Book Title: Anekant 1940 06 07
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 44
________________ ५२२ अनेकान्त [ज्येष्ठ-अषाढ़, वीर-निर्वाण सं० २४६६ आठवें माने गये हैं और सम्भवतः वेदोंमें भी एवं श्री नेमिनाथ आदि कतिपय तीर्थङ्करोंका इन्हींका उल्लेख मिलता है । इन्हीं ऋषभदेवके उल्लेख मानते हैं । आधुनिक खोजमें जैनियोंज्येष्ठ पुत्र सम्राट भरतके नामसे यह देश भारत- के अन्तिम तीर्थङ्कर भगवान महावीरके पूर्ववर्ष कहलाता है। बीसवें तीर्थकर श्री मुनिसुव्रत- गामी २३वें तीर्थङ्कर भगवान पार्श्वनाथको नाथके कालमें ही मर्यादा-पुरुष रामचन्द्र एवं सभी इतिहासवेत्ता सम्मिलितरूपसे ऐतिहासिक लक्ष्मण हुए थे । श्रीकृष्ण २२ वें तीर्थङ्कर श्री व्यक्ति स्वीकार कर चुके हैं, जो भगवान् नेमिनाथ के समकालीन ही नहीं, बल्कि इनके महावीरसे प्रायः ढाईसौ वर्ष पहले हुए थे। ताऊजाद भाई थे । अब कई विद्वान भगवान् अतएव आधुनिक दृष्टिसे एक विशेष विश्वसनीय नेमिनाथको भी ऐतिहासिक व्यक्ति मानने लगे जैन इतिहास ई० पूर्व नवमी शताब्दीसे प्रारम्भ हैं । गुजरातमें प्राप्त ई० पूर्व लगभग ११ वीं हुआ था यह निर्विवादरूपसे माना जा सकता शताब्दीके एक ताम्रपत्रके आधार पर हिन्दू है। अस्तु, यह विषयान्तर है। अब आइये प्रस्तुत विश्वविद्यालय बनारसके सुयोग्य प्रोफेसर डाक्टर विषय पर। प्राणनाथ विद्यालंकार तो इन्हें ऐतिहासिक व्यक्ति जैनियोंकी दृष्टिमें बिहार' इस विषयपर स्पष्ट घोषित करते हैं। बल्कि प्रोफेसर प्राणनाथ- ऐतिहासिक दृष्टिसे विचार करता हुआ मैं सर्वजी का कहना है कि 'मोहोनजोदारो' से प्रथम अन्तिम तीर्थङ्कर भगवान महावीरको ही उपलब्ध पाँचहजार पूर्वकी वस्तुओंमें कई शिलाएँ लूँगा। भगवान महावीरका जन्म आजसे २५३८ भी हैं जिनमें से कुछ में 'नमो जिनेश्वराय' साफ वर्ष पूर्व चैत्र शु० त्रयोदशीके शुभ दिन वर्तमान अंकित मिलता है। मुजफ्फरपुर जिले के वसाढ़ नामक स्थानमें हुआ । यद्यपि भगवान पार्श्वनाथके पूर्वके तीर्थङ्करोंके था, जिसका प्राचीन वैभवशाली नाम वैशाली अस्तित्वको प्रमाणित करनेके लिये हमारे पास था। भगवान महावीरके श्रद्धेय पिता नृप सिद्धार्थ सबल ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं, फिर भी थे। ये काश्यपगोत्रीय इक्ष्वाकु अथवा नाथ या जैन-ग्रन्थोंके कथन एवं आजसे लगभग ढाई- ज्ञातवंशीय क्षत्रिय थे । इनका विवाह वैशालीके तीन हजार वर्ष पूर्व निर्मित अवशेष ' तथा लिच्छिवी क्षत्रियों के प्रमुखनेता राजा चेटककी शिलालेखादि ५ से शेष तीर्थङ्करोंके अस्तित्वका पुत्री प्रियकारिणी अथवा त्रिशलाके साथ हुआ पता अवश्य चलता है। बल्कि कई विद्वान् था। राजा चेटक-जैसे संभ्रान्त राजवंशसे सिद्धार्थरामायण, महाभारतादि ग्रन्थों में ही नहीं किन्तु यजुर्वेदादि सुप्राचीन वैदिक साहित्यमें जैन-धर्म का वैवाहिक सम्बन्ध होना ही इनकी प्रतिष्ठा और गौरवका ज्वलन्त निदर्शन है। जैनप्रन्थोंमें ३ देखो, 'इण्डियन हिस्टारिकल क्वाटली' भाग ७. नं० २। ४ देखो, कंकालीटोले वाला मथुरा-जैनस्तूप। ६ देखो, 'संक्षिप्त जैन इतिहास' प्रथम भागकी प्रस्तावना ५ देखो, खण्डगिरि-उदयगिरि-सम्बन्धी हाथी-गुफाका और 'वेद पुराणादि ग्रन्थों में जैनधर्मका अस्तित्व' । शिलालेख। ७ देखो, 'उत्तरपुराण' पृष्ठ ६०५ ।

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