________________ 112 [वर्ष 3, किरण 1 श्री नेमिचन्द्र आचार्यका बनाया हुआ समझते रहे हैं,... आगे चलकर लिखा है कि प्रतिष्ठाके सात-आठ नेमिचन्द्र आचार्य विक्रमकी 11 वीं शताब्दीमें हुए हैं दिन बाकी रहनेपर प्रतिष्ठा करानेवाला सेठ प्रतिष्ठा करने और यह ग्रंथ उनसे पाँचतौ छैसौ बरस पीछे एक वाले विद्वानके घर पर जावे / स्त्रियां तो अक्षत भरे हुए गृहस्थ ब्राह्मणके द्वारा लिखा गया है जैसा कि बा० जुग- थाल हाथमें लिये हुए गाती हुई आगे जारही हों और लकिशोर मुख्तारने जैन-हितैषीके 12 वे भागमें सिद्ध साथमें साधर्मी भाई हो। इस प्रकार उसके घरसे उसको किया है / पं० श्राशाधर १३वीं शताब्दीमें संस्कृतके बहत अपने घर लावे / वहाँ चौकी बिछाकर उसपर सिंहासन बड़े विद्वान होगये हैं, उन्होंने ग्रन्थ भी अनेक रचे हैं रक्खे और चौमुखा दीपक जलावे / सिंहासन पर उस इस ही कारण विद्वान् लोग उनके ग्रंथोंको बड़ी भारी विद्वानको बिठा गीत नृत्य बाजोंके साथ, वस्त्राभूषणमें प्रतिष्ठा के साथ पढ़ते हैं, बहुतसे संस्कृतज्ञ पंडित तो उनके शोभायमान चार सधवा जवान स्त्रियाँ उसके शरीर पर वाक्योंको श्राचार्य वाक्यके समान मानते हैं / परन्तु चन्दन लगावें, फिर उसके अंगमें तेल उबटना लगाया पं० आशाधर पूर्णतया भट्टारकीय मतके प्रचारक रहे हैं. जावे / फिर पीली खलीसे तेल दूर कर स्नान कराया जैसा कि प्रतिष्ठा विषयक नीचे लिखे हमारे कथनोंसे जावे / फिर स्वादिष्ट भोजन करा वस्त्राभूषणसे सजाया सिद्ध होगा। नीचे लिखा कथन यद्यपि ऊपर वर्णित जावे ( जवान स्त्रियाँ ही क्यों उसके अंगको चन्दन सबही प्रतिष्ठापाठोंके अनुसार होगा परन्तु उस कथनका लगावें बढ़ी स्त्रियां क्यों न लगावें, इसका कोई कारण विशेष अाधार पं० आशाधर विरचित प्रतिष्ठासारोद्धार नहीं बताया गया है ) / ही होगा, क्योंकि उस ही पर पंडितोंकी अधिक श्रद्धा है। इसके बाद मंडप और वेदी बनवाकर नदी किनारेकी - पं०अाशाधरजी लिखते हैं कि-"जिनमन्दिर तैयार वामी श्रादिकी पवित्र मिट्टी, पृथ्वी पर नहीं गिरा हुआ होने में कुछहीं बाकी रह जाने पर शिल्यादिके कल्याण के पवित्र गोबर ऊमरादि वृक्षोंकी छालका बना हुआ लिए यह विधि की जावे कि प्रत्तिमा विराजमान होनेवाली काढ़ा इन सबको मिलाकर इससे आभूषणादिसे सुसवेदीके बीच में ताँबेका घड़ा दो वस्त्रोंसे ढकाहुअा रखे। . ज्जित कन्याएँ उस वेदीको लीपें / ऐसा ही नेमिचन्द्र घड़ेमें दूध, घी, शक्कर भरदे और चन्दन,पुष्प, अक्षत्से / प्रतिष्ठा पाठ के नवम परिच्छेदके श्लोक ३में श्री खंडादि उसकी पूजन करे फिर उस घड़े में पाँच प्रकारके रत्न, . कलाशाभिषेकके वर्णनमें लिखा है कि इन कलशोंमें और सब औषधि, सब अनाज, पारा, लोहा आदि पाँच * गाय का गोबरग्रादि अनेक वस्तुएँ होती हैं / फिर श्लोक धातुएँ भरदे, फिर चाँदी वा सोनेका मनुष्याकार पुतला - ४में पंचगव्य कलशाभिषेकका वर्णन करते हुए लिखा बनाकर उसको घी आदि उत्तम द्रव्योंसे स्नान कराकर है कि इसमें गायका गोबर, मूत्र, दूध, दही, घी आदि 'अक्षत श्रादिसे पूज निवारसे बुनी हुई गद्दी तकिये , भरे होते हैं / इसही अध्यायमें गाय के गोबरके पिंड अनेक / सहित सेजपर अनादि सिद्ध मन्त्र पढ़कर लिटावे / फिर दिशामें क्षेपण करना, अपने पाप नाश कराने के वास्ते जिन भगवानका पूजनकर उत्सवसहित उस पुतलेको लिखा है। ऐसा ही १३वें परिच्छेदमें गायके गोबर घड़ेमें रक्खे / ऐसा करनेसे कारीगरोंको कोई विघ्न नहीं अादिसे मण्डपको शुद्ध कराकर सोलहकारण भावनाके .. होता है, शुभ फलही होता हैं। डूंज रक्खे / फिर इसही १३वें परिच्छेदमें लिखा है कि