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इस टीकाके सम्पादनादि करने में पंडित सदासुखजीका पूरे दो वर्षका समय लगा था । और वह विक्रम संवत १९१४ में वैसाख शुका दशमी रविवार के दिन पूर्ण हुई थी। जैसा कि प्रशस्तिके : निम्न पद्यसे प्रकट है:
संवत् उगणी से अधिक, चौदह
सुदि दशमी वैसाखी,
दितवार ||
पूरण किया विचार ||३|
यह टीका अपने विषयकी स्पष्ट विवेचक होने के साथ साथ पढ़ने में बड़ी ही रुचिकर प्रतीत होती है । इसी से इसके पठन-पाठनका जैनसमाजमें काफी प्रचार है ।
इस टीकाके प्रधान लेखक पंडित सदासुखजी तेरापन्थ आम्नायके प्रबल समर्थक थे । आप विक्रमकी १९ व २० वीं शताब्दी के बड़े अच्छे विद्वान् हो गये हैं । आपका जन्म खण्डेलवाल जाति में हुआ था और आपका गोत्र ' कासलीवाल ' था। आप डेडराज के वंशज थे और आपके पिता का नाम दुलीचन्द था, जैसा कि अर्थ प्रकाशिका प्रशस्तिकी निम्न पंक्तियों से प्रकट है:
दुलीचन्दका पुत्र,
राजवंश मांहि, इक किंचित ज्ञाता ।
अनेकान्त
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नाम सदासुख कहें,
कासलीवाल विख्याता ॥ ४ ॥
आत्मसुखका बहु इच्छुक ।
[ ज्येष्ठ, आषाढ़, वीर- निर्वाण सं० २४६६
सो जिनवानि प्रसाद,
विषय भए निरिच्छुक || ५ ॥
आपका जन्म विक्रम संवत १८५२ में अथवा उसके लगभग हुआ जान पड़ता है; क्योंकि आप की रत्नकरण्ड श्रावकाचारकी टीका विक्रम सं० १९२० की चैत कृष्णा चतुर्दशीको पूर्ण हुई है और उस समय उसकी प्रशस्ति में आपने अपनी आयु ६८ वर्षकी प्रकट की है । आपकी जन्म भूमि जयपुर है । उस समय जयपुर में राजा रामसिंहका राज्य था। कहा जाता है कि पं० सदासुखदासजी राज्यके खजांची थे और आपको जीवन निर्वाह के लिये राज्यकी ओरसे ८) रु० माहवार मिला करते थे। इन्हींसे आपका और आपके कुटुम्बका पालन-पोषण होता था । इस विषय में एक किम्बदन्ती इस तरहसे भी कही जाती है कि आपको जयपुर राज्य से ८) रु० माहवार जिस समय से मिलना शुरू हुआ था वह उन्हें बराबर उसी तरह से मिलता रहा उसमें जरा भी वृद्धि नहीं हुई । एकबार महाराजाने स्वयं अपने कर्मचारियों आदि के वेतनादिका निरीक्षण किया, तब राजाको मालूम हुआ कि राज्य के खजांचीके सिवाय, चालीस वर्ष के असेंमें सभी कर्मचारियोंके वेतन में वृद्धि हुई है - वह दुगुना और चौगुना तक हो गया है । परन्तु खजांचीके वही आठ रुपया हैं । यह सब जानकर राजा को बहुत कुछ श्राश्वर्य और दुःख हुआ। राजाने पंडितजीको बुलाकर कहा किमुझसे भूल हुई है जो आज तक आपके वेतन में किसी तरह की वृद्धि नहीं हो सकी। इतने थोड़ेसे खर्चमें आपके इतने बड़े कुटुम्बका पालन-पोषण
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