Book Title: Anekant 1940 06 07
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 42
________________ १२० प्रकान्त [ज्येष्ठ, भाषाद, वीर निर्वाण सं० २४६६ २–पण्डित बनारसीदासकृत नाटक समयसार दिया था उसे कार्यमें परिणतः करनेका अपना टीका भी कर्तव्य समझेगा, और तद्नुसार जैन प्रन्थों का अनेक भाषाओं में अनुवादादि कर प्रचार ३-नित्यनियम पूंजा बस्कृतकी टीका। करनेका जरूर कोई संगठित प्रयत्न करेगा। ऐसा ४–अकलंक स्तोत्रको टीका । . . करके ही वह अपने उपकारीके ऋणसे उऋण हो सकेगा।।... ... ... ५-तत्त्वार्थसूत्रकी लघु टीका। - वीर सेवामन्दिर सरसावा . पिछली चार टीकाओंके सामने न होनेके ता०५-५-१९४० कारण उनके विषयमें रचना संवत् और प्रशस्ति . आदिका कोई ठीक परिचय नहीं मिल सका। यह लेख श्रीमूलचन्दा किसनदासजी कापरिकाके आशा है समाज पंडितजीके उपकारको स्मरण 'दिगम्बर जैन पुस्तकालय' सूस्तसे शीघ्र प्रकाशित होने करता हुआ उनके सेवा भावका आदर्श सामने वाली 'अर्थप्रकाशिका' टीकाके लिये प्रस्तावनाके रूपमें रक्खेगा और जिनवाणीके प्रचारका जो सन्देश लिखा गया है। उन्होंने अपने शिष्य पंडित पन्नालालजी संघीको 7

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