Book Title: Anekant 1940 06 07
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 16
________________ जैनागमोंमें समय - गणना [ लेखक - श्री अगरचन्द नाहटा ] नागम भारतीय प्राचीन संस्कृति, साहित्य और इतिहास के भंडार हैं । दार्शनिक और साहित्यिक दोनों विद्वानोंके लिये उनमें बहुत कुछ मननीय एवं गवेषणीय सामग्री भरी पड़ी है। पर दुःखकी बात कि भारतीय जैनेतर विद्वानोंने इन जैनागमोंकी ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया । हाँ पाश्चात्य विद्वानोंमें से डाक्टर हर्मन जैकोबी आदि कुछ विद्वानोंने उनका वैदिक एवं बौद्ध साहित्य के साथ तुलनात्मक अध्ययन ज़रूर किया है और उसके फलस्वरूप अनेक नवीन तथ्य साहित्यप्रेमी संसारके सन्मुख लेखों तथा ग्रन्थोंके रूपनें प्रकट किये हैं । इधर कुछ वर्षोंसे हमने कई जैनागमका साहित्यिक दृष्टिकोण से अध्ययन किया, उनकी सिर्फ साहित्यक ही नहीं बल्कि विविध दृष्टियों से बहुमूल्य पाया । प्रत्येक विषयके विद्यार्थियोंको उनमें कुछ न कुछ नवीन और तत्थ पूर्ण सामग्री मिल सकती है । उनमें कई विषय तो हमें तुलनात्मक दृष्टिसे बहुत ही महत्वपूर्ण प्रतीत हुए, अतः उनको साहित्य संसार के समक्ष रखते हुए विद्वानोंका ध्यान उस ओर आकर्षित करना हमें परमावश्यक मालूम होता है। इस दृष्टिसे, प्रस्तुत लेखमें, 'समयगणना' का जैसा रूप जैनागमों में प्राप्त होता है उसे पाठकोंके सन्मुख रखा जाता है। जैनदर्शन में कालद्रव्यका सबसे 'सूक्ष्म अंश 'समय' है । समयकी जैसी सूक्ष्मता जैनागमोंमें बतलाई गई है वैसी किसी भी दर्शन में नहीं पाई जाती। इस सूक्ष्मता का कुछ आभास उदाहरण द्वारा इस प्रकार व्यक्त किया गया है: — प्रश्न – शक्ति सम्पन्न, स्वस्थ और युवावस्था वाला Latest लड़का एक बाटीक पट्टसाड़ी - वस्त्रका एक हाथ प्रमाण टुकड़ा बहुत शीघ्रतासे एक ही झटके से फाड़ डाले तो इस क्रियामें जितना काल लगता है क्या वही समयका प्रमाण है ?' उत्तर -- 'नहीं, उतने कालको समय नहीं कह सकते, क्योंकि संख्यात् तन्तुनों के इकट्ठे होने पर वह वस्त्र बना है, अतः जब तक उसका पहला तन्तु छिन्न नहीं होगा तब तक दूसरा तन्तु छिन्न नहीं होता । पहला तन्तु एक काल में टूटता है, दूसरा तन्तु दूसरे काल में, इस लिये उस संख्येय तन्तुयोंको तोड़नेकी क्रिया वाला काल समय संज्ञक नहीं कहा जा सकता ।'. प्रश्न - 'जितने समय में वह युवा पसाटिका के पहले तन्तुको तोड़ता है क्या उतना काल समय-संज्ञक होता है ?' उत्तर- 'नहीं, क्योंकि पट्टसाटिका एक तन्तु संख्यात सूक्ष्म रोमोंके एकत्रित होने पर बनता है, अतः तन्तुका पहला – ऊपरका रूाँ जब तक नहीं टूटता तब तक नीचे वाला दूसरा रूाँ नहीं टूट सकता ।" प्रश्न - 'तब क्या जितने काल में वह युवा पट्टसाटिका के प्रथम तन्तुके प्रथम रोयेंको तोड़ता है उतना काल समय संज्ञक हो सकता है ?'

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