Book Title: Anekant 1939 11
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 97
________________ वीरके दिव्य उपदेशकी एक झलक ले-श्री जयभगवानजी बी० ए० वकील ] चान्तिम जैनतीर्थकर श्रीवीर भगवान् ने विपुलाचल पर्वत तबसे तू क्या जाने, क्षितिजमें कितने सांझ सवेरे नपर संसारी आरमाको लक्ष्य करके उसके उद्धारार्थ हुए, और विलय हो गये। नभमें कितनी अँधयारी जो सारभूत दिव्य उपदेश दिया था उसकी एक झलक चांदनी रातें आई और चली गई / भूपर कितने ऋतुइस प्रकार है: चक्र नाचे और उड़ गये / लोकमें कितने युग उठे ऐ जीव ! तू अजर अमर है, महाशक्तिशाली और और बैठ गये / संसारमें कितने संग्रह बने और बिखर सारपूर्ण है / और यह दीखनेवाला जगत क्षणिक है, गये / जगमें कितने नाटक-पट खुले और बन्द हो गये। असमर्थ और निःसार है। तू इससे न्यारा है और यह जीवनमें कितने साथी मिले और बिछुड़ गये। तुझसे न्यारा है। ये सब अतीतकालकी स्मृतियां हैं। गई-गुजरी क परन्तु अनादि मिथ्यात्ववश तू शरीरको स्वात्मा, विषय- हानियाँ हैं / परन्तु ये गई कहाँ ? इनके संस्कार प्राज भोगको सुख, परिग्रहको सम्पदा, नामको वैभव, रूपको भी तेरी चाल ढाल, तेरे हावभाव, तेरी इच्छा कामना सुन्दरता और पशुबलको वीरता मानता रहा है। और तेरी प्रकृति में अंकित हैं / इन सबको अपनी सत्ता___ मोहवश इनके लाभको अपना लाभ, इनकी वृद्धि- में उठाये तू अभी तक अनथक चला जा रहा है। वही को अपनी वृद्धि, इनके हासको अपना हास और इनके वेदना, वही उत्साह और वही उद्यम ! कालजीर्ण हो नाशको अपना नाश समझता रहा है। इसीलिए तू गया, लोकजीर्ण हो गये, युगयुगान्तर जीर्ण होगये; उन्मत्तसमान कभी खुश हो हँसता है और कभी दुःखी परन्तु तू अभी तक अजीर्ण है, नवीन है, सनातन है। हो रोता है। क्या यह सब कुछ तेरी अमरता और जगकी क्षणिइसी मायाकी प्राशासे छला तू निरन्तर भवभ्रमण कताका सबूत नहीं ? क्या यह तेरी अलौकिक शक्ति कर रहा है मृत्यु-द्वारसे हो निरन्तर एक घाटसे दूसरे और जगकी असमर्थताका प्रमाण नहीं ? क्या यह घाटपर जा रहा है। / तेरी सारपूर्णता और जगकी निस्सारताका उदाहरण प्रमादवश तु इस माया प्रपंचमें ऐसा तल्लीन है नहीं ? कि तुझे हरएक लोक पहला ही लोक और हरएक जीवन परन्तु हा ! तू अभी तक अपनेको मरणशील, पहला ही जीवन दिखाई देता है / तुझे पता नहीं कि असमर्थ निस्सार मानता हुआ मरीचिका-समान जगकी तू बहुत पुराना पथिक है / तुझे चलते, ठहरते, देखते, झूठी आशाओं में उलझा हुआ है / तू अभी तक इसकी विदा होते और पुनः पुनः उदय होते अनन्तकाल बीत ही बालक्रीडाओं, गुण-लालसाओं और प्रौढ चिन्ताओं में गया है। संलग्न है।

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