________________ साहित्य-परिचय और समालोचन 5. ... [अनेकान्तमें 'साहित्य परिचय और समालोचन' नामका एक स्तम्भ रखनेका बहुत दिनोंसे विचार चल रहा है। अनवकारणदि कुछ कारणोंके वश अबतक उसका प्रारम्भ नहीं हो सका था, अब इस वर्षके इसी अङ्कसे उसका प्रारम्भ किया जाता है / इस स्तम्भके नीचे समालोचनार्थ तथा भेट स्वरूप प्राप्त साहित्यका परिचय रहेगा। सामान्यपरिचय प्रायः प्रातिके समय ही दे दिया जाया करेगा-सामान्य प्रालोचन भी उसी समय हो सकेगा। विशेष परिचय और विशेष समालोचनका कार्य बादको यथावकाश हुआ करेगा और वह उन्हीं ग्रन्थों-पुस्तकों आदिका हो सकेगा जिनके विषयमें वैसा करना उचित और श्रावश्यक समझा जायगा / हाँ, दूसरे विद्वान् यदि किसी ग्रन्थादिकी समालोचना खास अनेकान्तके लिये लिखकर भेजनेकी कृपा करेंगे तो उसे भी, उनके नामके साथ, इस स्तम्भके नीचे स्थान दिया जासकेगा। -सम्पादक ... (1) अकलंकग्रंथत्रयम्--मूल लेखक, भट्टाक- सका, इसीसे वह साथमें नहीं दिया जासका / इन लकदेव / सम्पादक, न्यायाचार्य पं०महेन्द्रकुमारजी स्वोपज्ञभाष्यों तथा प्रमाण संग्रहके अकलंक द्वारा जैन शास्त्री, न्यायाध्यापक स्याद्वाद महाविद्यालय रचे जानेकी सबसे पहले सूचना अनेकान्त द्वारा बनारस / प्रकाशक, मुनिजिनविजय, संचालक सन् 1930 में की गई थी और इनको तथा 'सिंघी जैनग्रंथमाला, अहमदाबाद-कलकत्ता / न्यायविनिश्चय मूलको खोज निकालनेकी प्रेरणा बड़ा साइज पृष्ठ सं०, सब मिलाकर 520 / मूल्य, भी की गई थी। साथ ही, समन्तभद्राश्रम-विज्ञप्ति सजिल्द 5) रु०। . नं०४ के द्वारा दूसरे ग्रन्थोंके साथ इन ग्रन्थोंको _ यह कलकत्ताके प्रसिद्ध श्वे० सेठ श्री बहादुर भी खोजने के लिये पारितोषिककी सूचना निकाली . सिंहजी सिंघीकी ओरसे उनके पूज्य पिता श्री गई थी / / लुप्तप्राय जैन ग्रन्थांकी खोज-सम्बन्धी डालचन्दजी सिंघीकी पुण्यस्मृतिमें निकलने वाली मेरे इस आन्दोलनके फलस्वरूप इन ग्रंथोंका उद्धार 'सिंघी जैनग्रंथमालाका 12 वाँ ग्रन्थ है / इसमें होनेस मेरी महती प्रसन्नताका होना स्वाभाविक है, श्रीभट्टाकलंकदेव-विरचित उच्चकोटि के न्यायविषयक और इसलिये मैंने इन ग्रन्थोंके उद्धार संबन्धी शुभ तीन संस्कृत ग्रन्थोंका संग्रह है, जिनमेंसे एकका - * देखो, अनेकान्त प्रथम वर्षकी प्रथम किरणमें प्रकाशित नाम 'लघीयस्त्रय' है, जो कि प्रमाण-नय-प्रवचन लुप्तप्रायजैन ग्रंथोंकी खोज-विषयक विज्ञप्ति नं०३ और विषयक तीन लघु प्रकरणोंको लिये हुए है; दूसरेका तीसरी किरणमें प्रकाशित 'पुरानी बातोंकी खोज' नाम 'न्यायविनिश्चय'और तीसरेका 'प्रमाण संग्रह' शीर्षकके नीचे,'अकलंक ग्रन्थ और उनके स्वोपज्ञभाष्य' है / पहले तथा तीसरे ग्रंथकेसाथ खुद भट्टाकलंक नामका उपशीर्षक लेख। देव विरचित स्वोपन्नभाष्य भी लगा हुआ है, दूसरे ग्रन्थका स्वोपज्ञभाष्य उपलब्ध नहीं हो / देखो, अनेकान्त वर्ष 1 किरण /