Book Title: Anekant 1939 11
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ कार्तिक, वीर निर्वाण सं०२४६६] सत्य अनेकान्तात्मक है आत्मा और प्रकृतिके पारस्परिक सम्बन्धके सम- मत है है। परन्तु पारमार्थिकदृष्टि (Transcendeझानेमें कठिनाई उपस्थित की है । आत्मा और ntal view) वालोंके लिये, जो वर्तमान जीवनको मनका बहिष्कार दूसरी कमजोरी है । यह बहिष्कार अनन्तप्रवाहका एक दृश्यमात्र मानते हैं, जिनके लिये ही जडवादका आधार हुआ है । प्रकृतिका बहिष्कार जन्म आत्माका जन्म नहीं है और मृत्यु आत्माकी भी कुछ कम भूल नहीं है-इसने संकीर्ण अनुभव- मृत्य नहीं है और जिनके लिये 'अहं' प्रत्ययरूप मात्रवाद ( Idealism ) को जन्म दिया है । आत्मा शरीरसे भिन्न एक विलक्षण, अजर, अमर, जीवनके व्यवहार्य पहलू पर अधिक जोर देनेसे सच्चिदानन्द सत्ता है, संसार दुखमय प्रतीत होता लोकायत मार्गको महत्व मिला है । लौकिक जीवन- है और इन्द्रिय-सुख निस्सार तथा दुःखका कारण चर्या-जीवनके व्यवहार्य पहलूको बहुत गौण दिखाई पड़ता है ।। करनेसे छायावादका उदय हुआ है ।। अनुभवकी तरहसत्यके प्रति प्राणियोंका ___ सत्यानुभूतिके साथ जीवनलक्ष्यका आचार भीबहुरूपात्मक है - घनिष्ट सम्बन्ध सत्यका-जीवनलक्ष्यका-अनुभव ही बहुरूजगत और जीवन-सम्बन्धी विविध अनुभूति- पात्मक नहीं है प्रत्युत इन अनुभवोंके प्रति क्रिया यों और धारणाओंके साथ साथ जीवनके आदर्श रूप प्राणधारियोंने अपने जीवन निर्वाहके लिये और लक्ष्य भी विविध निर्धारित हुए हैं । वह अपने जीवनको निष्कण्टक, सुखमय और समुन्नत लक्ष्य तात्कालिक इन्द्रिय-सुखसे लेकर दुष्प्राप्य बनानेके लिये जिन मार्गोको ग्रहण कर रक्खा है, आध्यात्मिक सुख तक अनेक भेदवाला प्रतीत (अ) हरिभद्रसूरिः-षड्दर्शनसमुचना, ८०-८५ होता है। (आ) श्रीमाधवाचार्य-सर्वदर्शनसंग्रह-चाक___ लौकिक दृष्टिवालोंके लिये, अर्थात् उन लोगों दर्शन के लिये जो व्यवहारमें प्रवृत्त वर्तमान लौकिक (इ) सूत्रकृतांग-२-१,१५-२१, जीवनको ही सर्वस्व समझते हैं,जो इसीको जीवन- (ई) प्रादिपुराण ५, ५३-७५, का आदि और अन्त मानते हैं, जो जीवनको (उ) दीघनिकाय-सामन्जसफलसुत्त भौतिक इन्द्रियकी एक अभिव्यक्ति देखते हैं, यह + (अ) उत्तराध्ययनसूत्र-१३-१६,१४.२१-२३ । संसार सुखमय प्रतीत होता है। उनके लिये इन्द्रिय (आ) कुन्दकुन्द-द्वादशानुप्रेक्षा। सुख ही जीवनका रस और सार है। इस रससे (इ) बौद्ध साहित्यमें "संसार दुःखमय है" यह मनुष्यको वञ्चित नहीं करना चाहिये । जडवादी चार आर्यसत्योंमें एक आर्यसत्य कहा गया चार्वाक-दार्शनिकों ( Hedonsists ) का ऐसा ही है। धम्मपद १७, दीघनिकाय-महासतिपट्टानसुत्त । : Sir Oliver Lodge F. R.S.---Ether and (ई) महाभारत-शान्तिपर्व, १७५.१; १७४-७. Reality, London, 1930. P.20. १२१३

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144