Book Title: Anekant 1939 11
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 77
________________ कार्तिक वीर निर्वाण सं०२४६६]] मातृत्व थी-मृदु-मुस्कान !... अनेक विद्वान-सभासद और कौतूहलकी अजय वसुमित्रा ने एकबार ममता-मयी दृष्टिसे बालककी प्रेरणा-द्वारा प्रेरित जन-समूह विद्यमान था ! सब, इस ओर देखा और सिसकने लगी, जैसे उसके मातृत्वको विचित्र-न्यायको देखने के लिए लालायित थे !...तीक्ष्ण ठेस लगी हो, किया गया हो निर्दयता-पूर्वक उसपर बुद्धि-द्वारा दम्भके माया-जालसे मातृत्वकोखोज निकालना अाघात ! __ था !... प्रमुख-निर्णायकने अबकी बार वसुदत्ताकी ओर 'पुत्र किसका है ? ताका!... 'मेरा...' वह बोली-'ये सम्बन्ध सुबूतके मुहताज नहीं,क्रिया 'नहीं, मेरा है !' बतलाती है ! माँका नाता हार्दिक नाता होता है, वह तो फिर झगड़ा क्या है' दोनोंका ही सही ! दोनों जबर्दस्ती किसी पर लादा नहीं जा सकता ! न-उसके प्रेम करती हो ?' भीतर भ्रमके लिए स्थान ही है ! निश्चय ही वसुमित्रा हाँ !'-दोनोंका एक ही उत्तर ! को धन-लिप्साने इतना विवेकशून्य बना दिया है कि 'लेकिन प्रेम और मातृत्व दो अलग-अलग चीजें वह मातृत्व-तकको चुरा सकनेकी सामर्थ्य खोज हैं / प्रेम सार्वजनिक है और मातृत्व व्यक्तिगत ! प्रेम रही है ! दोनों कर सकती हो, लेकिन माँ दो नहीं बन सकती !' ___ न सुलझी, आखिर जटिल-उलझन ! लौट आए श्मशान-शान्ति ! पंच ! कौन निर्णय दे कि कौन यथार्थ में माँ है, और कोई चिन्ता नहीं ! न्यायकी कसौटीको झूठ भुलावा कौन धन-प्राप्ति के लिए दम्भ रचने वाली ? दोनोंकी पुत्र नहीं दे सकता ! अगर अब भी चाहो, सच बतला दो! पर समान-ममता, समान-स्नेह है ! अाजसे, अभीसे, अभयकुमारने दोनोंकी अोर समानतासे देखते हुए कहा / नहीं, जबसे समुद्रदत्तने यहाँ डेरा डाला, तभीसे लोगोंने मेरा...पुत्र है !' वसुमित्राके वाष्पाकुलित कण्ठसे इसी प्रकार देखा है ! प्रारम्भसे ही यह भ्रम जड़ पकड़ता निकला ! रहा है !... 'झूठ कह रही है, पुत्र मेरा है !'- वसुदत्ताने जमी हुई आवाज़ में निवेदन किया / [4] 'ठीक !' अभयकुमारने प्रहरीसे कहा-'एक छुरा न्यायालयमें !- . लाभो!' महाराज श्रेणिकने गंभीरतापूर्वक वस्तु-स्थिति पर छुरा लाया गया ! विचार किया। लेकिन समस्याका हल न खोज सके ! दर्शक-नेत्र विस्फारित हो, देखने लगे! वसुमित्राका कहना पड़ा-'इसका न्याय-भार अभयकुमारको मुँह सूखने लगा ! आँखें निर्निमेष !... दिया जाय !' वसुदत्ता अटल खड़ी रही! __ और तभी उभय-पक्षके व्यक्ति युवराज राज-नीति- दूसरे ही क्षणपण्डित-अभयकुमारके दरबारमें आउपस्थित हुए !. बालकको लिटाया गया ! हाथमें चमचमाता हुअा

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