________________ 'Pala [1] [97 #AAAAA [ 2] अज-सम्बोधन .. ( वध्य-भूमिको जाता हुआ बकरा ) . हे अज ! क्यों विषण्ण-मुख हो तुम, शायद तुमने समझ लिया है किस चिन्ताने घेरा है ? अब हम मारे जावेंगे, हे पैर न उठता देख तुम्हारा, इस दुर्बल औ' दीन दशामें खिन्न चित्त यह मेरा है ! भी नहिं रहने पावेंगे !! म. देखो, पिछली टाँग पकड़कर, छाया जिससे शोक हृदयमें तुमको वधिक उठाता है ! इस जगसे उठ जानेका, है और ज़ोरसे चलनेको फिर, इसीलिए है यत्न तुम्हारा, धक्का देता जाता है !! यह सब प्राण बचानेका !! कर देता है उलटा तुमको पर ऐसे क्या बच सकते हो, र दो पैरोंसे खड़ा कभी ! सोचो तो, है ध्यान कहाँ ? र दाँत पीस कर ऐंठ रहा है। तुम हो निबल, सबल यह घातक, . कान तुम्हारे कभी कभी !! __निष्ठुर, करुणा-हीन महा। कभी तुम्हारी क्षीण-कुक्षिमें स्वार्थ-साधुता फेल रही है, मुक्के खूब जमाता है ! न्याय तुम्हारे लिये नहीं ! अण्ड-कोषको खींच नीच यह रक्षक भक्षक हुए, कहो फिर, फिर फिर तुम्हें चलाता है !! __ कौन सुने फ़रियाद कहीं !! सह कर भी यह घोर यातना, इससे बेहतर खुशी खुशी तुम तुम नहिं कदम बढ़ाते हो, वध्य-भूमिको जा करके, कभी दुबकते, पीछे हटते, वधिक-छुरीके नीचे रख दो और ठहरते जाते हो !! निज सिर, स्वयं झुका करके / मानों सम्मुख खड़ा हुआ है 'आह' भरो उस दम यह कह कर, सिंह तुम्हारे बलधारी, " हो कोई अवतार नया, आर्तनादसे पूर्ण तुम्हारी महावीरके सदृश जगतमें' 'मेमे' है इस दम सारी !! __ फैलावे सर्वत्र दया" // [3] 6] "AAMARTH MAHARAAA FF.FA. . -'युगवीर' AARTHATAITHLETEYE