Book Title: Anekant 1940 06 07
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ अर्थप्रकाशिका और पं०सदासुखजी [ले०५० परमानन्द जैन शास्त्री ] श्रीउमास्वातिके . तत्वार्थ सूत्रकी हिन्दी लेप अपना उपयोगकी विशुद्धताके अर्थि तथा टीकाओं में 'अर्थप्रकाशिका' अपना स्वास तथा संस्कृतके बोधरहित अल्पज्ञानिके तत्त्वार्थस्थान रखती है । इसमें प्राचीन जैन ग्रन्थों के अनु- - सूत्रनिके अर्थ समझनेके अर्थि अपनी बुद्धिके सार सूत्रोंका स्पष्ट अर्थ ही नहीं दिया गया, बल्कि अनुसार लिखी है. । परन्तु राजवार्तिकका अर्थ उनका विशद व्याख्यान एवं स्पष्टीकरण भी किया कहूँ कहूँ गोम्मटसार, त्रिलोकसारका अर्थ लेय गया है-सूत्रमें आई हुई प्रायः उन सभी बातोंका लिया है । अपनी बुद्धिकी कल्पनाते इस प्रन्थमें इसमें यथेष्ट विवेचन है जिनसे तत्वार्थके जिज्ञा- एक अक्षर हूँ नहीं लिखा है । जाकै पापका भय सुओंको तत्वार्थ विषयका बहुत कुछ परिज्ञान हो होयगम, अर जिनेन्द्रकी आज्ञाका धारने वाला जाता है । टीकाकी प्रामाणिकताके विषयमें पण्डित होपगा सो जिनेन्द्र के आगमकी आज्ञा बिना एक सदासुखदासजीके निम्न लद्गार खास तौरसे अचर स्मरणगोचर नहीं करेगा लिखना तो बणे ध्यान देने योग्य हैं । जिनसे स्पष्ट है कि इस टीका ही कैसे ? अर ज़े सूत्र आज्ञा छाँड़ि अपने मनकी में जो कुछ विशेष कथन किया गया है वह सब मुक्ति से ही अपने अभिमान पुष्ट करने• योग्य राजवार्तिक, गौम्मटसार और त्रिलोकसार आदि अयोग्य कल्पना करि लिखें हैं ते मिथ्यादृष्टि सूत्रप्रन्थोंका आश्रय लेकर किया गया है-पंडितजीने द्रोही अनन्त संसार परिभ्रमण करेंगे”। ... अपनी ओरसे उसमें एक अक्षर भी नहीं लिखा: इस टीकाके अन्तमें दी हुई प्रशस्ति से एक है। वे तो सूत्र-विरुद्ध लिखने वालेको मिथ्यादृष्टि बातका और भी पता चलता है और वह यह कि; और सूत्रद्रोही तक बतलाते हैं। और ऐसा करने . यह टीका अकेले पण्डित सदासुखदासजीकी ही को बहुत ही ज्यादा अनुचित समझते हैं, और कृति नहीं है, किन्तु दो विद्वानोंकी एक सम्मिलित इसलिये ऐसे सूत्रकी आज्ञानुसार वर्तने वाले तथा कृति है। इस बातको सूचित करने वाले प्रशस्तिके पाप भयसे भयभीत विद्वानों के द्वारा अन्यथा अर्थ -पद्य निम्न प्रकार हैंके लिखे जानेकी सम्भावना प्रायः नहींके बराबर ........ चौपाई है। पंण्डितजीके वे उद्गार इस प्रकार हैं: "ऐसैं अर्थ प्रकाशिका नाम देश भाषा बच-. "पुरव में गंगा तट धाम, निका श्री राजवार्तिक नाम ग्रन्थका अस्प लेश. . अति सुंदर आरा तिस नाम । चौपाई

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80