Book Title: Anekant 1940 06 07
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 60
________________ भनेकान्त (ज्येष्ठ, भाषाह, बीर निर्वाण सं०२४१६ द्रव्यके तीन भेद किस तरह हो जाते हैं, यह टीकाकारोंने पूरा किया है। कथन किया गया है, जब कि कथनको संगत (५) अंगोपांग-विषयक २८ वीं गाथाके बाद बनानेके लिये यह आवश्यक था कि क्रम विहायोगति नामकर्म तथा छह संहननोंके नाम प्राप्त वेदनीयकर्म और मोहनीय कर्मके भेद-प्रभे.. अभः और उनके स्वरूपका कोई उल्लेख न करके छह दादिका कथन किया जाता; और उसके बाद २६ संहनन वाले जीव किस किस संहननसे कौन कौन वीं गाथाको दिया जाता, जैसा कि संस्कृत और गतिमें उत्पन्न होते हैं इत्यादि वर्णन २९-३०-३१भाषा टीकाकारोंने किया है । बिना ऐसा किये ग्रंथ ३२ नं० की चार गाथाओंमें किया गया है । और सन्दर्भके साथ यह गाथा संगत मालूम नहीं होती वर्णन भी मात्र वैमानिक देवों तथा नारकियोंमें और अपनी स्थिति परसे इस बातको सूचित उत्पत्ति के नियमका निर्देश करता है तथा कर्म करती है कि उससे पहलेकी कुछ गाथाएँ वहाँ छूट भमिकी स्त्रियों के अन्तके तीन संहननोंका ही उदय रही हैं। बतलाता है। शेष मनुष्य तिर्यचोंमें कितने संहननों __(३) दर्शनमोह-विषयक २६ वीं गाथाके बाद के बाद का उदय होता है ऐसा कुछ भी नहीं बतलाया चारित्र मोहनीय कर्मके २५ भेदों और आयु कर्मके । और न गुणस्थानों, कालों अथवा क्षेत्रोंकी दृष्टिसे चार भेदोंका तथा नाम कर्मकी पिण्ड-अपिण्ड ६ ही संहननोंका कोई विशेष कथन किया है । ऐसी प्रकतियोंके उल्लेखपूर्वक गति-जाति-विषयक प्रकृति- हालत में उक्त चारों गाथाओंका वर्णन असंगत योंका कोई वर्णन न करके और शरीरके नामों तक होने के साथ साथ अधरा और लँडुरा जान पड़ता का उल्लेख न करके २७ वी गाथामें औदारिकादि है। इन गाथाओंके पर्वमें तथा मध्यमें भी कितना पाँच शरीरोंके संयोगी भेदोंका कथन किया गया ही ही कथन छूटा हुआ मालूम होता है। है । इससे इस गाथाकी स्थिति भी २६ वी गाथा जैसी ही है और यह भी अपने पूर्वमें बहुतसे कथन इन गाथाओंकी ऐसी स्थिति देखकर ही आज के त्रुटित होनेको सूचित करती है। से कोई २१ वर्ष पहले पं० अर्जुनलालजी सेठीने (४) २८ वीं गाथाकी स्थिति भी उक्त दोनों 'सत्योदय' पत्रमें लिखे हुए अपने 'स्त्री-मुक्ति' नामक गाथाओं जैसी ही है। क्योंकि इसके पर्वमें शरीर निबन्ध, कर्मकाण्डके उक्त 'प्रकृति समुत्कीर्तन' के बन्धन, संघात और संस्थान नामके भेद-प्रभेदों अधिकारको त्रुटि-पूर्ण एवं सदोष बतलाते हुए का तथा अंगों पांग नामके औदारिकादि मुख्य संहनन-विषयक उक्त चारों गाथाओंको क्षेपक तीन भेदोंका भी कोई वर्णन अथवा उल्लेख न करार दिया था और यह भी बतलाया था कि इन करके, इसमें मात्र शरीरके आठ अंगोंके नाम दिये का संकलन यहाँ पर अनुपयुक्त है। हैं और शेषको उपांग बतलाया है। बन्धनादिका मोटी मोटी त्रुटियोंके इस दिग्दर्शन परसे कोई उक्त सब कथन बादको भी नहीं किया गया है भी सहृदय विद्वान् यह नहीं कह सकता कि नेमिऔर इसलिये यह सब यहाँ पर त्रुटित है, जिसे चन्द्र जैसे सिद्धान्त चक्रवर्ति विद्वान् आचार्यने

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