________________
५२८
. अनेकान्त
[ज्येष्ठ-अषाढ़, वीर-निर्वाण सं० २४६६
-
का । उसने अपने प्रियधर्म को फैलाने के लिए यहीं संवरण करना पड़ता है। यह बात निर्विवाद बहुत प्रयत्न किया था।२ परिशिष्ट पर्वके कथ. सिद्ध है कि राजगृह, पाटलिपुत्र आदि पुरातन नानुसार सम्प्रतिने अनार्य देशोंमें भी जैन-धर्म स्थानोंसे जैनधर्मका बहुत पुराना अभेद सम्बन्ध का प्रचार किया था। दानशाला-निर्माण आदि है। १९३७ के फरवरी महीनेमें पटना जंक्सनसे अनेक लोकोपकारक कार्य भी जैनधर्मके प्रचार एक मीलकी दूरी पर लोहनीपुर मुहल्लेमें जो दो में सम्प्रतिके पर्याप्त सहायक हुए हैं। दिगम्बर जैन मूर्तियाँ खोदते वक्त मिली हैं उनके
बृहस्पतिमित्रको जीतकर मगधको वशमें लाने सम्बन्धमें पुरातत्त्वके अनन्य मर्मज्ञ स्वर्गीय डा० वाला सम्राट् खारवेल भी कट्टर जैन-धर्मावलम्वी काशीप्रसाद जायसवालका कहना है कि भारतथा। खारवेलने जैनधर्मकी बहुत बड़ी सेवा की वर्षों आजतककी उपलब्ध मूर्तियोंमें ये सबसे थी। हाथीगुफा वाले शिलालेखमें खारवेलको प्राचीन हैं । जायसवाल महोदय इन मूर्तियोंको 'धर्मराज' एवं 'भिक्षुराज' कहा गया है। कलिंगके ईसासे ३०० वर्ष पूर्वकी मौर्यकालीन मानते हैं२२ । कुमारी पर्वतपर खारवेल और उसकी रानीने कुलहा पहाड़ ( हजारी बाग.) श्रावक पहाड़ अनेक मन्दिर तथा विहार बनवाये थे। खासकर (गया), पचार पहाड़ ( गया ) आदि स्थानों की सम्राटके द्वारा निर्मित वहाँकी गुफाओंका मूल्य
मानक खोज की बड़ी आवश्यकता है। संभव है इन अत्यधिक है।
स्थानोंकी खोजसे कुछ नयी बातें इतिहासको
उपलब्ध हों। कुछ विद्वानोंका खयाल है कि कुलहा बादके विहारमें शासन करनेवाले गुप्तवंश
पहाड़ भगवान् शीतलनाथ तीर्थंकर की तपोभूमि आदि अन्यान्य राजाओंका जैनधर्मसे क्या संबंध रहा, इस बात को खुलासा करनेसे लेखका कलेवर विशेष बढ़ जायगा। इसलिये अपनी इस इच्छाका
२२ देखो, 'जैन ऐन्टीक्वेरी' भाग ३, नं० १ पृष्ठ १७-१८
२३ देखो, 'दिगम्मबरीय जैन डाइरेक्री।' २० देखो, सत्यकेतु विद्यालङ्करका 'मौर्यसाम्राज्य का इतिहास ।
२१ देखो, विशेष विवरणके लिये 'सक्षिप्तजैनइतिहास' भाग २ खंड २।