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अनेकान्त
[ज्येष्ठ, भाषाढ़, वीर-निर्वाण सं०२४६६
पिताजी जहाँ प्रसिद्ध कवि थे, वहाँ चिकित्सक भी मैं दस मील चल कर आया हूँ, ज़रा माँकी तो कर बड़े अच्छे थे । बड़े २ रोगोंका सफलतापूर्वक इलाज. लेने दीजिए ।" करना उनके लिये साधारण बात थी। दूर-दूरके लोग उनसे चिकित्सा कराने आते रहते थे । उन्होंने चिकित्सा पटवारीजी पिताजीकी दशा देखकर दङ्ग रह गए। कार्यसे निर्वाह अवश्य किया; परन्तु धनी होनेकी बात वे उन्हें देखकर बैठकमें आए और बड़ी निराशापूर्वक कभी स्वप्नमें भी न सोची। उनकी बताई कौड़ियोंकी एक पुड़िया देते हुए बोले-“देखिये यह एक साधुकी दवासे रोगी बराबर अच्छे होते रहते थे। उनकी फीस बताई हुई बूटी है, खूनी बवासीरको तुरंत आराम कर निश्चित न थी, जिसने जो दे दिया ले लिया, ग़रीबोंसे देती है । मैंने इसे कितने ही मरीज़ों पर श्राजमाया है, तो कुछ लेते ही न थे बल्कि उनकी दवा-दारू और पथ्य- सब अच्छे हो गए । यह ठीक है कि पण्डितजी बहुत की व्यवस्था भी उन्हें करनी पड़ती थी। इस सेवा-भावके कमज़ोर हैं, उनमें साँस ही साँस बाकी है, फिर भी कारण पिताजी बड़े लोक-प्रिय हो गये थे । किसान, परमात्माका नाम लेकर आप इस बूटीको उन्हें ज़रूर गरीब तथा अछूत लोग उन पर अपना पूरा अधिकार पिलाइये।" समझते थे । पिताजी भी अमीरोंसे पीछे बात करते, पटवारीजीकी यह पुड़िया पं० पद्मसिंह शर्माने पहले गरीबोंकी कष्ट कथा सुनते थे । इसलिये बीमारीमें बड़े बेमनसे ली। खोलकर देखा, तो घास-फूस कूड़ाउनके भक्त दर्शनार्थियोंका ताँता लगा रहता था। करकट ? अरे, यह क्या बवाल ? * *
"नहीं, नहीं, बवाल नहीं, यह तो अमृत है । "क्यों भाई कैसे पाए, कहाँ रहते हो ?” सामने अाप इस दवामेंसे दस माशे लेकर पन्द्रह-बीस काली खड़े हुए एक ग्रामीण भाईसे पं० पद्मसिंह शर्माने बड़ी मिर्च मिलवाइये और भंग की तरह घोट पीस तथा उदासीनतासे पूछा।
डेढ़ पाव जलमें छानकर अभी पिला दीजिए और इसी ___ "पण्डितजीकी बीमारीका हाल सुनकर आया हूँ... तरह सु बह पिलाइए । तीन-चार दिन करके तो देखिए, का पटवारी हूँ सुना है, उन्हें बवासीरकी बीमारी है ।” परमात्माने चाहा, तो आराम हो जायगा।" ग्रामीण --मोटे झोटे कपड़े पहने हुए उस अागन्तुकने उत्तर भाईने कहा। दिया।
पं० पद्मसिंह शर्माके निराश हृदयमें एक बार ___ "अरे भई ! अब पण्डितजीको क्या देखोगे ? दो- फिर आशाका सञ्चार हुआ, उन्होंने मेरे भाई एक दिन के मेहमान हैं । मिलने जुलने से उन्हें कष्ट स्वर्गीय उमाशङ्करजीसे कहा- "लो इसे पीसो होता है । मैं सुबहसे अब तक लगभग ५० श्रादमियों और छानो। कभी-कभी ऐसी जड़ी-बूटी बड़ा काम को उनके पास जानेसे रोक चुका हूँ श्राप भी क्षमा कर जाती हैं, फिर यह तो एक साधुकी करें।"-शर्माजी बड़ी निराशा और दुःखसे बोले। बताई है ।" शामको दवाकी पहली मात्रा दी गई और ___ "नहीं साहब, मैं पण्डितजीके दर्शन करके लौट फिर सुबह पिलाई गई । इतने ही से खूनका वेग कुछ जाऊँगा। उन्होंने जीवन भर सबका भला किया है। कम हुआ। निपट निराशा-निशामें आशाकी किरण