________________ 116 :. . अनेकान्तः : ... वर्ष 3, किरण 1 AnuuuuuN सहित इस प्रकार किया जावे:- .. . .. कोई गरुड़ पर, कोई घोड़े पर, कोई हाथी पर, कोई . "हीको स्वायुधवाहनबन्धुचिन्हसपरिवार के सिंह पर, कोई सूअर पर, कोई अष्टापद पर, कोई हंस इन्छ मागच्छ र संवौषट् तिष्ठ तिष्ठ :: मम सहितो पर चढ़ कर आता है / किसीकी भैंसेश्रादि सात भव भव वषट्, इन्द्राय स्वाहा, परिजनाय स्वाहा, अनुः प्रकारकी सेना, किसीकी मगर श्रादि सेना, किसीकी चराय स्वाहा, महत्तराय स्वाहा, भग्नये स्वाहा, भनि- ऊंट आदि सात प्रकारकी सेना, किसीकी सिंहादि बाय स्वाहा, वरुणाय स्वाहा, प्रजापतये स्वाहा / " सात प्रकारकी सेना, किसीकी घोड़ा आदि सात प्रकार अनावृत यक्ष, जिसकी पूजा कीजाती है, वह गरुड़ की सेना; किसीके हाथमें दंड, किसीके हाथ में तलवार पर सवार होते हैं / चार हाथोंमें चक्र, शंख आदि लिए किसीका आयुध वृक्ष किसीके हाथमें नागपाशादि होते हैं जम्बूदीपके जम्बूवृक्ष पर रहते हैं जयन्त,अपर- होता है। ज्योतिषेन्द्र जिनकी पूजा होती है दो हैं एक जित, विजय, वैजयंत उनके नाम है। पूर्वकी तरफ चन्द्रमा, जिसकी सिंहकी सवारी और दूसरा सूर्य उनको बलि दी जाती है। सोम, यम, वरुण, कुवेर ये जिसकी सवारी घोड़ा होता है। चार द्वारपाल है, जो दुष्टोंके वास्ते यमके समान हैं / इनके तिथि देवता 15 हैं जिनकी पूजा होती है, यह हाथमें भी क्रमशः धनुष, दण्ड, पाश और गदा होती है। भी यक्ष होते हैं। यह अग्नि, पवन, जल आदि पाठ ब्रह्मबलि इस प्रकार दी जाती है-ओं ह्रीं क्रो रक्तवण- प्रकारके रूपके होते हैं / यक्ष, वैश्वानर, राक्षस, नधृत, यन आयुध युवति जन सहित ब्रह्मन् भूर्भुवः स्वः स्वाहा पन्नग, असुर, सुकुमार, पित, विश्वमाली, चमरवैरोचन, इमं सायं चरु अमृतमिव स्वस्तिकं गृहाण / इसही प्रकार महाविद्य, मार, विश्वेश्वर, पिंडाशिन इनके नाम हैं / और भी दिकपालोको बलि दीजाती है / जयादि देवियों- कुमुद, अंजन, बामन और पुष्पदंत इन चार द्वारपालोकी पूजा अष्टद्रव्यसे की जाती है / नाम इनके जया, की पूजा होती है। सर्वाण्ह यक्षकी पूजा होती है जो विनया, अजिता, अपराजिता; जुभा, मोहा, स्तंभा, सफेद हाथी पर चढ़कर आता है। महाध्वज यक्षकी स्तंमिनी है, इनके भी हाथ होते हैं। पर्वतोंके पूजा होती है, अष्टदिक्कन्याओंकी पूजा होती है, और सरोवरोंके कमलोंमें रहनेवाली देवियोंकी भी पूजा वास्तुदेवको बलि दी जाती है जो इस प्रकार है-पद कीजाती है : नाम जैश्री, ही, धृति, कीर्ति बुद्धि, लक्ष्मी देवको मांजी बड़े और भातकी बलि ब्रह्माको जो शांति और. पुष्टि हैं। 32 प्रकारके इन्द्रोंकी भी पूजा गांव खेत और घरोंमें रहता है, घी दूध मिला हुआ होती है जिनमें भवनवासी और व्यन्तरके नाम असु. भात, इन्द्रको फूल; अग्निको दूध घी, यमको जो रेन्द्र, नागेन्द्र, सुपरेन्द्र, दीपकुमारंन्द्र, उदधिकुमारेन्द्र, भैंसेपर सवार है. तिल और शमी / नैऋत्यको तेल मिली स्तनितकुमारेन्द्र, विद्युतकुमारेन्द्र, दिक्कुमारेन्द्र, अग्नि हुई खली। वरुणको दूध भात वायुको हल्दीका चूर्ण कुमारेन्द्र, बातकुमारेन्द्र, किन्नरेन्द्र, किंपुरुषेन्द्र; महो- कुवेरको खीर अन्न / ईशानको घी दूध मिला हुआ रगेन्द्र, गंधर्वेन्द्र, यक्षेन्द्र, राक्षसेन्द्र, भूतेन्द्र, और भात, आर्यको पूरी लङ्क, और फल, विस्वस्तको उड़द पिशाचेन्द्र, इनमेंसे हर एक इन्द्रकी दो दो हजार और तिल, मित्रदेवको दही और दूब, महीधरको दूध देवियाँ है। इनमें से भी कोई भैंसे पर, कोई कछवे पर, सवीन्द्रको धानकी खील, साबिन्द्रको काफूर फैसर और