Book Title: Anekant 1939 11
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 143
________________ परम उपास्य कर प्रभुकी वाणी अखिल-जग-तारनको जल-यान / वे हैं परम उपास्य, मोह जिन जीत लिया ॥ध्र व॥ ___ प्रकटी, वीर, तुम्हारी वाणी, जगमें सुधा-समान // 1. काम-क्रोध-मद-लोभ पछाड़े सुभट महा बलवान / अनेकान्तमय, स्यात्पद लांछित, नीति-न्यायकी खान / माया-कुटिल नीति नागनि हन किया आत्म-संत्राण // / सब कुवादका मूल नाशकर, फैलाती सत ज्ञान // 2 // ज्ञान-ज्योतिसे मिथ्यातमका जिनके हुआ विलोप / अनित्य अनेक-एक इत्यादिक वादि महान / राग द्वेषका मिटा उपद्रव,रहा न भय श्री शोक // 2 // नत-मस्तक हो जाते सम्मुख, छोड़ सकल अभिमान। इन्द्रिय-विषय-लालसा जिनकी रही नं कुछ अवशेष। जीव-अजीव-तत्व निर्णय कर, करती संशय-हान / तृष्णा नदी सुखादी सारी, धर असंग व्रत-वेष // 3 // साम्यभाव रस चखते हैं जो, करते इसका पान // 4 // दुख उद्विग्न कर नहिं जिनको,सुख न लुभावे चित्त / उंच. नीच औ. लघसदीर्घका, भेद न कर भगवान / आत्मरूप सन्तुष्ट, गिर्ने सम निर्धन और सवित्त॥४॥ सबके हितकी चिन्ता करती, सब पर दृष्टि समान // 5 निन्दा-स्तुति सम लखें बने जो निष्प्रमाद निष्पाप / अन्धी श्रद्धाका विरोध कर, हरती सब अज्ञान / साम्यभावरस-आस्वादनसे मिटा हृदय-सन्ताप / / 5 / / युक्ति-वादका पाठ पढ़ाकर, कर देती संज्ञान // 6 // अहंकार-ममकार-चक्रसे निकले जो धर धीर / ईश न जगकर्ता फलदाता, स्वयं सृष्टि-निर्माण / निर्विकार-निर हुए, पी विश्व-प्रेमका नीर // 6 // निज-उत्थान-पतन निज-करमें, करती यों सुविधान / / साध आत्महित जिन वीरोंने किया विश्व-कल्याण / हृदय बनाती उच्च, सिखाकर; धर्म सुदया-प्रधान / 'युगमुमुक्ष' उनको नित ध्यावे, छोड़ सकल अभिमान जो नित समझ आदरें इसको, वे 'युग-वीर महान। - युगवीर -युगवीर 'वीरसेवामन्दिर-ग्रंथमाला' को सहायता हालमें वीरसेवामन्दिर सरमावाको जो सहायता प्राप्त हुई है उममें श्रीमान् बाबू छोटेलालजी जैन रईम कलकत्ताका नाम खास तौर से उल्लेखनीय है / आपने 500) 10 की एक मुश्त सहायता 'वीर सेवामन्दिर-ग्रंथमाला' को प्रदान की है, और इस तरह आप ग्रंथमालाके. स्थायी सहायक' बने हैं। साथ ही कुछ दिन बाद आपने अपने मित्र बाबू रतनलालजी झाँझरी कलकत्तासे भी 100) रु० की सहायता प्राप्त करके भेजी है / इसके लिये आप और आपके उक्त मित्र दोनों ही हार्दिक धन्यवादके पात्र हैं / आशा है दूसरे सज्जन भी श्राफ्का अनुकरण करेंगे, और इस तरह ग्रन्थमालाके इस पुण्यकार्यमें आवश्यक प्रोत्साहन तथा प्रोत्तेजन प्रदान कर यशके भागी होंगे। .... . -अधिष्ठाता 'वीरसेवामन्दिर' .... .... सरसावा जि० सहारनपुर

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