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वर्ष ३, किरण ८-९]
जैनियों की दृष्टिमें बिहार
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एक दृष्टि से विहारको यदि जैन-धर्मका उद्गम पाँचों जैन धर्मावलम्बी सिद्ध होते हैं १२ । उल्लिखित स्थान माना जाय तो भी कोई ऐसा घोर विरोध ग्रन्थों में ये सभी शासक धर्मात्मा, वीर एवं राजनहीं दिखता। क्यों कि इस समय जैन धर्मका जो नीतिपटु कहे गये हैं। इन राजाओंमें खासकर कुछ मौलिक सिद्धान्त उपलब्ध है, वह अन्तिम श्रेणिक या बिम्बसारको जैनग्रंथोंमें प्रमुख स्थान तीर्थङ्कर भगवान् महावीरके उपदेशका ही सार प्राप्त है, यह बात मैं पहले ही लिख चुका हूँ। समझा जाता है। हाँ, यह बात अवश्य है कि कुणिक या अजातशत्रु भी अपने समयका एक
आपका सिद्धान्त अपने पूर्ववर्ती शेष तेईस तीर्थंकरों प्रख्यात प्रतापी राजा था । इसने बौद्ध धर्म से के सिद्धान्तकी पुनरावृत्ति मात्र है । जैनियोंकी यह असन्तुष्ट होकर जैनधर्मको विशेषरूपसे अपनाया दृढ श्रद्धा है कि अपने वन्दनीय चौबीस तीर्थङ्करों था। मालूम होता है कि इसीलिये बौद्धग्रंथोंमें यह के मौलिक उपदेश में थोड़ा भी अन्तर कभी नहीं दुष्कर्मो का समर्थक एवं पोषक कहा गया है। रहा है। ऐसी दशामें विज्ञ पाठक स्वयं विचार कर भगवान महावीर का निर्वाण इसीके राज्य कालमें सकते हैं कि जैनियोंकी दृष्टि में विहार कितना हुआ था । परन्तु एक बात जरूर है कि इस महत्वपूर्ण अग्रस्थान रखता है । अब मैं यहाँ पर कुणिक या अजातशत्रुके राज्याधिकारी होते ही संक्षेपमें इस बातका दिग्दर्शन करा देना चाहता हूँ इसका व्यवहार अपने पिता श्रेणिकके प्रति बुरा होने कि भगवान महावीरके उपरान्त इस विहारमें लगा था। जैनग्रंथ कहते हैं कि पूर्व वैरके कारण शासन करनेवाले भिन्न भिन्न राजवंशोंका जैन- अजातशत्र अपने पिताको काठके पिंजरे में बन्दकर धर्मसे कहाँतक सम्बन्ध रहा है।
उसे मनमाना दुःख देने लगा था। किन्तु बौद्ध शिशनागवंश-ई० पूर्व छठी शताब्दी में ग्रन्थोंसे पता चलता है कि इसने बुरा कार्य देवदत्त मगधराज्य भारतमें सर्वप्रधान था । इस प्रमुख
. नामक एक बौद्ध-संघ-द्वेषी साधु के बहकानेसे
किया था। राज्य के परिचयसे ही भारतका एक प्रामाणिक इतिहास प्रारम्भ होता है । उस समय यहाँके
नन्द-वंश-सर विन्सेन्टस्मिथ, एम० ए०
का कहना है कि नन्द राजा ब्राह्मण धर्मके द्वेषी शासनकी बागडोर शिशुनागवंशीय वीर क्षत्रियों के
पार जैनधर्मके प्रेमी थे। कैम्ब्रिज हिस्ट्री भी हाथमें थी। इस वंशके राजाओंने ई० पूर्व ६४५ इस बातका समर्थन करती है। नव नन्दोंके से ई० पूर्व ४८० तक यहाँ पर राज्य किया है। मन्त्री तो निस्सन्देह जैनधर्मानुयायी थे। महा. उत्तरपुराण, आराधना-कथाकोश और श्रेणिक- पद्मका मन्त्री कल्पक था, इसीका पुत्र परवर्ती चरित्र आदि जैन ग्रंथोंसे इस वंशके शासकों- नन्द का मन्त्री रहा । अन्तिम नन्द सकल्य में से (१) उपश्रेणिक, (२) श्रेणिक (विम्बसार) देखो, विशेष परिचय के लिये 'संक्षिप्त जैन इतिहास' (३)कुणिक (अजातशत्रु),(४)(दर्शक, (५) उदयन ये भाग २, खण्ड २ । १३ देखो, 'अली हिस्ट्री आफ इण्डिया'