Book Title: Anekant 1940 06 07
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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- अनेकान्त
..[ज्येष्ठ, भाषाढ़, वीर-निर्वाण सं०२४६६
जीवपएसेक्के के कम्मपएसा हु अंतपरिहीणा। जह भंडयार पुरिसो धणं णिवारेइ रायिणा दिएणं । होंति घणणिबडभूवं संबंधो होइ णायब्वो ॥२२॥ . तह अंतराय पणगं णिवारयं होह लद्धीणं ॥३॥ अस्थि अणाईभयो बंधो जीवस्स विविहकम्मेण । कर्मकाण्डकी २२वीं गाथाके बाद कर्म प्रकृतिमें तस्सोदएण जायइ भावो पुण राय-दोस-मत्रो ॥२३॥ निम्न १२ गाथाएँ और पाई जाती हैं जिनसे उस भावेण तेण पुणरवि अण्णे बहुपुरगला है लग्गति । त्रुटिकी पूर्ति हो जाती है जिसका उल्लेख ऊपर
नं०१में किया गया हैजह नुप्पि य गत्तस्स य णिवडारेणुव्वलगंति ॥२४॥
अहिमुहणियमयबोहणमाभिणि बोहियमणिदंइंदियनं । एक समयणिबद्धं कम्मं जीवेण सत्तभेयहि ।
बहुअादि उग्गहादिक कय छत्तीसा-तिसय भेदं ॥३७॥* परिणमई पाउकम्मं बंधं भूयाउ सेसेण ॥२५॥
अत्थादो अत्यंतरमुवलंभं तं भणंति सुदणाणं । सो बंधो चउभेयो णायव्यो होदि सुत्तणिहिटो।।
श्राभिणियोहियपुव्वं णियमेणिड सहजं पमुहं ॥३॥ पयडिटिदिअणुभागप्पएसबंधोहु चउविहो कहियो ॥२६।।
वहीयदित्ति प्रोही सीमाणणेत्ति वरिणयं समये । कर्मकाण्डकी २१वीं गाथाके बाद कर्मप्रकृतिमें भवगुणपच्चयविहियं जं ओहि णाणत्तिणं विति ॥३६॥ निम्न आठ गाथाएँ और पाई जाती हैं, जिनमें चितियमचितियं वा अद्धं चितिय मणेयमेयगयं । उक्त गाथोल्लेखित आठ कर्मों के स्वभाव विषयक मणपजवंति उच्चइज जाणइ तं ख णरलोए ॥४०॥8 दृष्टान्तोंको स्पष्ट करके बतलाया है, और इसलिये . संपुण्णं तु सम्मग्गं केवलमसवत्त सव्वभावगयं । ये सब वहाँ सुसंगत जान पड़ती हैं
लोयालोयवितिमिरं केवलणाणं मुणेदव्वं ॥४१* णाणावरणंकम्मं पंचविहं होइ सुत्तणिटिं। मसुदमोहिमणपज बकेवलणाणावरणमेवं । जह पडिमोपरिखित्तं कप्पडयं छाययं होइ ॥२८॥ पंचवयप्पं णाणावरणीय जाण जिणभणिदं ॥४२॥ दसणावरणं पुण जिह पडिहारों हु णिवदुवारम्हि। सामरणं गहणं भावाणं णेव कटु मायारं । णवविहं पॐ पुडत्थवागिहि सुत्तम्हि ॥२६॥ अविसेसदूण अढे दसणमिदि भण्णदे समये ॥४३॥* महुलित्तखग्गसरिसं दुविहं पुण होह वेयणीयं तु । चक्खूण नं पयासइ दीसइ तं चक्खू दंसणं विति । सायासापविभिएणं सुह-दुक्खं देइ जीवस्स ॥३०॥ . सेसिदियप्पयासो णायन्वो सो अचक्खुत्ति ॥४४॥* मोहेइ मोहणीयं जह मयिरा अहव कोदवा पुरिसं। परमाणुअादियाई अंतिमखंधत्ति मुत्ति दवाई। तं अडवीस विभिएणं णायब्वं जिणु वदेसेण ॥३१॥ तं ओहि दसणं पुण नं पस्सइ ताइ पच्चक्खं ॥४॥ श्राउं चउप्पयारं णारय-तिरिच्छ मणुय सुरगईयं । बहुबिहबहुप्पयारा उज्जोवा परिमियम्मि खेत्तम्मि । हडिखित्त पुरिससरिसे जीवे भवधारणं समत्थं ॥३२ लोयालोयवितिमिरो जो केवलदसणुज्जोओ ॥४६॥* चित्तं पडंबविचित्तं णाणा णाम णिवत्तणं णाम। * इस चिन्ह वाली गाथाएँ गोम्मटसार जीवतेया णवणिय गणियं गइ-जाइ-सरीर-आईयं॥३३॥ काण्डमें क्रमशः नम्बर ३०५, ३१४, ३६३, ४३७, गोदं कुलाल सरिसं णीचुच्चकुलेसु पायणे दच्छं। ४५६, ४८१, ४८३, ४८४, ४८५, २८३, २८४, २८५, घडरंजणाय करणे कुंभायारो जहा णेवरणो ॥३॥ २८६, २७३, २७२, २७४ पर उपलब्ध होती हैं।

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