Book Title: Anekant 1939 11
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 85
________________ कार्तिक, वीर निर्वाण सं०२४६६] दर्शनोंकी स्थल रूपरेखा चाहिये / यद्यपि यह कह सकना बहुत कठिन है कि ग्रन्थ निर्माण कर सकते हैं / इस समय मेरा न तो अमुक दर्शन पूर्वोक्त उच्चतम आदि विशेषणोंके सर्वथा दर्शन ग्रन्थ निर्माण करनेका विचार है और न मुझे उपयुक्त है, तथापि दर्शनोंकी उपलब्ध विवेचनाओं पर उतनी बड़ी जानकारी ही है / परन्तु यहाँ पर (इस लेख ध्यान आकृष्ट करनेके बाद जिस दर्शनकी विवेचना. में) इन मान्यताओं पर कुछ प्रकाश डालना ज़रूरी है, मस्तिष्ककी उलझी हुई गुत्थियोंको सुलझावे और संसार जिससे यह मालूम हो सके कि अमुक मान्यता वा का कल्याण करने में अमोघ साबित हो वही सर्वोत्तम दर्शन सत्य तथा मंगलप्रद है और अमुक मान्यता वा समझा जाना चाहिये। दर्शन मिथ्या और अमंगलप्रद है / उपयुक्त ईश्वर दृश्यमान जड़ और चेतन जगतके रहस्यका अन्वे. श्रादिकी मान्यताओंका ठीक ज्ञान होते ही दार्शनिकके षण किस दर्शनने कितना किया है, यह जानने के लिये मस्तिष्कमें उठने वाले 'मैं क्या हूँ ?' यह विश्व क्या उन दर्शनोंकी विवेचनाओं पर एक सरसरी नज़र डाल है ? इत्यादि प्रश्नोंका सरलतासे हल निकल आता है / 'लेना आवश्यक है / यद्यपि दुनियाँ के तमाम दर्शनोंके और इन प्रश्नोंका निर्णय होते ही दर्शनका कार्य समाप्त मन्तव्योंके विषयमें यहाँ ऊहापोह नहीं किया जा सकता हो जाता है, इसलिये कहना होगा कि प्रकृति, जीव और और न उन सब दर्शनोंकी मुझे जानकारी ही है, तो भी ईश्वर इन तत्वोंमें ही विश्वका रहस्य अभिभत हो रहा यहाँ पर कतिपय मुख्य दर्शनों (जिन दर्शनोंमें ही प्रायः है तथा इनका विवेचन करना अत्यन्त आवश्यक है / अन्य दर्शनोंका अन्तर्भाव हो जाता है ) की तरफ़ ध्यान जिन दर्शनोंमें केवल ईश्वर ही माना गया है, आकृष्ट करना बहुत ज़रूरी है / संसारमें जितने भी उनका कहना है कि-अबसे सुदीर्घ काल पहले इस दर्शनोंका जन्म हुआ है उनका चार भागोंमें बटवारा चराचर विश्वका कोई पता न था, एकमात्र ईश्वर ही किया जा सकता है-(१) वे दर्शन जो केवल ईश्वरको का सद्भाव था / इस मान्यताको स्वीकार करने वाले ही मानते हैं, (2) एकमात्र प्रकृति अर्थात् जड़ पदार्थ दर्शनोंमें मुस्लिमदर्शन, ईसुदर्शन आदि प्रमुख हैं / को मानने वाले दर्शन, (3) वे दर्शन जो ईश्वर, जीव मुसलमान और ईसाई दार्शनिकोंका कहना है कि अबऔर प्रकृतिको मानते हैं, (4) और वे दर्शन जो जीव से बहुत समय पहले एक समय ऐसा था जब इस जड़ तथा अजीव प्रकृतिको स्वीकार करते हैं / इन चार और चेतन जगत् का नामोनिशान भी न था, केवल मान्यताओं से किसी न किसी एक मान्यतामें इस एक अनादि, अनन्त, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, पूर्ण ईश्वर अखिल विश्व-मण्डलका रहस्य छिपा हुआ है, जिसके अर्थात् खुदा गॉडका ही अस्तित्व था / यद्यपि ईश्वर लिये ही उक्त मान्यताएँ और उनकी शाखा-प्रशाखारूप परिपूर्ण था, उसे किसी प्रकारको आवश्यकता न थी, दर्शन उपत्न हुए। तथापि एक विशेष अवसर पर उसे सृष्टि-रचना करनेयद्यपि इन मान्यताओं और इनसे सम्बन्ध रखने की लालसा हुई / ईश्वरने स्वेच्छानुसार स्व-सामर्थ्य वाले दर्शनोंकी रूपरेखा खींचने के लिये महती विद्वत्ता द्वारा शून्य अर्थात् नास्तिसे यह दृश्य जगत उत्पन्न तथा समयकी प्रचुरताकी बहुत आवश्यकता है, ये बातें किया। छह दिन तक खुदा अपनी इच्छासे तमाम जिन विद्वानोंके पास संभव हों वे 'दर्शन' पर एक अच्छा रचना करता रहा / उसने पहाड़, समुद्र,नदी, भखण्ड,

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