Book Title: Anekant 1939 11
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 49
________________ कार्तिक, वीरनिर्वाण सं० २४६६] नर-कंकाल अपनी बहुत-कुछ प्रगति करनेमें सफल हो सकता है. बनानेका भरसक प्रयत्न करो, अपने स्त्रीसमाजमें फैली किन्तु वर्तमानकी अधिकांश स्त्रियाँ अपने कर्तव्यसे हुई कुरीतियोंको दूर करनेमें अग्रसर बनो और अपनी अपरिचित ही हैं-उसे भूली हुई हैं भारत और सभी बहनोंको शिक्षिता, सभ्या तथा अपने धर्म देशकी विदेशों में होने वाली विविध परिस्थितियोंसे अनभिज्ञ रक्षार्थ प्राणोंकी बलि देने वाली वीर नारियाँ बनानेका हैं, उन्हें तो घरके कार्योंसे ही फुरसत नहीं मिलती, पूरा पूरा उद्योग करो । ऐसा करके ही हम वीर भगवान् फिर अपने उत्थान और पतनको कौन सोचे? वे और उनके शासनकी सच्ची उपासिका, कहला सकेंगी समाजमें फैली हुई मिथ्यारूढ़ियों, अन्धश्रद्धा, दम्भ, और वीरशासनके प्रचार-द्वारा अपना तथा जगत्का द्वेष और कलह श्रादि दोषोंको दूर करना अपना कर्तव्य उद्धार करनेमें समर्थ हो सकेंगी। कैसे समझ सकनी है ? और पतनके गर्तसे अपनेको अन्त में एक पद्यको पढ़कर मैं अपना वक्तव्य समाप्त कैसे बचा सकती हैं? करती हैं। श्राशा है अपने हितमें सावधान कृतज्ञ अतः सुज्ञ बहिनों ! उठो, और अपने कर्तव्यकी बहने वीरशासनके अपनाने और प्रचार देनेको अपना ओर दृष्टिपात करो । भगवान् महावीरके उपकारोंका मुख्य कर्तव्य समझेगी। स्मरणकर उनके पवित्र सन्देशको दुनियाके कोने कोने में . हम जाग उठीं, सब समझ गई, अब करके कुछ दिखला देगी । पहुँनानेका प्रयत्न करो और जगतको दिखाला दो कि हाँ, विश्वगगनमें एक बार फिर, हममें जीवन है, उत्साह है, कर्तव्यपालनकी भावना है जिन-शासन चमका देंगी ॥ और अपनी कोमके पतनका दर्द है । हम अबला नहीं - ॐ यह लेख लेखिकाने स्वयं वीरसेवामन्दिरमें ता० हैं. सबला हैं और सब कुछ कर सकती हैं। साथ ही, २ जलाई को होनेवाले वीरशासन-जयन्तीके जल्से पर अपनी सन्तानको शिक्षित, सुशोल और कर्तव्यपरायण पढ़कर सुनाया था । -सम्पादक ( १) नर-ककाल माँके फटे हुए अंचलसे मँह ढक कर जो साया ह! आँसू-हीन, दरिद-नयनोंसे, जो जीवन भर रोया है !! साधन-शून्य, दुलार-दृष्टिको,अभिभावक अपना माना ! सूखी-छाती चूस-चस सुख माँका जिसने पहिचाना !! घने-अभावों और व्यथाओं में पलकर जो बड़ा हुआ ! प्रकृति जननिकी कृपा-कोरसे अपने पैरों खड़ा हुआ !! सित-भविष्यके मधु-सपनोंमें भूला जो दुखकी गुरुता ! रुचिर कल्पनाओंकी मनमें जोड़ा करता जो कविता !! (३) • इन्द्र-धनुष जिसकी अभिलाषा, वर्तमान जिसका रौरव ! युग-सी घड़ियाँ बिता-बिता जोखोजरहा अपना वैभव !! तिरस्कार भोजन, प्रहार उपहार, भूमि जिसकी शैय्या! धनाधियोंके दया-सलिलमें खेता जो जीवन नैय्या !! नहीं विश्व में जिसका अपना, पद तल भू ऊपर आकाश! दुखकी घटनाओंसे परित,है जिसका जीवन-इतिहास!! कौन?-कौन?-'मजदूर'कहाने वाला वह भारतका लाल! 'भगवत् जैन छाया-चित्र कहो उसको,या पुरुष, कहो या नर-कंकाल !!

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