हें और उनका समय' शीर्षक निबन्ध ।

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