Book Title: Anekant 1940 06 07
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 58
________________ ५३६ अनेकान्त 1 करनेकी प्रतीक्षा नहीं की । मैंने आप ही पहल करदी | मैंने कहा – “अफसर महोदय, आपने मुझे अपराध करते हुए पकड़ लिया है । मैं अपराधी हूँ। मेरे पास अपराधके समय किसी दूसरी जगह होने का कोई उन या बहाना नहीं । आपने गत सप्ताह मुझे चेतावनी दी थी कि, यदि तुम इस कुत्तेको बिना मुसका लगाये यहाँ लाये, तो तुम्हें जुर्माना हो जायगा ।" पुलिसमैन ने मृदुस्वर में उत्तर दिया, "हाँ, ठीक है, मैं जानता हूँ कि, यहाँ जब कोई मनुष्य इर्द-गिर्द न हो, तो इस जैसे छोटे कुत्तेको खुला दौड़ने देने का प्रलोभन हो ही जाता है।" मैंने उत्तर दिया – “निश्चय ही यह प्रलोभन है । परन्तु यह क़ानूनके विरुद्ध है ।" पुलिसमैन ने प्रतिवाद करते हुए कहा " इस जैसा छोटा कुत्ता किसीको हानि नहीं पहुंचायगा ।" मैंने कहा, ' 'नहीं, परन्तु हो सकता है कि, वह किसी गिलहरीको मार डाले ।” उसने मुझे बताया । – “मैं समझता हूँ आप इसे बहुत गम्भीर भावसे ले रहे हैं । मैं बताता हूँ कि आप क्या करें। आप उसे वहाँ पहाड़ पर दौड़ने के लिए छोड़ दिया कीजिये, जहाँ मैं उसे न देख सकूँ और हमें इसकी कुछ याद ही न रहेगी।" वह पुलिसमैन होने के कारण, भाव चाहता था । इसलिये जब मैं धिक्कारने लगा, तो अपनी आत्म-पूजाको पोषित महत्ताका अपनेको [ ज्येष्ठ अषाढ़, वीर- निर्वाण सं० २४६६ करनेका एक ही मार्ग उसके पास रह गया और वह था उदारभावसे दया दिखाना । परन्तु मान लीजिये, मैंने अपनेको निर्दोष सिद्ध करनेका यत्न किया होता – ठीक, क्या आपने कभी पुलिसमैन के साथ वाद-विवाद किया है ? मैंने स्वी 1 परन्तु उसके साथ लड़ने के बजाय, कार कर लिया कि, वह बिलकुल सच्चा है और मैं ग़लती रहूँ । मैंने यह बात शीघ्रता से, स्पष्टता और उत्साहपूर्वक मानली, उसके मेरा पक्ष लेने और मेरे उसका पक्ष लेनेसे मामला अनुकूलता-पूर्वक समाप्त होगया । दूसरोंके मुखसे निकली हुई डोट-फटकार सहन करनेकी अपेक्षा क्या आत्म - आलोचना सुनना अधिक सहज नहीं ? यदि हमें पता हो कि, दूसरा मनुष्य हम पर बरसेगा, तो क्या यह. अच्छा नहीं कि उसके बोलने के पूर्व स्वयं ही उसके हृदयकी बात कह दी जाय अपने सम्बन्धकी वे सब निन्दासूचक बातें कह डालिये, जो आप समझते हैं कि, दूसरा व्यक्ति आपसे कहने के लिए सोच रहा है, या कहना चाहता है, या कहनेका विचार रखता है - और उन्हें उसे कहने का अवसर मिलने के पूर्व ही कह दीजिये – और उसका क्रोध शान्त हो जायगा । सौ पीछे निन्नानवें दशाओं में वह उदार और क्षमाशील भाव ग्रहण कर लेगा और आपकी भूलोंको यथासम्भव कम करके दिख लायगा -ठीक जिस प्रकार पुलिसमैनने कारनेगी और उनके कुत्ते के साथ किया । - ( गृहस्थसे )

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