________________ - - - सुभाषित आ !- गैरियतके परदे इकबार फिर उठादें। बशरने खाक पाया ताल पाया या गुहर पाया / बिछुड़ों को फिर मिला नक्शे दुई मिटादें // मिज़ाज अच्छा अगर पाया तो सबकुछ उसने भरपाया॥ दुनियाँके तीर्थो से ऊँचा हो अपना तीरथ / रगोंमें दौड़ने फिरनेके हम नहीं कायल / g दामाने ऑस्माँसे उसका कलस मिलादें // जो आँख ही से न टपका. वह लहू क्या है / ल हर सुबह उठके गाएँ मनतर वो मीठे मीठे / -दाग़ @ सारे पुजारियों को मय पीतकी पिलादें // चन्द दिन है शानोशौकतका खुमार / र शक्ति भी शान्ति भी भगतोंके गीतमें है। मौतकी तुर्शी नशा देगी उतार // ल धरतीके वासियोंकी मुक्ति प्रीत में है // जब उठाएँगे जनाज़ा मिलके. चार / -इक़बाल हाथ मल मलकर कहेंगे बार बार / / कमाले बुज़दिली है पस्त होना अपनी आँखोंमें। किस लिए आए थे हम क्या कर चले / * अगर थोड़ी सी हिम्मत हो तो फिर क्या हो नहीं सकता। जो यहाँ पाया यहीं पर घर चले // * उभरने ही नहीं देती हमें बेमाइगी दिलकी / -अज्ञात् नहीं तो कौन क़तरा है जो दरिया हो नहीं सकता। जो मौत आती है आए, मर्दको मरनेका ग़म कैसा ? 13 हविस जीनेकी है, दिन उम्रके बेकार कटते हैं। इमारतमें खुशीकी दफ्तरे रंजो अलम कैसा ? जो हमसे जिन्दगीका हक़ अदा होता तोक्या होता ? -ग्रहमान ARE अहले हिम्मत मंजिले मकसूद तक आ भी गये। कह रहा यह आस्माँ यह सब समाँ कुछ भी नहीं। बन्दए तकदीर किस्मतसे गिला करते रहे / पीस दूंगा एक गर्दिशमें जहाँ कुछ भी नहीं। / जिन्दगी यूं तो फ़क़त बाज़िए तिफ़लाना है। कह रहा यह आस्माँ कि कुछ समयका फेर है। मर्द चो है जो किसी रंगमें दीवाना है। पापका घट भर चुका अब फटनेकी देर है // ---चकबस्त जिनके महलोंमें हज़ारों रंगके फानस थे / R जो नरल पुर सभर हैं उठाते वो सर नहीं। झाड़ उनकी कनपर बाकी निशाँ कुछ भी नहीं। सरकश हैं वो दरख्त कि जिनपै समर नहीं // जिनकी नौबतकी सदासे गँजते थे आस्माँ / ॐ उस बोरिया नशींका दिली मैं मुरीद हूँ / दम बखुद हैं मकबरोंमें हूँ न हाँ कुछ भी नहीं / जिसके रियाजे जुहदमें बूए वफ़ा नहीं // -अज्ञात ---अज्ञात जिनके हँगामोंसे थे आबाद वीराने कभी / - जान जाए हाथसे जाए न सत्त / शहर उनके मिट गए आबादियाँ बन होगई // है यही इक बात हर मज़हबका तत्त // -- 'इकबाल' -इकबाल 'वीर प्रेस ऑफ इण्डिया' कनॉट सर्कस न्यू देहली में छपा /