Book Title: Anekant 1940 06 07
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 37
________________ वर्ष ३, किरण ८१] . ... ... अर्थप्रकाशिका और पं०सदासुखजी तामैं जिन चेत्यालय से, परमेष्ठींसहायजी अग्रवाल 'जैन थे। आपने अपने । अग्रवाल जैनी बहु बसैं ॥ १३॥ पिता कीरतचन्दजीके सहयोगसे ही जैन सिद्धान्त का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था और आप - बहुज्ञाता तिन में जु रहाय, .. . बड़े धर्मात्मा सज्जन थे तथा उस समय नाम तासु परमेष्ठि सहाय।... आरामें अच्छे विद्वान समझे जाते थे । ... जैनग्रन्थमें रुचि बहु करै, ..उन्होंने साधर्म भाई जगमोहनदासकी मिथ्या धरमं न चित में धरै॥ १४॥ तत्त्वार्थ विषयके जाननेकी विशेष रुचिको देखकर दोहा स्वपरहितके लिये यह 'अर्थप्रकाशिका' टीका सब सो तत्त्वारथ सूत्रकी, . ..से पहले पाँच हजार श्लोक प्रमाण लिखी थी और फिर उसे संशोधनादिके लिये जयपुरके रची वचनिका सार । ...... प्रसिद्ध विद्वान पं० सदासुखदासजीके पास भेजा - नाम जु अर्थ प्रकाशिका, ..... था । पण्डित सदासुखजीने संशोधन सम्पादनादि .:. गिणती पाँच हजार ॥१५॥ के साथ टीकाको पल्लवित करते हुए उसे वर्तमान सो भेजी जयपुर विष, ११ हजार श्लोक परिमाणका रूप दिया है और इसीसे यह टीका प्रायः पण्डित सदासुनजीकी नाम सदासुख जाय। - कृति समझी जाती है। ...... सो पूरण ग्यारह सहस, ....... करि भेजी तिन पास ॥१६॥. - ... उक्त परिचय परसे इतना और भी साफ़ सवैया ध्वनित होता है कि पण्डित सदासुखजीकी कृतियों (भगवती आराधना टीका आदि ) का उस समय अग्रवाल कुल श्रावक कीरतचन्द, आरा जैसे प्रसिद्ध नगरों में यथेष्ट प्रचार. हो चुका जुआरे माँहि सुवास । था और उनकी विद्वत्ता एवं टीका शक्तिका सिक्का - परमेष्ठी सहाय तिनके सुत, ... सत्कालीन विद्वानों के हृदय पर जम गया था । यही पिता निकट करि शास्त्राभ्यास ॥१७॥ कारण है कि उक्त पण्डित परमेष्ठीसहायजीको '' किलो ग्रंथ निज पर हित कारण, तत्त्वार्थसूत्रकी टीका लिखने और उसे जयपुर लखि बहु रुचि जग मोहनदास । पण्डितजीके पास संशोधनादिके लिये भेजनेकी प्रेरणा मिली । इतना ही नहीं, बल्कि उसमें यथेष्ट ., सस्वारथ अधिगम सु सदासुख, परिषर्धन करने की अनुमति भी देनी पड़ी है। तभी रास चहँ दिश अर्थप्रकाश ॥ १८ ॥ पंडित सदासुखजी उस टीकाको दुगनेसे भी अइन फलोंसे स्पष्ट है कि पारा निवासी पंडित धिक विस्तृत करनेमें समर्थ हो सके हैं।

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