________________ अनेकान्त [वर्ष 3 किरण 1 mumentaronunction जैनाचार्य श्री आत्मानन्द-जन्म-शताब्दी-स्मारक गुजरातीका अनुवाद होने पर भी इसमें अनेक ट्रस्ट बोर्ड, बाबा कांटा, बहोरानो जूनोमालो चौथा महत्वके सुधार तथा परिवर्धन भी किये गये हैं। माला, बम्बई न०३ / मूल्य 11 // ) रु०। पहलेके कुछ विचार जो बादमें विशेष आधार यह ग्रन्थ प्रायः पूर्वमें प्रकाशित अपने गुजराती वाले नहीं जान पड़े उन्हें निकाल कर उनके स्थानमें संस्करणका, कुछ संशोधन और परिवर्धनके साथ, नये प्रमाणों और नये अध्ययनके आधार पर खास हिन्दीरूपान्तर है / इस संस्करणकी मुख्य दो विशेष- महत्वकी बातें लिख दी हैं / उमास्वाति श्वेताम्बर ताएँ हैं / एक तो इसमें पारिभाषिक शब्दकोष और परम्पराके थे और उनका सभाष्य तत्वार्थ सचेलसटिप्पण मूलसूत्रपाठ जोड़ा गया है, जिनमेंसे शब्द- पक्षके श्रुतके आधार पर ही बना है यह वस्तु कोषको पं० श्रीकृष्णचन्द्रजी सम्पादकने और सत्र- बतलानेके वास्ते दिगम्बरीय और श्वेताम्बरीय श्रत पाठको पं० दलसुखभाई सम्पादकने तय्यार किया व आचार भेदका इतिहास दिया गया है और अचेल है। ये दोनों उपयोगी चीजें गुजराती संस्करणमें तथा सचेल पक्षके पारस्परिक सम्बन्ध और भेदके नहीं थीं / इनके तय्यार करने में जो दृष्टि रक्खी ऊपर थोड़ा सा प्रकाश डाला गया है, जो गुजराती गई है वह पं० सुखलालजीके वक्तव्य के शब्दोंमें परिचयमें न था / भाष्य के टीकाकार सिद्धसेन इस प्रकार है गणि ही गंधहस्ती हैं ऐसी जो मान्यता मैंने गुज“पारिभाषिक शब्दकोश इस दृष्टिसे तय्यार राती परिचयमें स्थिरकी थी उसका नये अकाट्य किया है कि सूत्र और विवेचन-गत सभी जैन- प्रमाणके द्वारा हिन्दी परिचयमें समर्थन किया है जैनेतर पारिभाषिक व दार्शनिक शब्द संग्रहीत हो और गन्धहस्ती तथा हरिभद्र के पारस्परिक सम्बन्ध जायँ, जो कोशकी दृष्टिसे तथा विषय चुननेकी एवं पौर्वापर्य के विषय में भी पुनर्विचार किया गया दृष्टि से उपयुक्त हो सकें। इस कोषमें जैनतत्त्वज्ञान है। साथ ही दिगम्बर परम्परामें प्रचलित समन्त और जैन आचारसे सम्बन्ध रखने वाले प्रायः भद्रकी गंधहस्तित्वविषयक मान्यताको निराधार सभी शब्द आजाते हैं। और साथही उनके प्रयोगके बतलानेका नया प्रयत्न किया है। गुजराती परिचय * स्थान भी मालूम हो जाते हैं। सूत्रपाठमें श्वेता- में भाष्यगत् प्रशस्तिका अर्थ लिखने में जो भ्रांति म्बरीय और दिगम्बरीय दोनों सूत्रपाठ तो हैं ही रह गई थी उसे इस जगह सुधार लिया है। और फिर भी अभी तकके छपे हुए सूत्रपाठोंमें नहीं उमास्वातिकी तटस्थ परम्पराके बारेमें जो मैंने आए ऐसे सूत्र दोनों परम्पराओंके व्याख्या-ग्रन्थोंको कल्पना विचारार्थ रखी थी उसको भी निराधार देखकर इसमें प्रथमवार ही टिप्पणीमें दिये गये समझकर इस संस्करणमें स्थान नहीं दिया है। भाष्यवृत्तिकार हरिभद्र कौनसे हरिभद्र थे-यह वस्तु दूसरी विशेषता परिचय-प्रस्तावनाकी है, और गुजराती परिचयमें संदिग्ध रूपमें थी जब कि इस जो पं० सुखलालजीके शब्दोंमें इसप्रकार है-. हिन्दी परिचयमें याकिनीसू रूपसे उन हरिभद्रका "प्रस्तुत आवृत्तिमें छपा परिचय सामान्यरूपसे निर्णय स्थिर किया है।"